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जबलपुर

चीन से लड़ाई के लिए तैयार हो रही सेना, यहां बन रहा भारी मात्रा में गोला बारूद

 चीन जहां अपने हथियारों के बल पर भारत को डराना चाहता है, वहीं भारत भी इस मामले में कहीं कमजोर नजर नहीं आता है, उसका आयुध भंडार पर्याप्त मात्रा में मौजूद है

जबलपुरJul 20, 2017 / 10:23 am

Lalit kostha

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जबलपुर। भारत-चीन के बीच तनातनी बढ़ती ही जा रही है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो गत दिवस चीन तिब्बत पर असली गोला बारूद के साथ युद्धाभ्यास कर रहा है। ऐसे में भारत ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि वह डोकलाम से सेना हटाने से इंकार कर दिया है। इसी बीच सैनिकों की तैनाती करने के लिए भी दिशा निर्देश दिए जा चुके हैं। चीन जहां अपने हथियारों के बल पर भारत को डराना चाहता है, वहीं भारत भी इस मामले में कहीं कमजोर नजर नहीं आता है। उसका आयुध भंडार पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। मप्र के जबलपुर जिला देश की सेना का बहुत बड़ा और मजबूर स्तंभ है। यहां की आयुध निर्माणियां उसे कभी हारने नहीं देंगी। यहां गोला बारूद बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है। 

आयुध निर्माणी की धरती पर हर पग बारूद 
भारत के केन्द्र बिन्दु जबलपुर को प्रकृति ने खूबसूरती से नवाजा है। यहां मेहमानों के स्वागत के लिए प्रकृति ने मां की तरह आंचल को सजाकर रखा है, तो दुश्मनों के लिए यह भूमि काल है। देश की आजादी ने जब आंखें नहीं खोली थीं, तब भी यहां बारूदों के ढेर थे। आयुध निर्माणी खमरिया की धरती पर हर पग बारूद है, तो सन् 1904 में बनी गन कैरेज फैक्ट्री के खजाने में ऐसी गनें हैं कि दुश्मनों का कलेजा कांप जाए। 

दुश्मन का सीना छलनी करने के काम आए हथियार
जब भी देश की आन-बान और शान की बात आई है, तो जबलपुर की धरती पर बने हथियार ही दुश्मन का सीना छलनी करने के काम आए हैं। ओएफके, जीसीएफ, वीएफजे, ग्रे-आयरन फाउंड्री, 506 आर्मी बेस वर्कशॉप जबलपुर की ही शान नहीं, बल्कि पूरे देश की धड़कन हैं…। पाकिस्तान फतह हो या फिर कारगिल का विजय घोष इसकी सुखद यादें यहां की मिट्टी में समाई हुई हैं।


आयुध निर्माणी खमरिया
आयुध निर्माणी खमरिया देश की प्रमुख आयुध निर्माणियों में शुमार है। इसकी स्थापना आजादी से पहले 1942 में की गई थी। तब से लेकर आज तक यह अनवरत उत्पादन कर रही है। फैक्ट्री के 52 से अधिक सेक्शनों में देश की तीनों सेनाओं के लिए बमों का उत्पादन किया जाता है। स्मॉल आम्र्स से लेकर बडे़ बमों की फिलिंग में इसे महारथ हासिल है। जब भी देश का दुश्मन से सामना हुआ है, फैक्ट्री से बड़ी तादाद में रसद गया है। कारगिल युद्ध के समय फैक्ट्री में कर्मचारियों के द्वारा दिन-रात एक कर उत्पादन किया गया। सेना को जब बोफोर्स तोप के लिए बमों की जरुरत थी तब फैक्ट्री ने इनकी बिल्कुल कमी नहीं होने दी।

प्रमुख उत्पाद
एल-70, बीएमपी-2 बम, 84 एमएम बम, 551 बम, चार्ज डेमोलेशन एमुनेशन ,30 एमएम बीएमपी-2 बम ,30 एमएम एके 630 एमुनेशन, 76.2 एमएम, स्मोक कैंडेल, टी-72, 125 एमएम बम, पावर कार्टेज, 23 एमएम घासा, 30 एमएम घासा, 250 किग्रा एचएसएलडी, 450 किग्र्रा एचएसएलडी, 1000 एलबीएस बम, 30 एमएम नेवल एमुनेशन, 76.2 एमएम, 76/62 एसआरजीएम, पीबीजी माइन तथा स्मॉल आर्म्स।
कर्मचारियों की संख्या- 5,600


