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सावन के महिने की की कहानी सुनिए महिलाओं  की जुबानी

locationग्वालियरPublished: Jul 10, 2017 02:31:00 pm

Submitted by:

Gaurav Sen

सावन का महीना शुरू हो गया। इस महीने का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यह न केवल प्रकृति का सबसे मनभावना मौसम होता है, बल्कि इस महीने में भाई-बहन का पवित्र त्योहार रक्षाबंधन भी मनाया जाता है।

sawan ka sombaar

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ग्वालियर। सावन का महीना शुरू हो गया। इस महीने का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि यह न केवल प्रकृति का सबसे मनभावना मौसम होता है, बल्कि इस महीने में भाई-बहन का पवित्र त्योहार रक्षाबंधन भी मनाया जाता है। समय के साथ-साथ इस महीने का महत्व कम होता गया और अब महिलाएं अपने मायके उसी दिन जाती हैं, जब रक्षाबंधन होता है। इस बदलाव पर पत्रिका ने दो पीढिय़ों की महिलाओं से बात की।


ढाई सौ से अधिक झूले लगते थे अमुआ की डाल पे
वन का महीना आते ही भीगी मिट्टी की खुशबू, अमुआ की डाल पे पड़े झूले और उस पर पेंग भरती महिलाओं की याद बरबस ही जेहन में आ जाती है। वह दिन भी क्या हुआ करते थे। सावन आते ही शहर के चारों हरियाली, बड़े-बड़े पेड़ और उन पर लंबी रस्सियों में झूले।




सभी सखियां घर से बताकर तो कुछ झूठ बोलकर कभी इस मोहल्ले के झूले, तो कभी उस मोहल्ले के झूले झूलने पहुंच जाती थी। सुबह से झूलते-झूलते कब शाम हो जाती पता ही नहीं चलता था। ये झूले कंपू, सिटी सेंटर, एसएएफ ग्राउंड सहित कई स्थानों पर लगते थे। शहर के हर दसवें पेड़ पर उन दिनों झूला लगता और लोग एक के बाद एक बारी-बारी से झूलते थे। क्या बच्चे क्या बड़े क्या बूढ़े सभी झूले का लुत्फ उठाते थे। सावन के पहले दिन ही पेड़ों की डालियों पर झूले पड़ जाते, जो रक्षाबंधन पर ही उतरते थे। मैं भी सहेलियों सरला और मृदुला के साथ कंपू के पास आम के पेड़ में झूला झूलने जाती थी। हमारा पूरा-पूरा दिन वहीं गुजरता था। सभी सखियां इकट्ठा होकर गाना गातीं। शहर में लगभग 250 झूले लगा करते थे।



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कविता मल्होत्रा, समाजसेवी

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जन तो पेड़ बचे और न ही डालियों पर झूले पड़ते हैं। डवलपमेंट के नाम पर बड़ी-बड़ी मल्टी और पुल के बीच शहर से पेड़ गायब से हो गए हैं। हमने भी बचपन में झूले देखे, लेकिन आज यह सब सपना सा लगता है। क्या करें झूले बिना रहा भी नहीं जाता। इसीलिए आर्टिफिशियल झूले लगाते हैं। क्लब की ओर से होटल में होने वाली एक्टिविटी में सावन उत्सव मनाया जाता है। वहां आर्टिफिशियल झूले पड़ते हैं और उसी में बारी-बारी से सभी मजा ले लेते हैं। कहीं-कहीं पेड़ हैं भी तो जगह बहुत सकरी है। झूला नहीं लग सकता। बच्चे भी आज पूछते हैं मां झूला कैसा होता है। मार्केट में आए आर्टिफिशियल झूले ही उन्हें दरवाजे पर या बगीची में लगा दिए जाते हैं।
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