जबलपुर। ट्रेजर आइलैंड, आपने नाम तो सुना ही होगा, लेकिन आज हम आपको ऐसे स्थान पर ले जा रहे हैं, जिसे आईलैंड तो नहीं कहा जा सकता, किंतु यहां अब भी सोने-चांदी के सिक्के जमीन खुद उगलती है। कल्चुरी और गोंडकालीन स्मृतियों और इतिहास से समृद्ध जबलपुर शहर में वैसे तो चमत्कारी धरोहरों और रहस्यों की कमी नहीं है, लेकिन हम आपको जिस स्थान के बारे में बता रहे हैं वह धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टिकाणों से उपयोगी है। यहां आज भी चांदी, और सोने सहित विभिन्न प्रकार की धातुओं के सिक्के जमीन से निकलते हैं। यहां की जमीन आज भी भांति-भांति के सिक्के उगलती है।
शहर से करीब 14 किलोमीटर दूर स्थित हथियागढ़, तेवर और आसपास लगे ग्रामीण क्षेत्रों अक्सर ही लोगों को ऐतिहासिक सिक्के मिलने की बात सामने आती है। ये सिक्के चांदी, कॉपर सहित कई बार सोने के भी होते हैं। जिनमें तत्कालीन राजा महाराजाओं के चित्रों सहित उनकी भाषा में नाम व काल भी अंकित होता है।
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बेच देते हैं ग्रामीण
बताया जाता है कि इन स्थानों पर निवास करने वाले ग्रामीणों को खेत में हल जोतते वक्त तो अनेक बार जमीन की खुदाई करते हुए भी सिक्के प्राप्त होते हैं। इन सिक्कों को वे निर्धारित मूल्य पर इतिहासकारों, शोधकर्ताओं सहित उन लोगों को भी बेच देते हैं जिन्हें सिक्के एकत्रित करने का शौक है।
रहता है संपर्क
शहर के आरपी पांडे के अनुसार उन्हें सिक्के एकत्रित करने का शौक है और इसके लिए वे ग्रामीणों के संपर्क में रहते हैं। जब भी उन्हें कोई सिक्का मिलता है तो उन्हें खरीद लेते हैं। इतिहासकारों के अनुसार कल्चुरी कालीन और गोंड शासकों का शासन होने की वजह से यहां अक्सर ही सिक्के आदि मिट्टी में दबे हुए पाए जाते हैं। जो खुदाई वगैरहा करते वक्त बाहर निकल आते हैं।
मिला है खजाना
क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि इससे पहले यहां की जमीन से लोगों खजाना भी प्राप्त हुआ है। हालांकि विद्वानों का मानना है कि इस संबंध में कितना सत्य है और कितना मिथक ये कहा नहीं जा सकता। हथियागढ़ में मां त्रिपुर सुंदरी का मंदिर होने की वजह से ये स्थान धार्मिक आस्था के लिए भी प्रसिद्ध है।