मुंबई. पांच सौ तथा एक हजार रुपए के पुराने नोटों को चलन से बाहर करने के सरकार के फैसले के बाद उत्पन्न नकदी संकट से दिसंबर में मैन्युफैक्चरिंग (विनिर्माण क्षेत्र) क्रियाकलापों में गिरावट दर्ज की गई। मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने में लगी मोदी सरकार के लिए यह बड़ा झटका है। मैन्युफैक्चरिंग के विस्तार से ही सरकार रोजगार से जुड़े अपने वादों को अमलीजामा देने में सफल हो सकती है। निक्केई द्वारा विनिर्माण क्षेत्र के लिए जारी पर्चेङ्क्षजग मैनेजर्स सूचकांक (पीएमआई) नवंबर के 52.3 से घटकर 49.6 पर आ गया। सूचकांक का 50 से नीचे रहना उत्पादन में गिरावट और 50 से ऊपर रहना इसमें बढ़ोतरी दर्शाता है, जबकि 50 पर रहना स्थिरता का द्योतक है।
निक्केई ने कहा है कि दिसंबर में कंपनियों के नये ऑर्डरों तथा उत्पादन दोनों में 2016 के दौरान पहली बार गिरावट देखी गई। इस दौरान लागत मूल्य में तेजी से मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का संकट और बढ़ गया। ऑर्डर में गिरावट को देखते हुए कंपनियों ने कच्चे माल की खरीद कम कर दी तथा कर्मचारियों की छंटनी की। खबरों के मुताबिक देशभर में 6000 से अधिक इंडस्ट्रियल क्लस्टर्स में हजारों कामगारों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। मैन्युफैक्चङ्क्षरग ही नहीं, कंस्ट्रक्शन और सर्विस सेक्टर भी इस दौरान बुरी तरह से प्रभावित हुए।
अर्थशास्त्री लीमा की क्या है प्रतिक्रिया
निक्केई के लिए रिपोर्ट तैयार करने वाली मार्किट की अर्थशास्त्री पॉलियाना डी लीमा ने इन आंकड़ों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि नोटबंदी के फैसले के बावजूद नवंबर में उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज करने के बाद साल के अंत में विनिर्माण क्षेत्र गिरावट में चला गया। अर्थव्यवस्था में पैसों की कमी के कारण उत्पादन तथा नए ऑर्डर में निगेटिव वृद्धि हुई। इससे 2016 में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई में लगातार जारी विकास का क्रम टूट गया। नकदी की कमी के कारण कंपनियों ने कच्चा माल की खरीद में कमी तथा कर्मचारियों की छंटनी की।
नवंबर में इन्वेंट्री से और बिगड़ा मामला
इससे पहले नवम्बर में नोटबंदी का मामूली असर दिखा और उत्पादन में इजाफा दर्ज किया गया था, हालांकि इसकी व़ृद्धि दर कम हो गई थी। पीएमआई सूचकांक अक्टूबर के 54.4 से गिरकर नवम्बर में 52.3 पर आ गया था। कंपनियों को उम्मीद थी कि नोटबंदी के बाद पैदा हुई नकदी की किल्लत जल्द ही दूर हो जाएगी और इसलिए उन्होंने उत्पादन कम करने की बजाय इन्वेंट्री तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया था।
जनवरी में बरकरार रहेगा संकट!
दिसंबर खराब जाने तथा इन्वेंट्री और लागत बढऩे से जनवरी के बारे में इंडस्ट्री अधिक उत्साहित नहीं है। अर्थशास्त्री लीमा ने कहा कि जनवरी के आंकड़े आने के बाद ही यह पता चल सकेगा कि विनिर्माण क्षेत्र इस झटके से जल्द उबरने में कामयाब रहेगा या नहीं। दिसम्बर में कच्चा माल की कीमतें बढऩे से कंपनियों की औसत लागत लगातार 15वें महीने बढ़ी है। हालांकि, नवम्बर से इसकी वृद्धि दर भी तेज होती जा रही है। वहीं, उत्पाद मूल्य में अगस्त के बाद सबसे धीमी बढ़ोतरी देखी गई। नकदी की कमी के कारण कंपनियां पुराने ऑर्डरों को पूरा करने में भी सुस्त रहीं और उनका बाकी काम लगातार सातवें महीने बढ़ा है।
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