उच्च न्यायालय के इस आदेश से शताब्दीपुरम में प्लॉट की रजिस्ट्री के बाद भी प्लॉट से वंचित लोगों के लिए एक रास्ता खुल गया है। न्यायमूर्ति जितेन्द्र माहेश्वरी एवं न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी की युगलपीठ ने यह महत्वपूर्ण आदेश दिया है। युगलपीठ ने यह आदेश इन्द्रपाल सिंह निवासी सिमको लाइन बिरलानगर की रिट अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। इसके साथ युगलपीठ ने 5 जुलाई 16 को न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को भी खारिज कर दिया। जिसमें याचिकाकर्ता को पजेशन दिलाए जाने के निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यदि जीडीए दो माह में हितग्राही को पजेशन दिला पाने में अक्षम रहता है तो उसे उसी योजना में प्लॉट दिया जाए, यह प्लॉट याचिकाकर्ता की सहमति से दिया जाए।
यह है मामला: ग्वालियर विकास की शताब्दीपुरम योजना जो कि 1989 में प्रारंभ हुई थी उसमें 7500 रुपए में भूखंड के लिए पंजीयन कराकर किश्तों में प्लॉट दिए जाने थे। इसी योजना में बालकिशन ने एक प्लाट लिया। एक नवंबर 12 को इन्द्रपाल से यह प्लाट लेकर लीज डीड संपादित कराई। जब वह मौके पर पहुंचे तो वहां पर किसी और का अतिक्रमण था। इस प्लॉट का सीमांकन नहीं होने से कब्जा नहीं मिला। जबकि प्राधिकरण ने हितग्राही से दो बार इस प्लॉट पर भवन नहीं बना पाने के कारण चार–चार हजार रुपए पेनल्टी ले ली। प्राधिकरण के अधिकारियों और कुछ समितियों की साठगांठ के चलते सैंकड़ों की संख्या में हितग्राही परेशान हो रहे हैं।
लोहामंडी सहित और भी योजनाएं अधर में: प्राधिकरण के अफसरों की एेसी ही मिली भगत के कारण कई योजनाएं अधर में लटकी हुई है। लोहामंडी की जमीन प्राधिकरण के हाथ से निकल गई। एेसे ही माणिचंद वाजपेयी के नाम की योजना को भी कहीं का नहीं छोड़ा है। यहां भी जिन लोगांें की रजिस्ट्रियां की गई हैं उन्हें पांच साल बाद भी प्लॉट नहीं मिले हैं।