scriptकागजो में करोड़ों का बजट, लेकिन आज तक नहीं खुला रहस्य कि आखिर होताा क्यों नहीं काम 50 प्रतिशत क्षेत्र प्यासे | Janjgir-Champa: Crores of crores of budget, but not open to the present till the end, why not work, 50 percent area thirsty | Patrika News

कागजो में करोड़ों का बजट, लेकिन आज तक नहीं खुला रहस्य कि आखिर होताा क्यों नहीं काम 50 प्रतिशत क्षेत्र प्यासे

locationजांजगीर चंपाPublished: May 27, 2017 12:37:00 pm

जिले में 88 फीसदी कृषि क्षेत्र में नहरों का जाल फैला है। नहरों के
संधारण व लाइनिंग के लिए सरकार सालाना करोड़ो रुपए खर्च करती है।

Crores of crores of budget, but not open to the pr

Crores of crores of budget, but not open to the present till the end, why not work 50 percent area thirsty

जांजगीर-चांपा. जिले में 88 फीसदी कृषि क्षेत्र में नहरों का जाल फैला है। नहरों के संधारण व लाइनिंग के लिए सरकार सालाना करोड़ो रुपए खर्च करती है।

इसके बाद भी तकरीबन 50 फीसदी कृषि क्षेत्र सूखे की चपेट में पड़ जाता है। सिंचाई के लिए किसान जद्दोजहद करते हैं, इसके बाद भी टेल एरिया तक पानी नहीं पहुंच पाता।

सिंचाई के मौसम में कृषि विभाग के कर्मचारी मौके पर नहीं पहुंचते। जिसके चलते किसानों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यदि समय रहते अभी से नहरों का संधारण कर लिया जाए तो किसानों को परेशानियों का सामना करना नहीं पड़ेगा।

कृषि प्रधान जिले में नहरों का जाल ही किसानों के लिए मील का पत्थर साबित होता है। जिले में सिंचाई सुविधा बेहतर होने की वजह से प्रदेश में सबसे अधिक धान की पैदावारी होती है।

यदि सिंचाई के प्रमुख साधन नहरों का संधारण बेहतर होता तो प्रदेश में क्या समूचे देश में जिले का नाम रोशन होता। जिले में बीते पांच साल के भीतर नहरों के संधारण के लिए लगभग पौने दो सौ करोड़ रुपए स्वीकृत हुआ है।

इतनी बड़ी राशि में सिंचाई विभाग के अफसर सिंचाई के लिए नहरों का संधारण व लाइनिंग कार्य जरूर करा रहे हैं, लेकिन कार्य की गुणवत्ता मैदानी हालात देखकर बयां कर रहा है।

लाइनिंग कार्य हुआ पर चंद दिनों में ही उखड़कर पानी में बह गए। हाल ही में अप्रैल माह में 10 दिन के लिए नहरों में पानी छोड़ा गया था। केवल 10 दिन के पानी में ही करोड़ो की लाइनिंग बह गई।

इससे कार्य की गुणवत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे खराब स्थिति जिला मुख्यालय के आसपास के नहरों की है। नवागढ़ ब्लाक के धुरकोट, सुकली, पेंड्री, भड़ेसर, मुनुंद सहित आसपास के नहरों के संधारण के लिए तकरीबन 10 करोड़ रुपए खर्च की गई है।

बाकायदा बिल भी पास हो चुका है। इतनी बड़ी राशि में सिंचाई विभाग के अफसर मालामाल हैं। बताया जा रहा है कि लाइनिंग कार्य में करोड़ो की राशि का बंदरबाट हुआ है।

लाइनिंग वर्क में भी लीपापोती
इन दिनों सरखों, सिवनी, कन्हाईबंद क्षेत्र में लाइनिंग वर्क चल रहा है। जिसमें विभागीय अफसर ठेकेदारों से मिलीभगत कर खूब लीपापोती कर रहे हैं।

बताया जा रहा है कि जहां पूरा का पूरा लाइनिंग उखड़ गया है वहां पुराने पत्थरों की जोड़ाई कर आधा अधूरा लाइनिंग कार्य किया जा रहा है। इससे पहली बार सिंचाई के दौरान ही नहर लाइनिंग बहने का अंदेशा है।

जल उपभोक्ता संस्था की भूमिका संदिग्ध
किसानों की समस्या का हल कराने सरकार ने किसानों के प्रतिनिधि जल उपभोक्ता संस्था का चुनाव कराती है। ताकि किसान अपनी समस्या जलउपभोक्ता संस्था के सदस्यों को बताएं और जल उपभोक्ता संस्था के सदस्य समस्या को अधिकारियों तक अवगत कराए,

लेकिन जल उपभोक्ता संस्था के सदस्यों की गतिविधि भी शून्य नजर आती है। सूत्रों के अनुसार अधिकारी ही जल उपभोक्ता संस्था के सदस्यों से मिलकर करोड़ो की मेंटेनेंस की राशि का बंदरबाट करते हैं। बताया जा रहा है कि नहरों के मेंटेनेंस के लिए सालाना करोड़ो रुपए आती है। इतनी राशि का पता नहीं चलता और कागजों में मेंटेनेंस हो जाता है।

किसानों के बीच होती है सिर फुटौव्वल
सिंचाई के दिनों में किसान अपने टेल एरिया के खेतों तक पानी पहुंचाने काफी पसीना बहाते हैं। क्योंकि शुरू से लेकर आखिरी तक नहर जिर्ण सिर्ण रहता है।

ऐसा नहीं है कि इन नहरों की मरम्मत के लिए सरकार खर्च नहीं करती। हर साल लाइनिंग कार्य कराया जाता है। करोड़ो खर्च करने के बाद भी सिंचाई व्यवस्था का बुरा हाल होता है।

क्योंकि मेंटेनेंस का पूरा पैसा सिंचाई विभाग के अफसर खा बैठते हैं। जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। रिकार्ड के मुताबित हर साल सिंचाई के दिनों में किसानों के बीच सिर फुटौव्वल होती है। जिले के 18 थानों में एक दर्जन से अधिक केस दर्ज होता है।
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