ग्वालियर। पशु मेले के रूप में शुरू हुआ ग्वालियर का व्यापार मेला शहर ही नहीं प्रदेश की भी पहचान बन चुका है। एक सदी से भी अधिक का समय देख चुके इस मेले को देखने के लिए देश ही नहीं, विदेशी सैलानी भी आते हैं। इस बार ग्वालियर व्यापार मेले का औपचारिक शुभारंभ 5 जनवरी को केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर करेंगे। व्यापार मेले पर विस्तृत रिपोर्ट…।
व्यापार मेले का शुभारंभ आज, शहर में कई मंत्री
ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण की ओर से आयोजित माधवराव सिंधिया व्यापार मेले का शुभारंभ 5 जनवरी को शाम 5 बजे केन्द्रीय ग्रामीण विकास, पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर करेंगे। मध्यप्रदेश एक्सपोर्ट फैसिलिटेशन सेंटर मेला प्राधिकरण में समारोह की अध्यक्षता प्रदेश की नगरीय विकास मंत्री माया सिंह करेंगी। विशेष अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्य मंत्री संजय पाठक आदि मौजूद रहेंगे।
1905 में सागरताल से हुई शुरुआत, माधवराव सिंधिया ने की थी मेले की शुरुआत
व्यापार मेला परंपरा और आधुनिकता के संगम का उदाहरण है। ग्वालियर के तत्कालीन शासक स्व. माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर मेले की शुरुआत की थी। उस समय पूरी रियासत अकाल से पीडि़त थी। कारोबार ठप हो गया था। इसको देखते हुए स्व. सिंधिया ने मेले का शुभारंभ किया। सागरताल में मेलेे ने 1905 में साकार रूप लिया, तब शायद सिंधिया ने कल्पना भी नहीं की होगी कि पशु मेले के रूप में शुरू हुआ यह मेला करोड़ों का कारोबार करने लगेगा।
झरोखे से…
वर्ष 2005 को शताब्दी मेले के समापन अवसर पर आए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पुष्पहार पहनाते तत्कालीन प्रदेश के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री कैलाश चावला और पूर्व मेला प्राधिकरण अध्यक्ष राज चड्ढा।
वाह! क्या शताब्दी स्तंभ है…
4 फरवरी 2005 को मेले के शताब्दी समारोह के दौरान इसका समापन करने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आए थेे। कार में बैठे-बैठे उन्होंने मेला घूमते हुए शताब्दी समारोह के लिए लगाए गए स्टॉल्स का अवलोकन किया। इसके बाद वाजपेयी राजमाता विजयाराजे सिंधिया उद्यान स्थित शताब्दी स्तंभ को देखने पहुंचे। स्तंभ तक वे पैदल गए। यहां खड़े प्राधिकरण अध्यक्ष राज चड्ढा से जब उन्होंने स्तंभ की विशेषता पूछी तो उन्होंने बताया, इसमें सौ साल का इतिहास समाया है। इतना सुनते ही वाजपेयी ने स्तंभ का पूरा चक्कर लगाया और कहा, वाह! कमाल का शताब्दी स्तंभ बनाया है।
वर्ष 1998, 350 करोड़ का टर्नओवर
वर्ष 1937 में मेले के कारोबार का टर्नओवर लगभग 5-6 लाख रुपए था। वहीं 1990-91 में यह बढ़कर 70 करोड़ 36 लाख रुपए हो गया। 1984 में व्यापार मेले का दर्जा मिलने पर इलेक्ट्रॉनिक और ऑटोमोबाइल सेक्टर इसका प्रमुख आकर्षण बने। इसकी वजह इन सेक्टरों में मेले में दी जाने वाली 50 फीसदी विक्रय कर की छूट थी, तब बड़ी कंपनियां मेले में आती थीं। 1998 में मेले का कारोबार 350 करोड़ और सैलानियों की संख्या 40 लाख तक जा पहुंची थी।
काम बाकी, प्रदेश भर से आते थे खरीदार
मप्र सरकार ने 1984-85 की मेला अवधि से मेले में बिकने वाले सामान पर विक्रय कर में 50 फीसदी छूट देने का प्रावधान किया। वर्ष 2007-08 में दो प्रतिशत आरटीओ में छूट देना शुरू कर दिया गया। लेकिन बाद में इसे समाप्त कर दिया गया। इस छूट के चलते मेले में प्रदेश से वाहन खरीदने आया करते थे।
अभी भी तैयार नहीं मेला
कहने को तो मेले का औपचारिक शुभारंभ गुरुवार को होने जा रहा है पर अभी भी कई सेक्टरों में दुकानें और शोरूम बनाने का काम जारी है। वहीं मेला प्राधिकरण की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी है कि मेले का समापन तय समय 7 फरवरी को ही किया जाएगा।
ये भी जानें
23 अगस्त 1984 को ग्वालियर व्यापार मेले को राज्य स्तरीय व्यापार मेले का दर्जा दिया गया।
वर्ष 1996 में ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण बना।
104 एकड़ लगभग में मेला विशाल परिसर में फैला हुआ है। इसमें 2 लाख वर्ग फीट क्षेत्र में पार्क और बगीचे हैं। साथ ही 1 लाख 80 हजार वर्ग फीट में हरियाली पट्टी है।
मेले के व्यापारिक क्षेत्र में भव्य पारंपरिक कट स्टोन वास्तु शिल्प में निर्मित भव्य द्वारों की मदद से अष्टकोणीय सेक्टरों में विभाजित हैं। पारंपरिक पाषाण वास्तु शिल्प में बनी 1500 छोटी-बड़ी दुकानें, 250 चबूतरे और 23 छत्रियां मेले की खूबसूरती बढ़ाती हैं।
मेले के एक ओर पारंपरिक
पशु मेले के लिए एक विशाल खुला क्षेत्र है तो दूसरी ओर प्रदर्शनियों के लिए भी परिसर बनाया गया है।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया उद्यान में बना शहीद स्तंभ 33 फीट ऊंचा और 10 फीट चौड़ा है। स्तंभ में 15 लाल एवं 7 सफेद पत्थरों का उपयोग किया गया है।
मेले के दंगल में एक समय शहर के पहलवान ने विश्वविख्यात गामा पहलवान को पटखनी दी थी। कुश्ती को प्रोत्साहित करने के लिए मेले में होने वाली दंगल प्रतियोगिता में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के पहलवान भाग लेते हैं।
शिल्पकारों को प्रोत्साहन देने के लिए पहली बार शिल्प बाजार की शुरुआत 25 दिसंबर 1988 से 25 जनवरी 1989 तक 11-11 दिन के तीन चरणों में कला मंदिर के पास आयोजित किया गया। अब शिल्प बाजार एक चरण में 10 दिन के लिए लगाया जाने लगा है। यहां देश भर के शिल्पी आते हैं।