ग्वालियर/मानपुर। शासन द्वारा भले ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ ही पात्र परिवारों को एक रुपए किलो में गेहूं व अन्य खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता हो, लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए उपभोक्ताओं को 15 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ रहा है। कुछ यही स्थिति मानपुर क्षेत्र के चार गांवों के लगभग तीन सैकड़ा परिवारों की, जिन्हें अपना खाद्यान्न लेने 15 किलोमीटर दूर बहरावदा जाना पड़ता है। हालांकि ग्रामीण इस संबंध में प्रशासन को अपनी परेशानी पूर्व में ही बता चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हो पाया है।
बताया गया है कि मानपुर क्षेत्र में स्थित ग्राम कछार, माली बस्ती, मेवाड़ा का टपरा और ढीम चौतरा के वाशिंदों के लिए पीडीएस का खाद्यान्न उपलब्ध कराने की व्यवस्था बहरावदा की कंट्रोल दुकान पर की हुई है। क्योंकि ये चारों गांव सीप नदी के एक ओर तथा बहरावदा गांव सीप नदी के दूसरी ओर स्थित है। इसलिए उपभोक्ताओं को खाद्यान्न लेने जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि ग्रीष्मकाल के मौसम में तो लोग नाव आदि से नदी पार कर चले जाते हैं, लेकिन वर्षाकाल में नदी का जलस्तर बढ़ जाता है, जिसके कारण यहां के वाशिंदों को एक लंबा चक्कर काटकर मानपुर होकर जाना पड़ता है। ऐसे में लगभग 15 किलोमीटर दूर लोग खाद्यान्न लेने जाने को मजबूर हैं।
कभी कभी हो जाते हैं दो तीन चक्कर
उपभोक्ताओं का कहना है कि बहरावदा कंट्रोल दुकान पर कुल 406 राशनकार्ड धारी लोग पंजीकृत हैं। जिसमें से लगभग तीन सैकड़ा राशनकार्ड इन चार गांवों के ही हैं। यही वजह है कि हर माह तीन सैकड़ा परिवार खाद्यान्न के लिए परेशान होते रहते हैं। कई बार तो कई-कई चक्कर काटने पड़ते हैं, क्योंकि कभी दुकान बंद रहती है तो कभी कर्मचारी नहीं मिलते। यही वजह है कि लोग इन चार गांवों के लिए ढीम चौतरा में ही कंट्रोल दुकान खोलने की मांग कर रहे हैं।
ये बोले ग्रामीण
अगर हमारी राशन दुकान बहरावदा से अलग कर ढीम चौतरा में ही स्थापित कर दी जाए तो हमें 15 से 20 किलोमीटर का फेर नहीं खाना पड़ेगा।
रंजीत सिंह, ढीम चौतरा
गर्मियों में तो हम सीप नदी पैदल पारकर या नाव में बैठकर चले जाते हैं। लेकिन बारिश के दिनों में नदी में पानी आ जाता है तब दिक्कत आती है।
शिशुपाल बैरवा, भसुंदर का टपरा
खाद्यान्न के लिए 15-20 किलोमीटर का चक्कर काटना पड़ता है, जिसमें पूरा दिन खराब हो जाता है। कई बार तो दो-तीन चक्कर काटने पड़ते हैं।
रामबिलास माली, माली बस्ती
हम सारे गांव के लोग मिलकर खाद्यान्न लाने के लिए किराए से ट्रैक्टर लाते हैं, लेकिन दुकान बंद हो या खाद्यान्न नहीं मिले तो परेशानी बढ़ जाती है।
अब्दुल जाकिर, मेवाड़ा कछार