डॉक्टरों का मानना है कि 15 मिनट तक भी लाउड म्यूजिक सुनने पर बहरा होने का खतरा पैदा हो सकता है।
घर, कॉलेज, मेट्रो, बस या ट्रेन। हर जगह इन दिनों एक नजारा आम देखने को मिल जाएगा, लोग कान में अपने प्यारे एमपी3 प्लेयर के हेडफोन को ठंूसे अपनी दुनिया में मगन है। कोई हिपहॉप सुन रहा है, तो कोई बॉलीवुड के आइटम सॉन्ग में मस्त है। आसपास क्या चल रहा है, उन्हें कुछ खबर ही नहीं है। मानो हर किसी की अपनी एक अलग दुनिया हो, जिसमें वह और उसके गैजेट्स। बस और कोई नहीं।
जी हां, आपने जिस हेडफोन को अपनी लाइफ का अहम हिस्सा बना लिया है, वह आपको बहरा बनाकर आपकी लाइफ खराब भी कर सकता है। दिखने में छोटा सा हेडफोन इस लेवल तक का शोर पैदा कर सकता है, जो कि एक जेट प्लेन या खचाखच भरा फुटबॉल स्टेडियम भी नहीं कर सकता। डॉक्टरों का मानना है कि 15 मिनट तक भी लाउड म्यूजिक सुनने पर बहरा होने का खतरा पैदा हो सकता है।
कौन हैं आसान शिकार
यूं तो आधुनिक शहरी समाज में हमारे चारों ओर हमेशा ही किसी न किसी तरह का शोर होता रहता है, जो हमें किसी ने किसी रूप में प्रभावित करता है। मगर फिर भी ऐसे लोग जो लगातार ज्यादा डेसिबल लेवल वाले शोर में रहते हैं, उनमें बहरेपन का खतरा ज्यादा होता है। हमारा शरीर 80 डेसिबल लेवल तक शोर बर्दाश्त कर सकता है और इससे ज्यादा का शोर खतरनाक हैं। ऐसे में हैवी मशीनरी के बीच काम करने वाले, एयरपोर्ट, कॉल सेंटर, डीजे आदि के बीच यह समस्या आम देखने को मिल सकती है। इसके अलावा युवाओं में यह समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है क्योंकि वह हर पल म्यूजिक सुनने के लिए अपने प्लेयर से चिपके रहते हैं। इसी कारण इन युवाओं के कान इनसे पहले बूढ़े हो गए हैं।
लाउड म्यूजिक ऐसे बनाता है बहरा
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस ने अपनी स्टडी में यह बताने की कोशिश की है कि आखिर कैसे लाउड म्यूजिक आपको बहरा बना सकता है। इसके मुताबिक कान से दिमाग तक इलेक्ट्रिक सिग्नल पहुंचाने वाले नर्व सैल पर मेलिन शीट नाम की कोटिंग होती है। यह इलेक्ट्रिक सिग्नल को सैल के साथ आगे बढऩे में मदद करती है। अगर 110 डेसिबल लेवल से ज्यादा का साउंड सुनते हैं, तो इससे मेलिन शीट फट सकती है, जिससे इलेक्ट्रिक सिग्नल का फ्लो प्रभावित होने का खतरा बन जाता है। इसका मतलब यह हुआ है कि नर्व सैल कान से दिमाग तक सिग्नल पहुंचाने में अक्षम हो जाते हैं।
हर 12 में से एक भारतीय शिकार
इंडियन मेडिकल रिसर्च की मानें तो भारत में 12 में से एक भारतीय सुनने की समस्या से पीडि़त है। भारत की आबादी का 6.3 प्रतिशत हिस्सा इस बीमारी की गिरफ्त में आ चुका है। मैसूर में ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग ऑडियोलॉजी डिपार्टमेंट में भी कराई गई एक स्टडी में पता चला कि शहर के 66 फीसदी लोग मॉर्डन गैजेट्स का उपयोग कर म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। इनमें से 8 फीसदी की सुनने की क्षमता पर फर्क पड़ा है, जबकि 9.7 प्रतिशत लोगों ने कान में सीटियां बजने की शिकायत की। 4.5 प्रतिशत लोगों ने अपने कानों को ब्लॉक महसूस किया,5.6 फीसदी लोगों को कान में भारीपन महसूस हुआ।
खतरे हैं तमाम
हेडफोन के जरिए म्यूजिक का लुत्फ उठाना आपको भारी भी पड़ सकता है क्योंकि ऐसा करके आप एक नहीं कई बीमारियों को न्योता दे रहे होते हैं। टिनिटस यानि कान में हमेशा एक तरह की घंटी बजने की आवाज सुनाई देना। बहरेपन की समस्या। घंटों कान में ईयरफोन ठूंसे रखने का एक दुष्परिणाम अनिद्रा भी है। तेज आवाज में म्यूजिक सुनने से आपका नर्व सैल भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। कानों में दर्द रहना। हद से ज्यादा थका हुआ महसूस करना। लाउड म्यूजिक से दिल का दौरा पडऩे का खतरा भी पैदा हो जाता है। इसके चलते आपके शरीर में हार्मोन इंबैलेंस की समस्या भी हो सकती है।
कितना झेल सकते हैं कान
60-65 डेसिबल : आम बातचीत के दौरान इस लेवल तक ही साउंड पैदा होता है, जो कि खतरनाक नहीं है।
90-95 डेसिबल : इस स्तर के शोर में लगातार संपर्क में रहने पर सुनने की समस्या प्रभावित हो सकती है।
125 डेसिबल : इस स्तर के या इससे ज्यादा के शोर से कानों में दर्द होने लगता है
140 डेसिबल : थोड़े समय तक भी इस स्तर के शोर में रहने से व्यक्ति बहरा हो सकता है।
सतर्कता बरतना जरूरी
120 डेसिबल लेवल का साउंड प्रोड्यूस करने वाले ईयरफोन को अगर आप 15 मिनट तक भी सुनते हैं, तो आपकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि समय रहते ही संभल जाएं। बस जरूरत है तो थोड़ी सी सतर्कता बरतने की। 60 फीसदी से ज्यादा कभी भी अपने एमपी3 प्लेयर के साउंड को न करें। 60 मिनट से ज्यादा कान में ईयरफोन न लगाएं रखें दिन भर में। आधुनिक ईयरफोन जो सीधे कान में ठूंसे जाते हैं, उनकी तुलना में पुराने स्टाइल के बड़े हेडफोन कम नुकसानदायक हैं। थोड़े-थोड़े अंतराल में कानों को ईयरफोन से ब्रेक देना भी जरूरी है। जहां तक संभव हो, तो ईयरफोन की जगह सिपल स्पीकर से संगीत सुने। अपने हेडसेट को किसी के साथ शेयर न करें। इससे इंफेक्शन का खतरा रहता है।