कारगिल विजय दिवस: केराकत के जावेद खान सहित छह जवानों ने सीने पर खाई थी गोली, परिजनों को नहीं मिली सरकारी मदद
शहीद के परिजनों को दिया गया आश्वासन कोरे कागज की तरह ही रह गया, अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही शहीद जावेद खान की कच्ची मजार
जौनपुर. अंग्रेजों की बेड़ियों से जकड़ी हुई भारत मां को आजाद कराने की लड़ी गई जंग हो या पाक सैनिकों द्वारा कारगिल में किए गए कब्जे से भारत मां को मुक्त कराने के लिए लड़ी गई कारगिल जंग, केराकत तहसील के बहादुर अमर शहीदों का नाम प्रमुखता के साथ लिया जाता है। कारगिल जंग में केराकत तहसील के जिन 6 वीर सपूतों ने अपनी शहादत देकर भारत मां की आन, बान, शान की हिफाजत की उनकी शहादत की दास्तान आज भी देशवासियों के दिलो दिमाग पर तरोताजा है।
नरहन की धरती पर मुस्लिम परिवार में जन्मे अमर सपूत जावेद अहमद खान ,ग्राम अकबरपुर में जन्मे अमर सपूत जगदीश सिंह, तेजपुर गांव में जन्मे शहीद धीरेंद्र प्रताप यादव, पटइल गांव में जन्मे शहीद सत्येन्द्र बहादुर सिंह, कछवंद गांव में जन्मे शहीद मनीष सिंह व नरकटा गांव में जन्मे शहीद शकील अहमद खान ऐसे बहादुर सपूत रहे हैं जिन्होंने सीने पर गोलियां खाकर मादरे वतन की आबरू की हिफाजत की।
परिजनों के दिल में आज भी है मलाल, कुछ तो करो सरकार
इन शहीदों के परिजनों को जहां अपने सपूतों की शहादत पर नाज वह फख्र है। वहीं कुछ मलाल भी है। शहादत के बाद जनप्रतिनिधियों व शासन-प्रशासन के लोगों द्वारा कई तरह के आश्वासन दिए गए थे लेकिन एक को भी पूरा नहीं किया गया। परिजनों को भी उम्मीद थी कि शायद बेटे, पिता, पति, भाई के जाने के बाद सरकारी मदद उनके जीने का सहारा बनेगी। देखा जाए तो प्रत्येक शहीद परिजनों को पेट्रोल पंप देने, उनके नाम पर मार्गों का निर्माण कर शहीद मार्ग रखने सहित प्रतिमा स्थापित करने की ऐसे बड़े-बड़े आश्वासनों की घुट्टी पिलाई गई थी।
हालांकि शहीद धीरेंद्र प्रताप यादव निवासी तेजपुर की प्रतिमा गत वर्ष हनुमान नगर तिराहे पर स्थापित की गई है। जिसका अनावरण पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव ने किया था। शेष 5 शहीदों की प्रतिमाएं आज तक स्थापित नहीं हो सकी हैं। शहीद जावेद खान की कब्र की जर्जर हालत देख कर गांव वालों की आखों से खून टपकने लगते हैं। यही सवाल जहन में उठता है कि आज तक वतन पर मर मिटने वाले शहीद की मजार को पक्का नहीं किया गया। शहीद बड़े भाई वाहिद खान पहलवान को इस बात को लेके गम व अफसोस है कि उनके भाई के नाम पर सड़क का नामकरण नहीं किया गया। सुविधा के नाम पर कुछ नहीं मिला । अकबरपुर के शहीद जगदीश सिंह के पिता सत्यनारायन सिंह का कहना है कि शासन-प्रशासन ने कोई भी वादा पूरा नहीं किया। शहीद मार्ग, शहीद प्रतिमा बनवाने व एक पेट्रोल पम्प का लाइसेंस देने का आश्वासन सिर्फ कोरा साबित हुआ। जो जमीन आवंटित की गयी वह ऐसी जगह है जो किसी योग्य है ही नहीं है।
आज भी बेचैन होगी शहीदों की आत्माएं
शहीदों की मजारों पर लगेगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा, लेकिन हकीकत इन लाइनों से इतर है। हकीकत में देखा जाए तो इन शहीदों को सत्ता और प्रशासन ने बहुत जल्द भुला दिया। किसी ने कभी पलट कर शहीदों के परिजनों की हालत जानने की कोशिश नहीं की। कारगिल की जंग में लड़ते हुए शहीद होने वाले वीर सपूतों को इस बात का जरा भी इल्म नहीं रहा होगा कि उनकी कुर्बानी को इतनी जल्दी भुला दिया जाएगा। जिस देश की आन बचाने के लिए वे अपनी जान न्योछावर कर रहे हैं, उसी देश के नुमाइंदे उनके परिजनों का हाल जानने उनके दरवाजे तक नहीं जाएंगे।