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स्वास्थ्य

शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकालकर दर्द से राहत देता पंचकर्म

यह समग्र कायाकल्प की ऐसी उपचार पद्धति है जिसका लक्ष्य शरीर के विषैले
तत्त्वों को बाहर निकालकर रोगी को स्थायी रूप से राहत पहुंचाना है

Jan 01, 2017 / 09:46 pm

जमील खान

Ayurveda

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आयुर्वेद के अनुसार रोगों को तीन प्रमुख दोष वात, पित्त और कफ बढ़ाते हैं। इन्हें कम करने में आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा मददगार है। इससे पुराने दर्द को दूर करने में मदद मिलती है। आयुर्वेद में पंचकर्म पुराने दर्द का इलाज करने का कारगर उपाय है। यह समग्र कायाकल्प की ऐसी उपचार पद्धति है जिसका लक्ष्य शरीर के विषैले तत्त्वों को बाहर निकालकर रोगी को स्थायी रूप से राहत पहुंचाना है। पंचकर्म चिकित्सा का इस्तेमाल जोड़ों का दर्द दूर करने के अलावा त्वचा के रोमछिद्रों को खोलने, रक्तधमनियों और शिराओं के ब्लॉकेज दूर कर रक्तसंचार बेहतर करने में होता है। पंचकर्म में पांच चिकित्सा अहम रूप से अपनाई जाती हैं जो हैं- बस्ती (औषधीय एनिमा), अभ्यंग (पूरे शरीर की मालिश), पोटली (प्रलेप यानी पुल्टिस मालिश), पिजहिचिल (रिच ऑयल मसाज) और स्वेदन (स्टीम बाथ या भाप स्नान)। जानते हैं इन्हें कैसे कर सकते हैं और इनके फायदों के बारे में-

1. अभ्यंग (पूरे शरीर की मालिश)
यह मसाज वात विकार को शांत कर ऊतकों से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है। नियमित अभ्यंग से तनाव, थकान व वात संबंधी विकार दूर होते हैं। इससे शरीर को पोषण मिलता है और व्यक्ति को अच्छी नींद आती है। रक्तसंचार बेहतर करने का यह सबसे अच्छा विकल्प है जिससे मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं।

2. बस्ती (औषधीय एनिमा)
यह थैरेपी शरीर के विषाक्त पदार्थों को हटाकर ऊतकों को पोषण देकर दोबारा बनाती है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। साथ ही धमनियों की सफाई कर इन्हें खोलने और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाती है।

3. पिजहिचिल (रिच हॉट ऑयल मसाज)
यह गठिया रोग और जोड़ों में दर्द के लिए उपयोगी है। इसमें पूरे शरीर की गुनगुने तेल से मसाज की जाती है। औषधीयुक्त तेलों का प्रयोग होने के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होता है और तनाव दूर होकर मन को शांति मिलती है।

4. पोटली (पुल्टिस मालिश)
जड़ी-बूटियों से तैयार पोटली को शरीर की मालिश के लिए प्रयोग में लेते हैं। दर्द निवारक होने के साथ इससे मांसपेशियों की अकडऩ व ऐंठन, स्पॉन्डिलाइटिस, जोड़दर्द, ऑस्टियोआर्थराइटिस और वात से जुड़ी समस्या से राहत मिलती है। इस प्रक्रिया में जड़ी-बूटियों के पाउडर व रस को रोग की प्रकृति के अनुसार उचित मात्रा में लेकर एक लिनन के कपड़े से भर लें और एक पोटली का रूप दे। इसके बाद पोटली को औषधीय तेल में गर्म कर त्वचा पर रखें।

5. स्वेदन (स्टीम बाथ)
इस प्रक्रिया से रक्तसंचार सुचारू होता है और रोमछिद्र भी खुलते हैं। स्टीम बाथ के लिए पानी में वरूण, निर्गुंडी, गिलोय, अरंडी, सहजना, मूली के बीज, सरसों, अडूसा और तुलसी के पत्ते आदि को उबालकर कुछ देर भाप लेते हैं।

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