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कल्याणकारी योजना पर खर्च बढ़ाएगी सरकार, गरीबी की रचेगी नई परिभाषा

Published: Jan 06, 2017 09:06:00 pm

नए साल 2017 में सरकार पब्लिक स्पेंडिंग यानी लोक कल्याणकारी योजनाओं पर अधिक खर्च करने जा रही है। नोटबंदी के बाद बढ़ी परेशानियों ने सरकार के लिए यह और जरूरी कर दिया है।

Welfare schemes

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नई दिल्ली. नए साल 2017 में सरकार पब्लिक स्पेंडिंग यानी लोक कल्याणकारी योजनाओं पर अधिक खर्च करने जा रही है। नोटबंदी के बाद बढ़ी परेशानियों ने सरकार के लिए यह और जरूरी कर दिया है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, खासकर उन स्कीमों और परियोजनाओं पर अधिक खर्च किया जाएगा, जिनसे गरीबी कम करने में मदद मिले, ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो। इस क्रम में वर्तमान ग्रामीण सामाजिक सहायता कार्यक्रमों के स्वरूप में भी बदलाव किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार सरकार जिन मामलों पर गंभीरतापूर्वक काम कर रही है, उनमें गरीबी की पुनर्परिभाषा, संशाधनों के आवंटन में बदलाव, कल्याणकारी स्कीमों के लिए आवंटित फंड और निगरानी जैसे मामलों में पंचायतों के अधिकार बढ़ाने जैसे मामले भी शामिल हैं। इस बार खपत के आधार पर नहीं, बल्कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति आधारित जनगणना के आधार पर गरीबों की पहचान की जाएगी और फिर पंचायतों को वित्तीय अधिकार देकर उन्हें गरीबी से आजाद किया जाएगा। सरकार की नई योजना से लगभग10.7 करोड़ उन परिवारों को मदद मिल सकती है, जिनकी पहचान सहायता पाने लायक, के रूप में की गई है।

एक करोड़ परिवार आएंगे गरीबी से बाहर

सरकार की इस योजना का मकसद वर्ष २०१९ तक देशभर की लगभग ५० हजार पंचायतों से १ करोड़ परिवारों को गरीबी के दलदल से बाहर निकालना है। इसके लिए केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों के खर्च के तौर-तरीकों को भी बदला जाएगा। माना जा रहा है कि विकासपरक योजनाओं के स्वरूप में तब्दीली से सरकार के राजनीतिक आधार में भी बदलाव आएगा। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि सरकार की योजना इस बार न सिर्फ खर्च बढ़ाना है, बल्कि खर्च के दायरे को भी बढ़ाना है, ताकि अधिक से अधिक लोगों को उसका लाभ मिले। १३वें और १४वें वित्त आयोग पहले ही इस तरह की सिफारिश कर चुके हैं, हालांकि उस स्तर पर अभी तक काम नहीं हो पाया है। वित्त आयोगों ने विकास योजनाएं तय करने और उनपर खर्च के मामले में पहले ही राज्यों को अधिक अधिकार देने की सिफारिश कर चुके हैं।

पंचायतों को मिलेगा अधिक अधिकार

नई योजना के तहत पंचायतों को अधिक ताकतवर बनाया जाएगा। वित्तीय आवंटन के साथ ही स्कीमों के क्रियान्वयन व प्राथमिकता जैसे मामलों में भी पंचायत को अधिकार अधिकार दिया जाएगा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था मामलों के एक्सपर्ट और जेएनयू के प्रोफेसर डॉ संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों को मजबूती मिलने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था ताकतवर होगी और वहां खुशहाली बढ़ेगी। इसके अलावा भारतीय राजनीति में भी इससे एक तरह का संरचनात्मक बदलाव आएगा। मेहरोत्रा के अनुसार, पंचायतों को वित्तीय अधिकार मिलने से देश की राजनीति का केंद्र गांव बन जाएगा।

गरीबी की परिभाषा होगी तय

सरकार गरीबी की परिभाषा भी तय करने जा रही है। खपत पर आधारित वर्तमान परिभाषा के बदले सरकार २०११ की सामाजिक-आर्थिक जाति आधारित जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़ों के आधार पर गरीबों की पहचान करेगी। इसके लिए एक संस्थागत ढांचा तैयार जाएगा। वर्तमान परिभाषा में बदलाव से अधिक संख्या में लोग इसके दायरे में आएंगे। एसईसीसी आंकड़ों में पंचायत और ऐसे परिवारों की पूरी संख्या और लोगों के नाम हैं, जिन्हें सामाजिक सहायता की जरूरत है। गांवों में रहने वाले लगभग १८ करोड़ परिवारों में से लगभग १०.७ करोड़ उन परिवारों की पहचान की गई है, जो सहायता के योग्य हैं। गरीबों की पहचान करने में सरकार विश्व बैंक की भी सहायता लेगी।

पंचायतों की स्थिति
देश में पंचायतों की संख्या ही नहीं, बल्कि क्षमता भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में जहां पंचायत मजबूत स्थिति में हैं और कई मामलों में सरकारी नीति, कार्यक्रमों और योजनाओं की रूपरेखा व क्रियान्वयन में अहम भूमिका निभाती हैं, वहीं उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों की पंचायतें भी कमजोर हैं और उन्हें वित्तीय मामलों में अभी भी कम अधिकार ही मिले हुए हैं।

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