रेलवे 500 KM प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चलाने पर कर रहा विचार
भारतीय रेलवे ने ‘मिशन 350 प्लस’ के तहत अल्ट्रा हाई स्पीड ट्रेन के बारे में सोचना शुरू कर दिया है
नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने मुंबई-अहमदाबाद के बीच 350 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाली बुलेट ट्रेन का काम शुरू करने के बाद अब देश में 500 किलोमीटर प्रति घंटा से भी अधिक गति पर चुंबकीय शक्ति से हवा में उडऩे वाली ट्रेनों की ऐसी अत्याधुनिक तकनीक लाने की योजना बनाई है जो वायुयान की गति से होड़ ले सके। रेलवे बोर्ड के अनुसार भारतीय रेलवे उच्च गति वाली गाडिय़ों की तकनीक के मामले में अग्रणी बनना चाहती है और उसने भविष्य की अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी पर काम करने वाली विदेशी संस्थाओं से तकनीकी साझेदारी करके मैगलेव-2 (चुंबकीय लेविटेशन) और हाइपरलूप जैसी तकनीक को लाने का इरादा किया है जो अभी अनुसंधान के चरण में हैं और फिलहाल किसी भी देश ने उसे अपनाया नहीं है।
रेलवे बोर्ड में सदस्य (रोलिंट स्टॉक) हेमंत कुमार ने बुधवार को संवाददाताओं को बताया कि हम विकसित देशों से तकनीक आयात करके दूसरे दर्जे की रेल सेवा देने के सिंड्रोम से उबर कर टेक्नोलॉजी लीडर बनने जा रहे हैं। भारतीय रेलवे ने ‘मिशन 350 प्लस’ के तहत अल्ट्रा हाई स्पीड ट्रेन के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। रेलवे बोर्ड ने विश्वभर की आधुनिक रेल प्रणालियों से इस बारे में अभिरुचि पत्र आमंत्रित किए जिसे छह सितंबर को खोला जाएगा। इसके बाद प्रस्ताव आमंत्रित किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि अभी तक चार कंपनियों ने अभिरुचि पत्र जाहिर किए हैं। अभी तक स्विस रैपिड, क्वाड्रालेव, ईटी3 ग्लोबल एलॉयन्स और हाइपरलूप ट्रांसपोर्ट टेक्नोलॉजी कंपनियों ने अभिरुचि पत्र भेजे हैं जो मुख्यत: मैगलेव-2 तथा हाइपरलूप प्रौद्योगिकी पर काम कर रहीं हैं। उन्होंने बताया कि मैगलेव-1 प्रौद्योगिकी पर अभी जापान, जर्मनी, दक्षिण कोरिया और चीन में गाडिय़ां चल रहीं हैं। पहली पीढ़ी की इस तकनीक में चुुंबकीय प्रतिकर्षण बल से गाड़ी चलती है जबकि मैगलेव-2 यानी दूसरी पीढ़ी की तकनीक में चुंबकीय आकर्षण बल का प्रयोग किया गया है जिसे अधिक सुरक्षित माना जाता है। इसमें नए सुपर कंडक्टर का प्रयोग होने से ऊर्जा की खपत कम होती है।
उन्होंने बताया कि इस तकनीक में गाड़ी गतिमान होते ही जमीन से थोड़ा ऊंचा उठ जाती है और फिर चुंबकीय बल से आगे बढ़ती है। हाइपरलूप की तकनीक की जानकारी देते हुए कुमार ने बताया कि इसमें दो तकनीक काम आतीं है, पहली चुंबकीय लेविटेशन तकनीक तथा दूसरी लूप वैक्यूम तकनीक। इसके अंतर्गत ट्रेन कैप्सूल की तरह होगी और पाइपलाइन की तर्ज पर एक चारों ओर से ढकी हुई लाइन होगी जिसमें ट्रेन जमीन से ऊपर उठ कर हवा में ही चलेगी, पर इसमें निर्वात पैदा करके एक तरफ से वायुदाब लगाया जाएगा जिससे ट्रेन बहुत अधिक गति से चल सकेगी।
लाइन बिछाने में कम आएगी लागत
उन्होंने बताया कि अनुसंधानकर्ताओं का दावा है कि हाइपरलूप तकनीक वाली गाड़ी की अधिकतम गति एक हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार पर भी चल सकेगी। यह आंकड़ा वायुयान की गति से भी अधिक है। गाड़ी चलाने के मार्ग, उसकी लागत आदि के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस अत्याधुनिक गाड़ी के मार्ग के बारे में अभी कुछ भी नहीं सोचा गया है। जहां तक लागत का सवाल है तो मैगलेव -2 की लाइन बिछाने में बुलेट ट्रेन की लाइन से कम ही लागत आएगी।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने साफ किया कि यह गाड़ी रेलवे की अन्य परियोजनाओं के साथ-साथ चलेगी और इसे निजी क्षेत्र के सहयोग से एक विशेष संयुक्त उपक्रम संचालित करेेगा। दो सितंबर को होने वाले सम्मेलन में अमरीका, जर्मनी, स्पेन, स्विट्•ारलैण्ड, जापान सहित कई देशों के अग्रणी रेल तकनीक निर्माता शिरकत करेंगे।
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