वीकल फैक्ट्री जबलपुर
देश की सेना को रसद पहुंचाने के साथ सैनिकों को यहां से वहां ले जाने में वीकल फैक्ट्री के बने ट्रकों का बहुतायत उपयोग होता है। फैक्ट्री की स्थापना 1969 की गई थी। फैक्ट्री एक वर्ष में 14 हजार वाहनों तक का उत्पादन सेना के लिए कर चुकी है। फैक्ट्री ने हमसफर बस, त्रिशूल ट्रक, मतंग ट्रक, शक्तिमान, जोंगा, निशानके अलावा रिकवरी वीकल का भी उत्पादन किया था। फैक्ट्री में मुख्य काम सैन्य वाहनों की असेम्बिलिंग करना है। वर्तमान में 6 हजार के करीब वाहनों की असेम्बलिंग फैक्ट्री को करना है। सारा काम फैक्ट्री के प्लांट एक से लेकर चार मे किया जाता है। इन प्लांटों में आधुनिक सीएनसी मशीनों पर सारा काम होता है।

प्रमुख उत्पाद
5/7.5 टन स्टालियन एमके-4 बीएस-3, 2.5 टन एलपीटीए बीएस-3, 2 केएल वाटर बाउजर, किचन कंटेनर, माइन प्रोटेक्टिड वीकल, बु्रलेट पू्रफिंग वीकल।
कर्मचारियों की संख्या- 3,000


गन कैरिज फैक्ट्री
देश की सबसे पुरानी आयुध निर्माणियों में गन कैरिज फैक्ट्री भी शामिल है। इसकी स्थापना 1904 में की गई थी। फैक्ट्री ने 1905 में 500 परिवहन वाहन के साथ उत्पादन शुरू किया था। 1909 में कैरिज का उत्पादन शुरू किया। 1947 में स्टीम रोड रोलर, रेलवे के लिए उत्पाद बनाना शुरू किया। 1959 तक यहां शक्तिमान, निशान और जोंगा वाहन का उत्पादन भी हुआ। फिर 1963 से गन के प्रोडक्शन में कदम रखा। इस दौरान यहां पर 40 एमएम,एल-70 और 81 तथा 120 एमएम मोर्टार का उत्पादन शुरू हुआ। फिर इंडियन फील्ड गन, लाइट फील्ड गन और पंप एक्शन गन का निर्माण किया। वर्तमान में यहां पर देश की सबसे बड़ी 155 एमएम स्वदेशी बोफोर्स तोप धनुष प्रोजेक्ट चल रहा है।

प्रमुख उत्पाद
12 बोर पंप एक्शन गन, इक्युपमेंट 40 एमएम, एल-70 अपग्रेड गन, 105 एमएम लाइट फील्ड गन, कवच लॉन्चर, 155 एमएम 45 कैलीबर धनुष तोप, 51 एमएम मोर्टार, 81 एमएम मोर्टार, 120 एमएम मोर्टार, 81 एमएम लॉन्ग
 रेंज मोर्टार, एमुनेशन बाक्स। 12.7 एमएम प्रहरी गन, टैंक म्यूल एल्युमिनियम, स्पेयर बैरल टी-90, 30 एमएम बीएमपी-2 कंपोनेंट, स्मोक ग्रेनेड लान्चर। कर्मचारी संख्या – 3500

ग्रे आयरन फाउंड्री
1972 में ग्रे आयरन फाउंड्री की स्थापना वीकल फैक्ट्री की सहायक निर्माणी के रूप में हुई। स्कोडा और चेकोस्लोविया के सहयोग से स्थापित फाउंड्री में मुख्यत: ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए कंपानेंट की ढलाई का काम किया जाता रहा है। इसके बाद फाउंड्री ने सेना के लिए कई तरह के प्रोडक्ट बनाने शुरू किए। वर्तमान में फाउंड्री 120 किलोग्राम एरियल बम के खोखे की ढलाई का काम किया जाता है।

