scriptतीन दिन में देना थी रिपोर्ट, छठे दिन पहली बैठक | delay of reports in M.Y hospital | Patrika News

तीन दिन में देना थी रिपोर्ट, छठे दिन पहली बैठक

locationइंदौरPublished: Jun 29, 2017 05:00:00 pm

Submitted by:

Shruti Agrawal

एमवाय अस्पताल में कुछ ही समय में 9 और 24 घंटे में 17 मरीजों की मौत के मामले में जांच के नाम पर जिस तरह की लीपापोती की जा रही है, वह सिलसिला अस्पताल में पुराना है।

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इंदौर. एमवाय अस्पताल में कुछ ही समय में 9 और 24 घंटे में 17 मरीजों की मौत के मामले में जांच के नाम पर जिस तरह की लीपापोती की जा रही है, वह सिलसिला अस्पताल में पुराना है। कई मामलों को इसी तरह जांच के नाम पर ठंडे बस्ते में डाला जा चुका है। ताजा मामले में कमेटी द्वारा जांच तो दूर एक साथ बैठकर सदस्यों द्वारा जांच बिंदुओं पर चर्चा तक नहीं करने का मामला पत्रिका द्वारा उठाए जाने पर बुधवार को कमेटी सदस्य एमजीएम मेडिकल कॉलेज पहुंचे और बैठक की। 
बुधवार दोपहर कमेटी के सदस्य एडीएम अजयदेव शर्मा, ईएनटी विभाग के एचओडी डॉ. आरके मूंदड़ा, प्रोफेसर डॉ. एसबी बंसल, प्रशासनिक अधिकारी सतीष हिरवे, कोषालय अधिकारी वीणा जैन, पीडब्ल्यूडी के ईई निर्मल श्रीवास बायोमेडिकल इंजीनियर डॉ. पीपी बंसोड़ ने जांच के बिंदुओं पर कॉलेज में चर्चा की। बाद में कुछ सदस्यों ने अस्पताल का दौरा भी किया। बुधवार के अंक में ही पत्रिका ने जांच कमेटी की गंभीरता का मसला उठाया था। अस्पताल का पुराना इतिहास देखें तो जांच कमेटियां गठित कर अधिकतर मामलों को दबाने की बात सामने आती है। 


दो मासूमों की मौत

मई 2016 में खंडवा के आयुष (5) और जावरा के डेढ़ साल वर्षीय मासूम राजवीर की ऑक्सीजन की जगह नाइट्रस गैस सप्लाय होने से मौत हो गई थी। इस मामले में एमजीएम की जांच रिपोर्ट में इस हादसे के लिए किसी व्यक्ति का विभाग के बजाय अस्पताल में ही सिस्टम का फेल होना बताया। हालांकि, संवैधानिक कमेटी ने इस मामले में लापरवाही बरतने का जवाबदार डॉ. रामगुलाम राजदान, डॉ. ब्रजेश लाहोटी, डॉ. केके अरोरा, पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यंत्री निर्मल श्रीवास्तव और टेक्नीशियन राजेश चौहान पर कार्रवाई की अनुशंसा की। 
इस मामले में तीन जनहित याचिकाएं हाई कोर्ट में विचाराधीन हैं। सभी पर एक साथ सुनवाई की जा रही है। 


एप्रिन-बेबी सूट घोटाला

एमवाय अस्पताल में अक्टूबर 2016 में दवा के बजट से साढ़े तीन हजार एप्रिन (सफेद कोट) खरीदने का घोटाला सामने आया था। खरीदी के 15 दिन में ही पैसे चुका दिए, जबकि दवा खरीदी के वर्षों पुराने बिल लंबित थे। यहां तक की स्टॉक रजिस्टर में इन्हें दर्ज ही नहीं किया। यह सब तक जब डॉक्टर या नर्स ने खुद ही एप्रिन खरीदे थे। कुछ इसी तरह बेबी सूट खरीदी को लेकर मामला सामने आया था। इसकी खरीदी के बिल भी नहीं मिले हैं। यहां तक कि इनके वितरण का रिकॉर्ड भी अस्पताल प्रशासन के पास नहीं है। वित्तीय अनियमितता मानते हुए इसकी एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने जांच समिति गठित कर दी, लेकिन जांच के नाम पर फाइल कागजों में दबी है। 


डॉक्टरों को क्लीन चीट

आंख के तिरछेपन के इलाज के लिए साढ़े तीन साल के युवान को पिता जितेंद्रसिंह पंवार ने आरएनटी मार्ग स्थित अलोहा अस्पताल में भर्ती कराया था। 2 मई 2012 की सुबह 10 बजे ऑपरेशन टेबल पर उसकी मौत हो गई। एक साल बाद पुलिस ने एसडीएम सुधीर तारे की रिपोर्ट पर डॉ. प्रवीण पिता जगदीशप्रसाद गोयल निवासी रेसकोर्स रोड, डॉ. हेमंत अठावले निवासी इंद्रलोक कॉलोनी और डॉ. वीरेंद्र पिता रामानंद झा निवासी शालीमार टाउनशिप के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया। डॉक्टरों ने युवान को एनेस्थीसिया का ओवरडोज दिया था, जिससे उसकी जान गई। यह जांच पूरी करने में पुलिस को 15 महीने लग गए। इसका कारण मेडिकल बोर्ड की क्लीन चीट थी। पुलिस ने एमवाय के मेडिकल बोर्ड को जांच सौंपी थी। नेत्र विभाग की एचओडी डॉ. उल्का श्रीवास्तव, एनेस्थीसिया विभाग के एचओडी डॉ. एसएल लाड और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. केके अरोरा के बोर्ड ने तीनों आरोपी डॉक्टरों के बयान लेकर उन्हें क्लीन चिट दे दी। एसडीएम की जांच में मेडिकल बोर्ड की क्लीन चिट पर सवाल उठाए हैं।
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