आयुर्वेदिक इलाज से दूर भगाएं मलेरिया
रोग के लक्षणों को कम करने के लिए तुलसी का रस और शहद को मिलाकर सुबह-शाम लें
आयुर्वेद पद्धति में मलेरिया रोग को “विषमज्वर” कहते हैं। इसके लिए कई प्रकार की औषधियों से इलाज किया जाता है। जानते हैं आयुर्वेद में प्रयोग होने वाली दवाओं से इलाज व बचाव के बारे मे-
आयुष-चौंसठ : आयुष-चौंसठ दवा विशेषकर मलेरिया के उपचार के लिए प्रयोग में ली जाती है। यह कैप्सूल के रूप में होती है जिसे मरीज को इलाज और बचाव दोनों के लिए देते हैं।
छोटी पीपल : छोटी पीपल को रोगी की क्षमता और रोग के लक्षणों के आधार पर संख्याओं में घटाकर व बढ़ाकर देते हैं। पंचकोेल, अपामार्ग, कालमेध पेड़ की पत्तियां और त्रिफ ला को चूर्ण या रस के रूप में मलेरिया की विभिन्न अवस्थाओं में लिया जाता है।
तुलसी : रोग के लक्षणों को कम करने के लिए तुलसी या हरसिंगार की पत्तियों का रस और शहद (दोनों 1-1 ग्राम की मात्रा में) को मिलाकर सुबह और शाम लें।
नीम : नीम या सप्तपर्ण पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर भी पीया जा सकता है। इसके लिए 10 ग्राम छाल को आधा गिलास पानी में 1/4 होने तक उबालें और छानकर गुनगुना पिएं। आयुर्वेद विशेषज्ञ मरीज की स्थिति के अनुसार कई तरह की वटी, गिलोय सत्व व ज्वर को हरने वाले रस भी देते हैं। इस तरह की दवाओं को सुबह व शाम हल्के गर्म पानी के साथ लेने से लाभ होता है।
इस रोग में मरीज की स्थिति गंभीर होने पर उसे पंचकर्म चिकित्सा के तहत वमन और विरेचन (विषैले पदार्थो को बाहर निकालने के लिए उल्टी करवाना) कराया जाता है। अगरादि, कनैर, सुदर्शन, नीम, गुग्गल या राल के तत्वों से तैयार धूपबत्ती को दिन में दो बार जलाएं। यह मच्छरों को दूर करने में फायदेमंद होती है। परवल, कुटकी, पाठा, नागरमोथा, गिलोय, लाल चंदन, सौंठ, तुलसी, मुलैठी व पीपल आदि का चूर्ण या पाउडर बनाकर सुबह और शाम 3 ग्राम की मात्रा में पानी से लेना रोगी के लिए लाभदायक होता है।
(नोट: इन सभी दवाइयों का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह से ही करें। )
डॉ. नीरू पारीक, आयुर्वेद विशेषज्ञ
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