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स्वास्थ्य

घुटनों को अधिक मजबूत बनाने के लिए अपनाए ये तकनीक

घुटना प्रत्यारोपण के बाद उसकी गति की स्थिति में सुधार के पीछे कुछ निर्णायक कारणों में घुटने की विकृतियों को सुधारना, जिससे गति में सुधार आती है

Dec 16, 2016 / 02:27 pm

कमल राजपूत

Knee

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नई दिल्ली। घुटना प्रत्यारोपण करने की प्रक्रिया से गुजर रहे हर रोगी की सबसे पहली इच्छा होती है कि उसे दर्द से आराम मिले तथा दोबारा वे स्क्वैट कर सकें और अपने पैरों को क्रॉस करके बैठ सकें। पूरी दुनिया में इस संबंध में कई शोध हो रहे हैं ताकि इस प्रक्रिया के बाद मरीजों के घुटनों को और अधिक मजबूत बनाया जा सके। घुटना प्रत्यारोपण की प्रक्रिया के बाद हर मरीज चाहता है कि उसकी गति बाद में भी उसी तरह बरकरार रहे जो कि नहीं हो पाता है, लेकिन इसके परिणाम को सुधारने के लिए दूसरे महत्वपूर्ण पहलू भी हैं।

घुटना प्रत्यारोपण के बाद उसकी गति की स्थिति में सुधार के पीछे कुछ निर्णायक कारणों में घुटने की विकृतियों को सुधारना, जिससे गति में सुधार आती है। पलिया का प्रत्यारोपण, जिससे मोडऩे की स्थिति सुधरती है। साथ ही घुटने की गति को बेहतर बनाने में कोमल ऊतकों के बीच संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक होता है। ऐसे में पोस्टरियर क्रूसेट सैक्रीफाइसिंग तकनीक से गति को सुधारने में अधिक फायदा होता है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में आथोर्पेडिक्स विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अनिल अरोड़ा पिछले दो दशकों से अधिक समय से घुटना प्रत्यारोपण कर रहे हैं और उनको नी ऑथ्रोप्लास्टी में महारत हासिल है। उन्हें क्नीलर्स कॉल्फ (जो कि जांघों को छूता है) प्रत्यारोपण में महारत हासिल है। इसके लिए उन्होंने घुटने की मदद के लिए हाई फ्लेक्स नी को डिजाइन किया। यह घुटनों को मोडऩे लायक और लचीला बनाता है और यह एक सामान्य प्रक्रिया की तरह लगता है। इसकी मदद से 150 डिग्री तक घुटनों को आसानी से मोड़ सकते हैं।

प्रो. अनिल अरोड़ा के अपने अनुभव और नई प्रौद्योगिकी की मदद से रोगियों की गतिशीलता में निरंतर सुधार हुआ है। उनकी असाधारण प्रतिभा और शल्य चिकित्सा संशोधनों के संयुक्त मिश्रण से रोगियों के मूवमेंट में लगातार सुधार हुआ है और वे इससे पूरी तरह संतुष्ट भी हुए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सबसे अधिक हाई फ्लेक्स्ड नी सर्जरी की है। उनके इलाज के बारे में एक रोगी के बेटे ने बताया, मेरे पिता अब बागवानी भी कर सकते हैं, इसके लिए सबसे अधिक योगदान प्रोफेसर अनिल अरोड़ा का है, जिन्होंने इस प्रक्रिया को आसान और आरामदायक बना दिया। 

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