प्रमुख उत्पाद
120 किलो एरियल बम बॉडी, एमुनेशन बॉक्स, माइन प्रोटेक्टिड वीकल का हल, हैंड ग्रेनेड के खोल, लाइटिंग प्लग, क्लच, ब्रेक ड्रम आदि। कर्मचारी संख्या- 7,00

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सेंट्रल ऑर्डनेंस डिपो
देश मेें करीब 7 सेंट्रल ऑर्डनेंस डिपो हैं। इनमें से एक जबलपुर में स्थित है। डिपो में सेना के लिए युद्ध सामग्री रखी जाती है। चाहे गोला बारूद हो या तोप या ट्रक सभी यहां पर रखे जाते हैं। सेना की जरुरत के हिसाब से उनकी आपूर्ति यहां से की जाती है। यहां से सेना को सही माल, समय पर और सही दशा में भेजा जाता है।

लॉन्गपू्रफ रेंज खमरिया
जबलपुर और दूसरी आयुध निर्माणियों में बनने वाले गोला और तोप का परीक्षण लॉन्ग प्रूफ रेंज खमरिया में किया जाता है। सेना के जवान यहां पर बमों की फायरिंग कर उसका परीक्षण करते हैं।


अनूठा वन सिग्नल टे्रनिंग सेंटर
आज सारा युद्ध कम्युनिकेशन पर आधारित है। इसके बिना जीत असंभव है। सौभाग्य की बात यह है कि जबलपुर में वन सिग्नल टे्रनिंग सेंटर है। यह देश में मात्र दो हैं। दूसरा सेंटर गोवा में है। यहां पर जवानों को युद्ध के दौरान किस तरह से आधुनिक संचार के माध्यमों का उपयोग करते हुए विजय हासिल करना है, यह सिखाया जाता है। सैनिकों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाया जाता है। बायरलैस से लेकर छोटे-छोटे उपकरणों की टे्रनिंग उन्हें दी जाती है। इस संस्थान की खासियत यह है कि कोई भी युद्ध हो उसमें यहां से प्रशिक्षण प्राप्त जवान जरुर होते हैं।

मध्यभारत एरिया हेडक्वार्टर
अंग्रेजो के शासनकाल से यहां पर मध्यभारत एरिया का हेडक्वार्टर है। यह एक तरह का पीस स्टेविलिशमेंट है। मध्यभारत सेंट्रल कमांड के अंतर्गत है। मध्यभारत एरिया में मप्र का आधा हिस्सा, छत्तीसगढ़, गुजरात, गोवा उड़ीसा और बिहार का सैन्य क्षेत्र आता है। यहां पर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का सैन्य भर्ती मुख्यालय भी है। यहां से करीब 14 जिलों के लिए सैनिकों की भर्तियां की जाती है

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506 आर्मीबेस वर्कशॉप
थलसेना के लिए 506 आर्मी बेस वर्कशॉप महत्वपूर्ण है। देश की सेना मौजूद बोफोर्स तोप की रिपेयरिंग यहां केअलावा और कहीं नहींं होती। इसी तरह एके-47 और दूसरी छोटी गनों की मरम्मत भी यहीं पर की जाती है। कुछ दूसरी छोटी और बड़ी तोप भी सुधार के लिए सेना के द्वारा यहां पर भेजी जाती है।

केंट बोर्ड का जलवा
केंट बोर्ड जबलपुर केंट बोर्ड देश के 62 केंटोन्मेंट बोर्ड में अलग स्थान रखता है। बोर्ड को ए-1 श्रेणी मिली है। केंट क्षेत्र में मध्य भारत एरिया, जैक रायफल्स, जीआरसी एवं वनएसटीसीके अलावा दूसरे सैन्य संस्थान हैं। यह पूर्ण रूप से स्वायत्तशासी संस्था है। यह नगर निगम के समान कार्य करता है। जबलपुर को खूबसूरती प्रदान करने में इस निकाय की अलग भूमिका है।

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