scriptजर्मन तकनीकी कोच के लिए ट्रेंड वर्कर ही नहीं | Railway indore don't have any expert to maintain German Technology coach | Patrika News

जर्मन तकनीकी कोच के लिए ट्रेंड वर्कर ही नहीं

locationइंदौरPublished: Dec 01, 2016 06:42:00 pm

Submitted by:

Narendra Hazare

– ट्रेनों के मेनटेनेंस के लिए करीब 250 वर्करों की जरूरत लेकिन 170 ही संभाल रहे काम
– वर्षों से ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल होने नहीं गए वर्कर

railway indore

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इंदौर. इंदौर-पटना ट्रेन हादसे की प्रारंभिक जांच में भले ही इंदौर रेलवे स्टेशन की गलती सामने नहीं आई, लेकिन यहां के कोचिंग डिपो, पिट लाइन और सिक लाइन की अव्यवस्थाओं के चलते कभी-भी बड़ा हादसा हो सकता है। अत्याधुनिक जर्मन टेक्नालॉजी से बने एलएचबी कोच की चार ट्रेनें यशवंतपुर-इंदौर से रवाना होती है।

यशवंतपुर एक्सप्रेस और कोचुवैली एक्सप्रेस, इन दोनों गाडिय़ां का मेनटेनेंस इंदौर के डिपो में होता है। इनके अलावा इंदौर-मुंबई के बीच चलने वाले दुरंतो एक्सप्रेस का सामान्य मैन्टेनेंस यहीं किया जाता है। शहर को ट्रेनें तो आधुनिक तकनीक की मिल गई हैं, लेकिन उनकी देख-रेख और मरम्मत करने वाले कर्मचारियों को अभी तक आधुनिक ट्रेनिंग नहीं दी गई है। पुराने तरीकों से ही इन आधुनिक कोचों का मैनटेनेंस किया जा रहा है। यहां तक तो ठीक है रेलवे द्वारा अपने मेनटेनेंस स्टाफ को अपग्रेड करने के लिए 15-15 दिन का ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाता है, जिसमें गाड़ी की मेनटेनेंस आदि की आधुनिक तकनीकें सिखाई जाती हैं, लेकिन इंदौर के रेलवे कोचिंग डिपो कर्मचारियों की कमी के चलते पिछले कई सालों से वर्करों को ट्रेनिंग प्रोग्राम में नहीं भेजा गया है।

नहीं उठाए कदम
पिट लाइन में अव्यवस्था और पुराने औजारों से चल रहे काम के खुलासे के बाद अब एक खामी और सामने आई है। डिपो की मेनटेनेंस टीम के सीनियर सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, इंदौर के डिपो में 24 गाडिय़ां का मेनटेनेंस किया जाता है। इतनी गाडिय़ों के लिए कम से कम 250 ट्रेंड वर्करों की जरूरत हैं, लेकिन इंदौर में अभी सिर्फ 170 लोग ही हैं। कर्मचारी यूनियन द्वारा वर्करों की कमी को लेकर कई बार शिकायत की है, लेकिन कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। इसके अलावा सफाई एवं अन्य स्टॉफ मिलाकर यहां 380 लोगों का ही स्टॉफ है जो कम से कम 550 होना चाहिए। रेलवे ने उज्जैन और बड़ौदा में वर्करों को ट्रेंड करने के लिए ट्रेनिंग स्कूल बनाई हैं, लेकिन इंदौर से करीब 6 साल से किसी को भी नहीें भेजा गया है, यहां स्टॉफ कम होने के कारण वर्करों को ट्रेनिंग पर नहीं भेजा जा रहा है।

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