scriptबच्चों के लिए कितना सुरक्षित डिब्बाबंद दूध, यहां जानें | Bottle milk is not safe for kids, a health survey reveals | Patrika News

बच्चों के लिए कितना सुरक्षित डिब्बाबंद दूध, यहां जानें

Published: Dec 19, 2016 12:19:00 pm

चीनी दूध कंपनियों ने जांच में डिब्बाबंद दूध पाउडर में मेलामिन नाम के एक तत्व की मौजूदगी पाई है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है

milk

milk

नई दिल्ली। देश में बच्चों की एक बड़ी तादाद डिब्बाबंद दूध पाउडर पर निर्भर है, बावजूद इसके सुरक्षा मानकों पर किसी का ध्यान नहीं गया है। यह दूध कितना सुरक्षित है, इस बारे में न तो कभी सोचा गया, न ही कोई कदम उठाया गया है। सवाल यह है कि जिस देश में शराब की बोतलों पर सुरक्षा मानकों का प्रयोग किया जाता है, वहां डिब्बाबंद दूध पर इसका उल्लेख क्यों नहीं होता?

बच्चों और खासकर नवजात से जुड़े होने के बावजूद इसके प्रति इस तरह की लापरवाही हैरत में डालने वाली है, जबकि डिब्बाबंद दूध पाउडर की बाजार में धड़ल्ले से खरीद-फरोख्त जारी है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में दूषित दूध पीने से नवजातों की मौत के मामले बढ़े हैं। चीनी दूध कंपनियों ने जांच में डिब्बाबंद दूध पाउडर में मेलामिन नाम के एक तत्व की मौजूदगी पाई है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। विदेशी दूध की कंपनियां बड़ी मात्रा में दूध का पाउडर बनाकर भारत में बेचकर मोटा मुनाफा कमाती हैं।

शहरीकरण की वजह से बड़ी मात्रा में दूध पाउडर की खपत भी हो रही है। चिकित्सकों का मानना है कि डिब्बाबंद नकली दूध पाउडर माफियाओं द्वारा चलाए जाते हैं। ये माफिया नकली दूध के कारोबार में लगे हुए हैं। मशहूर शिशु चिकित्सक डॉ. के.एन. अग्रवाल ने बताया, इस दूध पाउडर को यूरिया और डिटर्जेंट से तैयार किया जाता है जो बच्चों के लिए बहुत हानिकारक है। नकली दूध से बच्चों को अस्थमा, हैजा, ल्यूकमेनिया, मधुमेह, क्षत-विक्षत अंग और पथरी जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।

अग्रवाल ने कहा कि चीन में हाल ही में हुए स्कैंडल से पता चलता है कि मुनाफा कमाने की जल्दबाजी में इस तरह की धोखाधड़ी की जाती है यानी बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ हो रहा है। बच्चों के लिए बने दूषित एवं नकली दूध पाउडर के कारोबार में बड़ी सांठगांठ है। ऐसे में हर साल 2.5 करोड़ नवजातों की सुरक्षा के लिए बेबी दूध पाउडर और अन्य पोषक उत्पादों का सही होना सुनिश्चित किया जाना जरूरी है।

के.एन.अग्रवाल कहते हैं, यदि आपका बच्चा डायरिया की समस्या से ग्रसित है और उचित दूध के सेवन के बावजूद उसका विकास नहीं हो पा रहा है तो वह नकली दूध या दूषित डिब्बाबंद दूध पाउडर का शिकार है। बच्चों के दूध पाउडर को तैयार करते समय तमाम तरह के सुरक्षा मानकों को ताक पर रख दिया जाता है। देश में मौजूदा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बेबी दूध पाउडर ब्रांड की जांच के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं है। 

फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) द्वारा 2011 में कराए गए सर्वेक्षण में देश में वितरित 68.4 फीसदी दूध नकली पाया गया है, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। चीन में वर्ष 2008 में नकली दूध का मामला सामने आया था। शोध में दूध पाउडर में मैगनीज पाया गया था। नवजात बच्चे अपने पहले वर्ष में अत्यधिक मात्रा में मैगनीज को पचा नहीं पाते और ठीक इसी तरह के हालात भारत में भी देखने को मिल रहे हैं। इन सबके बीच विभिन्न संस्थाएं अपना पल्ला झाडऩे में लगी है।

बीआईएस का कहना है कि वह सिर्फ पैकेजिंग को स्वीकृति देती है। सुरक्षा मानक तय करना उसकी जिम्मेदारी नहीं है। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंड्र्डस का कहना है कि वह आईएसआई मार्क प्रदान करती है और उसने मौजूदा समय में 30,000 लाइसेंसों को आईएसआई मार्क दिया है। बीआईएस के एक वैज्ञानिक गोपीनाथ ने आईएएनएस को बताया कि नवजातों के खाद्य उत्पादों के दो प्रकार हैं – एक नवजातों के खाद्य सबस्टीट्यूट हैं और दूसरा अनाज आधारित खाद्य हैं।

यह पूछने पर कि बीआईएस ने इस पर लगाम लगाने के लिए क्या कदम उठाए हैं, उन्होंने कहा कि एफएसएसएआई ने बीआईएस पंजीकरण के बाद ही इन उत्पादों को बेचने की व्यवस्था की है। अजीब विडंबना है कि देश में 1.25 अरब लोगों की इस आबादी में दूध के सही मापदंड का कोई मानक या कानून ही नहीं है। भारत से बाहर जाने वाले उत्पादों पर प्रमाणीकरण समाधान का उपयोग होता है, लेकिन देश में इस्तेमाल होने वाले कई उत्पादों पर इसकी कोई व्यवस्था नहीं होती।

एस्पा के महासचिव अरुण अग्रवाल ने बताया,हमारे देश में शराब की बोतलों पर प्रमाणीकरण के लिए होलोग्राम का प्रयोग किया जाता है, ताकि लोगों को नकली शराब से बचाया जा सके, मगर दूध पाउडर पर इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने बताया कि एस्पा ने बीआईएस को प्रमाणीकरण समाधान का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया है। इस तरह के प्रमाणीकरण समाधान से कोई भी आम नागरिक इंटरनेट, मोबाइल एप या मोबाइल संदेश के जरिए असली व नकली की पहचान में सक्षम है। यह तकनीक आईएसओ मानकों के दिशानिर्देशों के अनुरूप है जो जालसाजी को रोकने में सक्षम है।

साफ है कि मामला बहुत ही गंभीर है, अगर प्रशासन अब भी नहीं चेता तो इसके भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जिसकी सारी जवाबदेही प्रशासन की ही होगी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो