नई दिल्ली. पिछले कुछ वर्षों से बुरे दौर से गुजर रही डायमंड इंडस्ट्री का संकट नोटबंदी के कारण और गहरा गया है। जबकि दुनिया के सभी जेम डायमंड कट और पॉलिशिंग का लगभग 80 फीसदी काम भारत में होता है। कट और पॉलिशिंग से भले कई हजार मर्चेंट जुड़े हुए हैं, लेकिन इन पर लगभग 100 कंपनियों का वर्चस्व है। दुनिया की टॉप मैनेजमेंट कंसलटैंसी कंपनी बेन एंड कंपनी के अनुसार चूंकि इन कंपनियों की अधिकांश बिक्री कैश में होती है, ऐसे में नोटबंदी का इन पर काफी बुरा असर हुआ है। इसका असर लेबर इंटेंसिव सेक्टर होने के कारण रोजगार पर भी दिख रहा है। इससे बड़ी मुश्किल से 2008 के विश्वव्यापी आर्थिक सुस्ती से उबरने वाली डायमंड एक बार फिर बड़े संकट की तरफ बढ़ रही है। वैसे भी डायमंड प्राइसेज में 2011 से लगातार कमी आ रही है।
क्या है इंडस्ट्री का आकार
एंग्लो अमेरिकन पीएलसी डी बीयर्स यूनिट के अनुसार डायमंड इंडस्ट्री का आकार पिछले तीन साल से लगभग एक जैसा है। 2013 में यह इंडस्ट्री 79 अरब डॉलर की थी और इस साल इसके इसी के करीब रहने की संभावना है। इसकी वजह लगभग 5 साल से सप्लाई में इजाफा नहीं होना है। सबसे बुरा असर रिटेल ट्रेड का है। मीडिया खबरों के मुताबिक पीसी ज्वैलर्स समेत प्रमुख रिटेल कंपनियों के फुटफॉल में 8 नवंबर को मोदी द्वारा 500 और 1000 रुपए के करंसी नोट बंद करने की घोषणा के बाद 60 फीसदी तक की कमी आ गई है।
कट-पॉलिश करने वालों पर गंभीर असर
कट और पॉलिश करने वालों पर सबसे अधिक असर हुआ है। बेन एंड कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार डायमंड वैल्यू चेन में सबसे कम मार्जिन पर काम होता है। वैसे भी कीमतों में लगातार कमी से पहले से मार्जिन बहुत कम हो गया था। सेल्स में लगातार कमी से डायमंड इंडस्ट्री के समक्ष इन्वेंट्री की भी बड़ी समस्या है, क्योंकि मजबूत डिमांड की उम्मीद में इसमें इजाफा होता गया।
कीमतों, सेल्स पर असर
इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि पिछली दिवाली में एक कैरेट डायमंड जहां आपको 21000 रुपए में मिलता, वहीं अभी यह 16000 रुपए में मिल रहा है। दुनियाभर में जिने रफ डायमंड का खनन होता है, उसके लगभग 90 फीसदी को सूरत भेजा जाता है। छोटे और सस्ते डायमंड के मामले में सूरत की मोनोपॉली है। मुंबई के बाद सूरत भारत का सबसे बड़ा डायमंड ट्रेडिंग हब भी है। सिर्फ सूरत में 8 लाख से अधिक लोग 80 हजार करोड़ की इस इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। यहां 5000 से अधिक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं। अधिकांश ने अपना उत्पादन लगभग 25 फीसदी कम कर दिया है। लोगों को या तो निकाला जा रहा है या फिर उनकी सैलरी में 20 या अधिक फीसदी की कटौती की जा रही है। मुंबई के भारत डायमंड बॉर्स, जहां 2500 से अधिक डायमंड मर्चेंट हैं, वहां की भी स्थिति खस्ता है।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड, जेम्सफिल्ड, सीआईएल का हाल
डायमंड इंडस्ट्री की हालत कमजोर होती देख स्टैंडर्ड चार्टर्ड पीएलसी ने इस साल जून में अपने 2 अरब डॉलर के डायमंड फाइनेंशिंग बिजनेस को बाय-बाय करने का फैसला लिया था। एक्सपर्ट के अनुसार बढ़ते डिफॉल्ट को देखते हुए वित्तीय संगठन ने यह निर्णय लिया, जिससे इंडस्ट्री के समक्ष उपस्थित क्रेडिट की समस्या को आसानी से समझा जा सकता है। दुनिया में एमेराल्ड की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी जेम्सफिल्ड पीएलसी ने नोटबंदी के कारण पिछले सप्ताह अपनी दिसंबर सेल्स को स्थगित करने का फैसला किया। अब कंपनी एमेरॉल्ड का ऑक्शन फरवरी में करेगी। इसी तरह रूस की सबसे बड़ी खनन कंपनी अल्रोसा पीजेएससी भी इस मामले में उत्साहित नहीं है। यहां तक कि सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने भी नवंबर में नोटबंदी समेत अन्य कारणों से एक ऑक्शन से खुद को अलग कर लिया।
क्या है उम्मीद
हालांकि एमेरॉल्ड ने कहा है कि नोटबंदी के असर कुछ महीनों में कम हो जाएंगे। इंडस्ट्री से जुड़ी कंपनियों का मानना है कि नोटबंदी का अधिक असर भारतीय बाजार में बिकने वाले सस्ते डायमंड पर ही अधिक है। चूंकि भारत अभी भी जेम डायमंड का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। ऐसे में बेन का भी मानना है कि अगले साल रफ डायमंड की मांग में तेज इजाफा हो सकता है। इसके 2019 तक लगभग 15 करोड़ कैरेट होने की संभावना है।
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