मां संतोषी को गजानन की पुत्री माना जाता है। इसी तरह पार्वती मां संतोषी की दादी मां हैं। शिवशंभु मां संतोषी के दादाजी हैं।
इंदौर। मां संतोषी जिनके नाम में ही संतोष का पाठ छिपा है। इन्हें प्रेम, क्षमा, खुशी, शांति, आशा और सबसे बढ़कर आत्मसंतोष की प्रतीक माना जाता है। यह मान्यता है कि मां संतोषी के व्रत को लगातार 16 शुक्रवार तक करने वाले भक्तों को जीवन में परम संतोष की प्राप्ति होती है।
मां संतोषी अपने भक्तों को पारिवारिक मूल्यों के साथ दृढ़ संकल्प की शिक्षा देती हैं। ये भक्तों को संकट से बाहर आने के लिए स्वप्रेरित करती हैं। संतोषी मां को दुर्गा का अवतार भी कहां जाता है। संतोषी मां के पारिवारिक जीवन के बारे में पुराणों में निम्न उल्लेख मिलता है।
मां संतोषी को गजानन की पुत्री माना जाता है।
रिद्धी-सिद्धी मां संतोषी की माताएं हैं।
इसी तरह पार्वती मां संतोषी की दादी मां हैं।
शिवशंभु मां संतोषी के दादाजी हैं।
मां सतोषी के व्रत की विधी-
मां संतोषी के व्रत के लिए सबसे पहले मन की शांति और अन्य लोगों के लिए स्नेह भाव होना अति आवश्यक है। सोमवार की सुबह सिर से स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद एक साफ पूजा स्थल पर संतोषी मां का चित्र रखें। यहां पानी से भरा छोटा सा कलश रखें। मां की तस्वीर को फूल-माला का अर्पण करें। मां को गुण-चने का भोग बेहद रुचिकर है। इसलिए माता को गुड-चने का भोग और केला चढ़ाए। मां के समक्ष घी का दीपक जला कर मन में उजियारा फैलाने की प्रर्थना करें। इसके बाद संतोषी मां का जयकारा लगाकर माता की कथा आरंभ करें। आरती करें फिर प्रसाद ग्रहण करें। यदि शरीर सक्षम हो तो पूरे दिन उपवास रखकर सिर्फ प्रसाद को ग्रहण करें। यदि ना कर सके तो पूजा के समय एकाअसना होकर भोजन करें। आपको यह नियम लगातार 16 शुक्रवार तक करना होगा। इसके उपरांत संतोषी मां की कथा का उद्यापन करें। उस उद्यापन में 8 से 16 बच्चों को भोजन कराना होगा।
विशेष ध्यान रखें- संतोषी मां के व्रत के समय खट्टा खाना सर्वथा वर्जित है। इसलिए इस व्रत को करते समय भोजन सामग्री बनाते समय पूर्णतः सजग रहें। किसी भी खाद्यपदार्थ में खटाई का उपयोग ना करें। उद्यापन के दिन जो भोजन बनाएं उसमें भी खटाई का उपयोग बिलकुल भी ना करें। उद्यापन के दिन जिन बच्चों को भोजन कराएं उनके परिजनों से भी विनती करें कि उद्यापन के दिन बच्चों को खटाई से दूर रखें। साथ ही बच्चों को उपहार में पैसे बिलकुल भी ना देँ।
संतोषी माता के व्रत की पूजन सामग्री-
कलश
पान के पत्ते
फूल
दिया-घी-बाती
अगरबत्ती
कपूर
हल्दी
कुमकुम
संतोषी मां की तस्वीर
संतोषी मां की व्रत कथा की पुस्तिका
प्रसाद के लिए गुड़-भुना चना
दो केले
व्रत कथा-
एक वृद्ध स्त्री का एक ही पुत्र था। विवाह के बाद वृद्ध स्त्री अपनी सुशील बहू से घर का पूरा कार्य करवाती लेकिन उसे ठीक से भोजन भी नहीं देते। पुत्र यह सब देखकर चुप रहता। बहू दिन भर उपले थेपती, चूल्हा-चौका करती, बर्तन-कपड़ों के बीच दिन बीत जाता लेकिन सास का व्यवहार ना बदला। इसी समय वृद्ध स्त्री का पुत्र काम के कारण परदेस चला गया। पुत्र के जाने के बाद सास का व्यवहार बहू के प्रति और क्रूर हो गया। एक बार बहू मंदिर गई तो उसने देखा बहुत सी स्त्रियां संतोषी मां का व्रत कर रही थीं। बहु ने स्त्रियों से व्रत की जानकारी ली। स्त्रियों ने बताया कि शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना। सच्चे मन से मां का पूजन करना खटाई भूल कर भी ना खाना। व्रत का विधान सुन बहू संयम से व्रत करने लगी।
बहु हर शुक्रवार मां से प्रार्थना करती कि मां जब पति के दर्शन होंगे मैं अपने व्रत का उद्यापन करूंगी। अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वपन में दर्शन देकर घर जाने का आदेश दिया। तो पति ने कहा सेठ का सारा सामन अभी बिका नहीं है। रुपया भी नहीं आया। मां की कृपा से अगले ही दिन सेठ का सारा सामान बिक गया तो सेठ ने भी पति को घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर पुत्र ने अपनी मां और पत्नी के हाथ में काफी रुपए रखें। पत्नी ने कहा यह सब संतोषी मां की कृपा का फल है । मुझे अब उनका उद्यापन करना है।
उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की तैयारी की। पड़ोस की एक स्त्री बहू के सुख से ईष्या करने लगी । उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरुर मांगना। उद्यापन के भोजन के समय बच्चे खटाई के लिए मचलने लगे तो बहू ने उन्हें पैसा देकर बहलाने की कोशिश की। बच्चे उस पैसे से दुकान से ईमली की खटाई खरीदकर खाने लगे तो मां ने बहू पर कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो एक अन्य भक्त स्त्री ने बहू को बच्चों द्वारा खटाई खाने की बात बताई। बहू तुरंत मां की शरण में गईं और मां के सामने प्रण किया कि वह अगले शुक्रवार फिर से उद्यापन करेगी यदि पति ना आया तो भूखे रहकर अपनी जान दे देगी। संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला इतना धन कमाया है इसलिए राजा ने कर के लिए बुलाया था। वह मैंने चुका दिया। अगले शुक्रवार बहू ने पूरे विधी-विधान से व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौ माह के बाद उनके घर सुंदर-स्वस्थ बच्चा हुआ। अब सास-बहू-बेटा और बच्चा खुशी-खुशी संतोष पूर्वक रहने लगे।