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दमन का प्रतीक है बुर्का, मरते दम तक लड़ूंगी कट्टरपंथियों सेः तसलीमा

Published: Nov 29, 2015 01:15:00 am

मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों द्वारा जान से मारने की धमकियों के मद्देनजर तसलीमा नसरीन 1994 से निर्वासन में रह रहीं हैं

taslima nasrin

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नई दिल्ली। भारत में निर्वासन में रह रहीं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने शनिवार को कहा कि चरमपंथियों के दबाव में वह चुप नहीं होंगी और आखिरी सांस तक कट्टरपंथियों तथा बुरी ताकतों से संघर्ष करती रहेंगी। तसलीमा ने कहा कि मुझे लगता है कि कट्टरपंथी मुझे मारना चाहते हैं, लेकिन मैं उनके खिलाफ प्रदर्शन करना चाहती हूं। अगर मैं लिखना बंद कर दूंगी तो इसका मतलब होगा कि वे जीत जाएंगे और मैं हार जाउंगी। मैं ऐसा नहीं चाहती। मैं चुप नहीं रहूंगी। मैं कट्टरपंथियों, बुरी ताकतों के खिलाफ अपनी मौत तक लड़ती रहूंगी।

अपनी रचनाओं को लेकर विवादों में रहीं 52 वर्षीय तसलीमा टाइम्स लिटफेस्ट में बोल रहीं थीं। वह मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों द्वारा जान से मारने की धमकियों के मद्देनजर 1994 से निर्वासन में रह रहीं हैं। बुर्का पर कर्नाटक के अखबारों में उनके लेख पर राज्य में हुए हिंसक प्रदर्शनों का जिक्र करते हुए लेखिका ने कहा कि उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिशें की जा रहीं हैं और समाज में तनाव पैदा करने के लिए उनके लेखों का दुरपयोग किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि दंगों के लिए लेखकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। दंगाई किताबें नहीं पढ़ते। दंगाई राजनीतिक मकसद से दंगे करते हैं और कर्नाटक में दंगे इसलिए हुए क्योंकि कुछ लोगों ने बुर्का पर मेरे लेख को पसंद नहीं किया। यह उनकी समस्या थी, मेरी नहीं। अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का समर्थन करते हुए तसलीमा ने कहा कि इसके बिना लोकतंत्र बेकार है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने मुझ पर विवादास्पद विषयों पर लिखने का आरोप लगाया, लेकिन यह विवादास्पद विषय नहीं है। मेरा मानना है कि बुर्का दमन का प्रतीक है, इसलिए मैं बुर्का के खिलाफ लिखती हूं।

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