इंदौर. 50 साल पुराने दोस्तों का साथ मिल जाए तो यादों का पिटारा खुल ही जाता है। बात मेडिकल कॉलेज की एल्युमिनाई मीट की हो तो किस्से और खास हो जाते हैं। ऐसे ही कई रोचक किस्से शुक्रवार को एमजीएम मेडिकल कॉलेज के ऑडिटोरियम में 1967 बैच की गोल्डन जुबली सेलिब्रशन में सुनाई दिए।
1967 बैच के स्टूडेंट रहे प्रणव पंड्या अभी गायत्री परिवार के प्रमुख है। उन्होंने बताया, ‘कॉलेज से जुड़ी बहुत सारी यादें आज कैंपस में कदम रखते ही ताजा हो गई। जब एजीएम में आया तब 16 साल का था। एमबीबीएस से एमडी तक के सफर के दौरान 9 साल इसी कैंपस में गुजारे। पढ़ाई में डूबे रहने के कारण कभी ज्यादा शरारतों में शामिल नहीं हुआ। पढ़ाई के बाद फॉरेन जाने की ठानी। वीजा भी मिल गया, लेकिन गुरुजी ने इनकार कर दिया तो नहीं गया।
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इसके बाद ‘भेल’ भोपाल ज्वाइन किया और कुछ महीनों बाद हरिद्वार चला गया। वहां साइंस और स्प्रिचुएलटी को लेकर रिसर्च की। धीरे-धीरे सक्सेस मिलती गई और लोग जुड़ते गए। मैंने महसूस किया कि स्प्रिचुएलटी और साइंस का कॉम्बीनेशन समाज के लिए मददगार साबित हो सकता है। ध्यान ऐसी क्रिया है जो मनुष्य को रिचार्ज करती है।
शुरुआत में शिक्षकों का सम्मानइस री-यूनियन की शुरुआत सबसे पहले टीचर्स के सम्मान के साथ हुई। डॉ. गिरीश सिपाहा, डॉ. केएल बंडी, डॉ. कुमद भगवात, डॉ. केसी खरे, डॉ. एलएस शर्मा, का सम्मान किया गया।
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हंगाामा बैच था नाम1967 बैच के सुधीर भार्गव ने बताया, ‘हमारी बैच को हंगामा बैच के रूप में जाना जाता था। हम फिल्में देखने ग्रुप में जाते थे और कई बार सीट्स न मिलने पर झगड़े भी हो जाते थे। इसके साथ ही हमने एक बार स्ट्राइक भी की। इस दौरान कैंपस के बाहर पैरेलल ओपीडी चलाई, ताकि मरीजों को प्रॉबलम न हो। बैच की एक मेंबर ने बताया, ‘हम जूनियर्स की एक ट्रेन बनवाते, जिसमें आगे एक इंजन होता था और बाकी पूरी बैच उसे पकड़कर पीछे-पीछे चला करती थी।’