आजाद भारत का सबसे बड़ा दस्युओं का आत्म समर्पण, जहां 654 दस्युओं ने गांधी की प्रतिमा के सामने डाले थे हथियार
ग्वालियरPublished: Dec 06, 2016 11:01:00 pm
गांधीवादी नेता एसएन सुब्बाराव के प्रयासों से सैकड़ों डकैतों ने महात्मा
गांधी के अहिंसा के रास्ते पर चलने किया था सरेंडर, डकैतों को देखने के लिए
पहुंचे थे 70 हजार लोग
ग्वालियर. मुरैना के ऐतिहासिक क्रांति स्थल पुराना गांधी आश्रम वर्षांे से दुर्दशा का शिकार हो रहा है। मानपुर गांव में बने इस स्थल पर कभी 654 दस्युओं ने गांधीजी की प्रतिमा के सामने आत्मसमर्पण किया था। यह आजाद भारत का सबसे बड़ा दस्युओं का आत्म समर्पण था। जिसके कारण चार दशक पूर्व मुरैना के जौरा की पहचान विदेशों तक हुई, लेकिन अनदेखी का कारण यह पूरी तरह से दुर्दशा का शिकार हो गया है।
सन् 1972 में गांधीवादी नेता एसएन सुब्बाराव के प्रयासों से सैकड़ों डकैतों ने महात्मा गांधी के अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए सरेंडर किया। तब एक बड़ा चबूतरा तैयार कर खुले मैदान में बसों से भरकर डकैत इस पुराने गांधी आश्रम पर पहुंचे थे। इस सबसे बड़े सरेंडर को देखने के लिए लगभग 70 हजार लोग यहां पहुंचे थे। महात्मा गांधी के बड़े चित्र के सामने बंदूकों के टीले हो गए थे। इस सरेंडर ने जौरा को एक नई पहचान दिलाई।
देश-विदेश से भी लोग इस गांधी आश्रम को देखने पहुंचते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह अपना अस्तित्व खोता चला रहा है। इस जमीन पर ही नगर के डिग्री कॉलेज का निर्माण कर दिया गया है। जिसके कारण यह हमेशा ही ताले में बंद रहता है, जिसे लोग देख भी नहीं सकते। चबूतरे के आसपास झाडिय़ां इकट्ठी हो रही हैं।
खास बात यह है कि इस स्थल के बारे में जानकारी देने के लिए यहां एक बोर्ड तक नहीं लगाया गया है, जिससे बाहर के लोग तो दूर स्थानीय लोग भी इस जगह से परिचित नहीं हो सके हैं। दो दशक पूर्व जौरा से विधायक रहे महेश दत्त मिश्र ने जरूर इसके लिए प्रयास किए। साथ ही शासन स्तर पर पत्र भी लिखे गए, लेकिन इस ओर देखा तक नहीं गया।
जिसके कारण यह स्थल वीरान स्थिति में पहुंच चुका है, जबकि इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता था, लेकिन इस धरोहर के प्रति जिम्मेदार लोगों ने बहुत ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। जिसके कारण यह स्थल लगभग लोगों की पहुंच से दूर ही होता जा रहा है। अब लोग चाह कर भी इस स्थल को नहीं देख सकते, क्योंकि यह हमेशा ही ताले में कैद रहता है।
“डिग्री कॉलेज परिसर में होने की वजह से यह हमेशा ही ताले में रहता है। लोग इस स्थल पर पहुंच नहीं पाते है। हमने कई बार प्रयास किए। इसको भव्य बनाने के लिए भी पत्र लिखे, लेकिन यहां कोई बोर्ड तक नहीं लगाया गया है, जिससे स्थिति जस की तस बनी हुई है।”
महेश दत्त मिश्र, पूर्व विधायक, जौरा