जबलपुर। लंबोदर की लीलाओं के बारे में तो आप जानते ही होंगे। शास्त्रों और पुराणों सहित लोककथाओं में भी इनका जिक्र आता है। लेकिन क्या आपको पता है कि महाभारत और गजानन का भी गहरा नाता है। कहा जाता है कि जिस स्थान (कुरूक्षेत्र) पर युद्ध हुआ था वह रक्त से लाल हो गई थी और अब भी वहां की मिट्टी लाल है। ठीक इसी प्रकार हम आपको महाभारत और लंबोदर के बारे में एक महत्वपूर्ण रहस्य बताने जा रहे हैं।
महाभारत में ऐसा वर्णन आता है कि वेदव्यास जी ने हिमालय की तलहटी की एक पवित्र गुफा में तपस्या में लीन होकर महाभारत की घटनाओं का आदि से अन्त तक स्मरण कर मन ही मन में महाभारत की रचना कर ली थी परन्तु इसके पश्चात उनके सामने एक गंभीर समस्या आ गई। वह थी इसे जनसाधारण तक पहुंचाने की। क्योंकि इसकी जटिलता और लम्बाई के कारण यह बहुत कठिन था कि कोई इसे बिना कोई गलती किए वैसा ही लिख दे जैसा कि वे बोलते जाएं।
ब्रम्हा जी को इसके बारे में पता चला। उनके कहने पर व्यास गणेश जी के पास गए। पूरा विवरण जानकर गणपति लिखने को तैयार हो गये, किंतु उन्होंने एक शर्त रखी कि कलम एक बार उठा लेने के बाद काव्य समाप्त होने तक वे बीच नहीं रुकेंगे।
यह भी बहुत ही कठिन समस्या थी। व्यासजी जानते थे कि यह शर्त जटिलताएं उत्पन्न कर देगी। अत: उन्होंने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी श्लोक लिखने से पहले गणेश जी को उसका अर्थ समझना होगा। गणेश जी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस तरह व्यास जी बीच-बीच में कुछ कठिन श्लोकों को रच देते थे, तो जब गणेश उनके अर्थ पर विचार कर रहे होते उतने समय में ही व्यास जी कुछ और नये श्लोक रच देते। इस प्रकार सम्पूर्ण महाभारत 3 वर्षों के अन्तराल में लिखी जा सकी।
Home / Jabalpur / INSIDE STORY: व्यास जी बोलते गए और ऐसे लिखा ‘गणपति’ ने महाभारत