इस आदेश ने जीवाजी यूनिवर्सिटी (जेयू) सहित प्रदेश के सभी सातों विवि के कुलसचिवों की टेंशन बढ़ा दी है। हालांकि जेयू कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला कर्मचारियों की नियमितीकरण के मामले को जल्द से जल्द सुलझाना चाहती है। ईसी मेम्बरों ने भी 2007 से पूर्व के सभी कर्मचारियों को नियमित करने के लिए हरी झंडी दे दी है। बीते दिनों कुलपति ने कुलसचिव डॉ. आनंद मिश्रा को नियमितीकरण की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी करने के निर्देश भी दिए हैं, पर शासन के नियमों में बंधे कुलसचिव के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। एक तरफ कर्मचारियों की आशाएं हैं तो दूसरी तरफ शासन के कठोर नियम। फिलहाल डॉ. मिश्रा ने मामला जनवरी तक टाल दिया है।
यह है मामले का सबसे बड़ा पेच अधिकारियों के अनुसार जेयू वर्तमान में करीब एक करोड़ रुपए प्रतिमाह वेतन पर खर्च करता है, लेकिन जैसे ही करीब 250 से अधिक कर्मचारी रेगुलर हो जाएंगे तो प्रत्येक कर्मचारी को करीब 10 हजार रुपए अतिरिक्त भुगतान करना होगा। इस हिसाब से जेयू का प्रतिमाह खर्च लगभग तीन करोड़ के आसपास पहुंच जाएगा, जो पूर्व की रकम से करीब तीन गुना ज्यादा है। इनती बड़ी राशि हमेशा ही विवि जुटा पाएगा, इसके बारे में शासन संशय में है।
इसलिए हो रही ठेका प्रथा लागू अधिकारियों का कहना है कि वर्तमान में प्रदेश के सभी विवि में छात्र संख्या घट रही है। रिसर्च को छोड़कर बाकी विषयों में हालात अच्छे नहीं हैं। छात्रों की कम संख्या के कारण जहां कई निजी कॉलेज बंद होने की कगार पर हैं, वहीं 60 प्रतिशत सरकारी कॉलेज पहले से ही खस्ता हाल में चल रहे हैं। शासन नहीं चाहता कि किसी भी स्थित में बढ़े हुए कर्मचारियों का वेतन वो अपने खाते से दे, इसलिए विवि के साथ खुद मंत्रालय ने ठेके पर कर्मचारियों की नियुक्ति शुरू कर दी है।
‘वर्तमान में हम एक करोड़ रुपए मासिक वेतन पर खर्च करते हैं, हमें करीब 250 से अधिक कर्मचारियों को नियमित करना है, जिसके कारण औसत खर्चा तीन करोड़ के आसपास आ रहा है। शासन ने हमसे जानकारी मांगी है। कोशिश करेंगे कि प्रक्रिया जल्द पूरी हो, लेकिन नियमों के फेर में कुछ भी कहना मुश्किल है।’
– डॉ. आनंद मिश्रा, कुलसचिव, जेयू