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कानपुर

आज करें यह खास उपाय, अकाल मृत्यु से यमराज बचाएंगे आपके प्राण

धनतेरस पर किया गया यह खास उपाय पूरे साल आपकी जान की हिफाजत करेगा।

कानपुरOct 28, 2016 / 07:56 am

नितिन श्रीवास्तव

dhanteras 2016

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कानपुर. आज धनतेरस है। इस दिन जो भी भक्त शाम को यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती। यह बात पत्रिका संवाददाता से खास बातचीत के दौरान ज्योतिषाचार्य पंडित बलराम तिवारी ने बताई। तिवारी के मुताबिक एक बार यमराज ने यमलोक पर अपने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता क्या? दूतों ने कहा एक बार ऐसा हमलोगों के साथ हो चुका है, जब हमने नवविवाहिता की खातिर उसके पति के प्राण नहीं लिए। यमदूतों ने अपने राजा यमराज को बताया कि ब्रम्हचारी पुत्र के प्राण लेते समय उनकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुन हम पसीज गए और उसकी जान बख्श दी। तभी यमराज के एक दूत ने अपने राजा से अकाल मृत्यु से बचने का उपाय पूछा, तो उन्होंने धनतेरस के दिन दिया जलाने की बात कही।

तेल के दीपक से यमराज हो जाते हैं प्रसन्न
पंडित तिवारी ने बताया कि यमराज किसी भी इंसान के प्राण तय अवधि के पहले नहीं लेते, बावजूद इसके कलयुग में हरदिन सैकड़ों लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। अकाल मौत से बचने के लिए भगवान यम के नाम सरसों के तेल से धनतेरस पर्व पर दिया जलाएं। यह दिया पूरे साल आपकी जान की हिफाजत करेगा। हादसे के दौरान यमदूत दिया को देखकर वापस लौट जाते हैं। पंडित तिवारी ने बताया कि सैकड़ों साल पहले काशी में ब्राह्मण का इकलौता पुत्र हादसे से जख्मी हो गया। सभी वैद्यों ने ब्राम्हण के पुत्र को बचाने में असमर्थ दिखे। बेटे के प्राण लेने के लिए यमदूत बढ़ रहे थे, तभी उसे पता चला कि आज धनतेरस का पर्व है। ब्राह्मण ने स्नान ध्यान के साथ यमराज के नाम तेल का दीपक दक्षिण दिशा में जला कर रख दिया। यमदूत ने दिये को देखते ही ब्राह्मण के पुत्र की जान बख्श दी और खाली हाथ यमलोक को चले गए।

दिए के चलते प्राण नहीं ले पाए यमराज
पंडित जी ने एक कहानी का जिक्र करते हुए बताया कि प्राचीन काल में एक हिम नामक राजा हुए। विवाह के कई वर्षों बाद इन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषों ने जब राजकुमार की कुण्डली देखी तो कहा कि विवाह के चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी। राजा-रानी इस बात को सुनकर दुखी हो गये। समय बीतता गया और राजकुमार की शादी हो गयी। विवाह का चौथा दिन भी आ गया। राजकुमार की मृत्यु होने के भय से सभी लोग सहमे हुए थे। लेकिन राजकुमार की पत्नी चिंता मुक्त थी। उसे मां लक्ष्मी की भक्ति पर पूरा विश्वास था। शाम होने पर राजकुमार की पत्नी ने पूरे महल को दीपों से सजा दिया। इसके बाद मां लक्ष्मी के भजन गाने लगी। यमदूत जब राजकुमार के प्राण लेने आये तो मां लक्ष्मी की भक्ति में लीन राजकुमार की पतिव्रता पत्नी को देखकर महल में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाये। यमदूतों के लौट जाने पर यमराज स्वयं सर्प का रूप धारण करके महल में प्रवेश कर गये। सर्प बने यमराज जब राजकुमारी के कक्ष के समाने पहुंचे तब दीपों की रोशनी और लक्ष्मी मां की कृपा से उनकी आंखें चौंधिया गयीं और सर्प बने यमराज राजकुमारी के पास पहुंच गये। राजकुमारी के भजनों में यमराज ऐसे खोये कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गयी। राजकुमार की मृत्यु का समय गुजर जाने के बाद यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और राजकुमार दीर्घायु हो गया। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से धनतेरस के दिन यमदीप जलाने की परंपरा शुरू हुई।
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