शुक्रिया इंदौर..! 100 वर्षों तक लहरों पर दौड़ते रहे सुख-दुख, बिलावली तालाब का शताब्दी वर्ष समारोह आज, खट्टी-मीठी यादों को बिलावली तालाब ने किया साझा
शहर की प्यास बुझाने वाली जलराशि का बिलावली तालाब शताब्दी वर्ष मना रहा है। मालवी लोकोक्ति पग-पग रोटी, डग-डग नीर को चरितार्थ करते बिलावली तालाब ने 100 वर्षों की लंबी पारी को बयां किया, जिसे पत्रिका जर्नलिस्ट नितेश पाल ने बकलम किया-
इंदौर स्टेट का महाराजा बनते ही तुकोजीराव होलकर ने शहर के दक्षिण-पूर्व में बड़ी जलराशि को लेकर परिकल्पना की तो बिलावली गांव में मेरा अस्तित्व नजर आया। मुझे आकार देने का काम उन्होंने 1906 में शुरू करवाया। 10 वर्षों की अथक मेहनत से 600 एकड़ क्षेत्र में 1916 में मैंने आकार लिया और मुझे बिलावली तालाब नाम दिया गया।
- पहली बार जब बारिश की बूंदों का आचमन किया, तभी संकल्प ले लिया था कि इंदौर की प्यास बुझाने की हर मुमकिन कोशिश करता रहूंगा। इस दौर में हंसी-खुशी के पलों के साथ कई उतार-चढ़ाव आए। हर पल मिले इंदौर के साथ ने मुझे जीने की नई राह दिखाई। बच्चों को पिकनिक मनाते देखना मुझे हमेशा सुकून देता है, युगलों को खिलखिलाते देख नई ऊर्जा महसूस करता हूं। शहर में रोजगार का बड़ा साधन होने के साथ दुनिया में पहचान दिलाने वाली कपड़ा मिलों में सालभर पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उठाई।
खुशी महसूस हूं, जब 20 गांवों के अन्नदाताओं की पसीने से सींची फसलों को लहलहाने में मदद करता हूं। अब इंदौर मेरी 100वीं वर्षगांठ मना रहा है, मेरी तो खुशियों का ठिकाना ही नहीं है। धुंधली पड़ी यादों को कुरेदा तो याद आया कि 80 के दशक में जब नर्मदा शहर की जरूरतों को पूरा करने पहुंची तो कहा जाने लगा अब मेरी जरूरत नहीं। मैं बिना घबराए शहर की सेवा मेें तत्पर रहा। नतीजा, न तो मेरा कद कम हुआ और न ही मेरे पानी की जरूरत। शहरवालों को आज भी रोजाना 3 एमएलडी पानी दे रहा हूं। जलस्तर को बढ़ाकर अनगिनत घरों के बोरिंग को जिंदा बनाए हूं।
- किंतु यह भी सच है कि हमेशा शहर को देने की नेकनीयती को मेरी कमजोरी समझा गया। मुझे जिंदा रखने वाली चैनल्स चाहे राऊ हो, कैलोद-करताल या फिर लिंबोदी चैनल सभी पर कभी किसी संत ने, कभी किसी महंत ने तो कभी किसी जमीन के जादूगर ने नजर डाली। चैनल रोककर मुझे सुखाने तक की कोशिश की गई। मेरे किनारे पर बनी मल्टी में फ्लैट लेकर लेक-व्यू घरवालों ने ही मेरे पानी को प्रदूषित करने की कोशिश की। मेरे शहर की आबोहवा का ही असर है, जिसमें मैं कुछ लोगों को याद रहा। मेरी अहमियत उनके जेहन में थी, उन्होंने मेरे लिए संघर्ष किया।
मैं गर्व से कह सकता हूं कि 100 सालों की सेवा के बदले जो सम्मान मिला, वह आसानी से नसीब नहीं होता। शायद मैं देश का पहला तालाब हूं, जिसका शताब्दी वर्ष समारोह मनाया जा रहा है। मेरे लिए इससे ज्यादा गर्व की क्या बात होगी, जब रविवार सुबह मेरे किनारों पर शहर की अगली पीढ़ी अपनी कल्पनाओं की उड़ान को चित्रों में समाहित कर मेरी धरा को सम्मानित करेगी। मुझे और मेरी जैसी दूसरी जलराशियों को प्रतिमा विसर्जन के प्रदूषण से बचाने वालों का शॉल-श्रीफल से सम्मान होगा, वहीं मुझे जिंदा रखने के लिए गाद रूपी बुढ़ापे को दूर करने वालों को भी सम्मान दिया जाएगा। ऊपर से गुजरते हवाई जहाज मेरे अंदर रहने वाली मछलियों और अन्य जीवों को दाने की शक्ल में भोजन देंगे। यह पल मुझे आजीवन याद रहेगा।
धन्यवाद मेरे शहर.. आपका बिलावली तालाब