नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल के बीच की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड तथा केरल सरकार से जवाब तलब किया। कोर्ट ने पूछा-जब वेद, उपनिषद या अन्य शास्त्रों में महिला-पुरुषों के बीच भेद नहीं किया गया तो सबरीमाला में ऐसा क्यों है?
क्या आध्यात्मिकता पर सिर्फ पुरुषों का अधिकार
न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पीठ ने पूछा कि क्या आध्यात्मिकता पर सिर्फ पुरुषों का ही अधिकार है। महिलाएं आध्यात्मिकता को पाने में असमर्थ हैं। प्रतिबंध को चुनौती देने वाले लॉ छात्रों के संगठन की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, ब्रह्मचर्य सिर्फ पुरुषों का मामला नहीं है। दुनिया में महिला ब्रह्मचारी भी हैं। कोर्ट ने मंदिर बोर्ड तथा सरकार को जवाब देने के लिए छह हफ्ते का समय दिया।
बताओ इतिहास
वकील राजू रामचंद्रन और के. राममूर्ति को मामले में कोर्ट का सहायक नियुक्त किया गया। कोर्ट अब सुनवाई करेगा कि क्या महिला प्रवेश बैन स्थायी किया जा सकता है या नहीं। कोर्ट ने पूछा कि सबरीमाला में महिला प्रवेश कब से बंद है, इसका इतिहास क्या है? कोर्ट देखना चाहता है, समानता के अधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में रोक कहां तक ठीक है। वह दोनों में संतुलन चाहता है। मानता है कि मंदिर धर्म स्थल है। इसे तय पैमाने में होना चाहिए। बोर्ड ने कहा, यह प्रथा 1,000 वर्ष पुरानी है।
Hindi News/ Miscellenous India / सुप्रीम कोर्ट का सवाल, जब वेदों में भेद नहीं तो सबरीमाला में क्यों?