विश्व जनसंख्या दिवस पर 2001 से 2011 तक हुए सामाजिक, आर्थिक बदलाव और भविष्य की संभावनाओं को तलाशती पत्रिका की विशेष रिपोर्ट..।
कुणाल किशोर@इंदौर। शहर में शिक्षा का स्तर सुधर रहा है। कामकाजी लोगों की संख्या बढ़ रही है। साल-दर-साल वाहनों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर बेहतर परिवहन के लिए सड़कों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। लेकिन ये सुविधाएं जनसंख्या की बढ़ती गति के सामने दम तोड़ रही हैं। आंकड़े बताते हैं, शहर में जितनी सुविधाएं बढ़ीं, उससे कहीं ज्यादा आबादी में बढ़ोतरी हुई। महज 10 साल में ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शहर की आबादी में 32.88 फीसदी वृद्धि दर्ज की।
नतीजा, आवाम को मिलने वाली सुविधाएं सिमटती चली गईं। जानकारों का कहना है, संतुलित विकास की नीति न होने से ऐसे हालात हो रहे हैं। अभी भी वक्त है कि संतुलित और स्थायी विकास की नीति के आधार पर काम किए जाएं, अन्यथा 2021 में हालात और बिगड़ेंगे। विश्व जनसंख्या दिवस पर 2001 से 2011 तक हुए सामाजिक, आर्थिक बदलाव और भविष्य की संभावनाओं को तलाशती पत्रिका की विशेष रिपोर्ट..।
आबादी
वर्ष 2011: जिले की आबादी 3276697 है।
वर्ष 2001: जिले की आबादी 2465827 थी।
क्या?: महज 10 साल में 32.88 फीसदी वृद्धि।
2. साक्षरता
वर्ष 2011: साक्षरता दर में 5.15 प्रतिशत का इजाफा।
वर्ष 2001: 75.15 फीसदी लोग साक्षर थे।
कैसे?: स्कूलों की संख्या ढाई गुना हो गई है।
3. आवास
वर्ष 2011: खुद के मकान 6,43342 हो गई।
वर्ष 2001: 447478 लोगों के पास अपने मकान थे।
क्या?: कीमतें बढऩे से 2 लाख की ही वृद्धि हुई।
4. बेघर
वर्ष 2011: 3886 परिवारों के पास छत नहीं है।
वर्ष 2001: 24 हजार के पास नहीं थे घर।
क्यों: नगरीय निकाय महज 7 हजार को छत दे सके।
5. वाहन
वर्ष 2011: 1567735 वाहन दौड़ रहे हैं।।
वर्ष 2001: महज 6.50 लाख वाहन रजिस्टर्ड थे।
कैसे?: मल्टीनेशनल्स कंपनियां से परचेजिंग पावर बढ़ी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट फेल हुआ।
6. स्वास्थ्य
वर्ष 2011: सरकारी व निजी समेत 313 अस्पताल हैं।
वर्ष 2001: 10 सरकारी व 58 निजी अस्पताल थे।
कैसे?: दवा बाजार और एसईजेड में कंपनियों के रुझाान ने निजी अस्पतालों को आकर्षित किया।
7. डॉक्टर
वर्ष 2011: कुल 2000 डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं।
वर्ष 2001: डॉक्टरों की संख्या महज 700 थी।
कैसे?: तीन मेडिकल कॉलेज संचालित हो रहे हैं। तीनों ही कॉलेज से 450 छात्र पास हो रहे हैं।
8. कामगार
वर्ष 2011: नौकरीपेशा की संख्या 1268195 थी।
वर्ष 2001: नौकरीपेशा की संख्या 893669 थी।
कैसे?: औद्योगिक माहौल में 10 साल में रोजगार के अवसर बढ़े। 4 लाख नए लोगों को रोजगार मिला।
बड़ी चुनौतियां-
डॉक्टरों की कमी
मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ. माधव हसानी के मुताबिक डॉक्टरों की संख्या जिस अनुपात में बढऩी थी, नहीं बढ़ सकी। 32 लाख की इस आबादी के लिए 3200 डॉक्टर चाहिए।
अस्पतालों की कमी
पिछले 15 साल से जिले में अस्पतालों की संख्या और उनकी क्षमताएं नहीं बढ़ाई गई। एमवाय अस्पताल में 1150 और अन्य सरकारी अस्पतालों में बेड क्षमता महज 450 है। इससे लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराना मुश्किल होगा।
आवासीय ढांचा
अर्थशास्त्री डॉ. गणेश कावडिय़ा के अनुसार आवासीय सरंचना को सुधारने की दरकार होगी। सरकार अर्फोडेबल हाउस लेकर आ रही है, पर सिर्फ इससे बात नहीं बनेगी। आबादी के सात साल-दर-साल समस्या बढ़ेगी।
यातायात संरचना
प्रो. कावडिय़ा के मुताबिक वाहन रोजगार के लिए जरूरी हैं। पहले आबादी की 32 फीसदी जनता ही काम करती थी। अब यह संख्या बढ़कर 55 प्रतिशत हो गई है। यह संख्या हर साल बढ़ेगी। उन्हें यातायात की भी दरकार है।