चितरंजन शैलवन व इको टूरिज्म झिंझरी कटनी में हैं पाषाणयुग की कलाकृति, म्यूजियम में सुरक्षित हैं अवशेष
बालमीक पाण्डेय @ कटनी/जबलपुर। किताबों में आपने आदि मानव, पाषाण युग की खूब बातें पढ़ी होंगी। आपने जाना होगा कि कैसे आदि मानव का जन्म हुआ, दिमाग का विकास, पले बढ़े और फिर कैसे इस मानव स्वरूप को पाया। आदि मानव के रहन, सहन, उनके हथियार, शिकार और जीवनशैली के 10 हजार वर्ष पुराने इतिहास को संजोये हुए है कटनी शहर। पाषाण युग की कलाकृति व अवशेषों से भरा पड़ा झिंझरी स्थित चितरंजन शैल वन भले ही उपेक्षित हो, लेकिन इतिहास की अमिट छाप को संकलित किए हुए हैं। शिलाओं की आकृति और अवशेष यह आभाष कराते हैं कि आदि मानव यहां रहे और जीवन निर्वाह किया।
यह है शैलवन की स्थिति
कटनी कलेक्टर निवास से सटा हुआ व वन मंडल कार्यालय के ठीक बगल में स्थित चितरंजन शैलवन है। वन परिसर में लगभग 5 बड़ी चट्टानों में आदिम मानव युग की 20 से अधिक कलाकृतियां व आकृतियां देखने को मिल रहीं हैं। इसे इतिहासकार आज से लगभग 10 हजार वर्ष पुरानी बता रहे हैं। जिले का एक ऐसा मात्र स्थान है जो पाषाणयुग होने की पुष्टि करता है। 2006 में यहां पर आवश्यक व्यवस्थाएं जुटाई गईं थी, जो नाकाफी हैं।
यह संदेश दे रहीं आकृतियां
वन विभाग कार्यालय में बनाए गए म्यूजियम हॉल में शिलालेखों में प्रदर्शित आकृतियों को उकेरा गया है वह मध्य पाषाण काल में जीवन, शिकार व शिकारी की जानकारी, आदि मानव का जीवन की जीवंतता, अतीत की स्मृतियां व हलचल, पाषाणकाल की श्रेष्ठ कलाकृति, वन महिष, हाथों के प्रतीक चिन्ह, अपराजित योद्धा के चित्र, वनो के मुखिया की जानकारी, मानव व वन्य प्राणी, नृत्य की कलाकृति, नीलगाय, नृत्य करते हुए मानव, जागो भाई का चित्र्र जातिगत वैर व हरिण, आखेट की तैयारी, शिकारियों से घबराए वन्य प्राणी, बिछड़ा हुआ प्राणी, कूबड़दार बैल, वाराह सहित वन्य प्राणियों के प्रेम प्रदर्शन के चित्र उभरे हुए हैं। यह सभी 10 हजार वर्ष पूर्व के हैं।
उपेक्षित है धरोहर
आदिम मानव युग के इस सुंदर इतिहास को संजोए हुआ स्थान आज बेहद उपेक्षित है। वन के अंदर जंगली सुअर, शीही आदि जानवर रहते हैं। यदि वन में कोई घूमने के लिए आता है तो वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा ताला खोल दिया जाता है, और कह दिया जाता है कि सभी जगह के लिए रास्ता बना है आप देख आओ, बाकी बचकर जाना यहां पर जानवर भी रहते हैं। किस शिला में क्या आकृति है आदि की जानकारी कोई भी मुहैया नहीं कराता। वहां पहुंचने के बाद लोग अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं।