कानपुर। प्रधानमंत्री देश के रेलवे ट्रैकों में बुलट ट्रेन चलाए जाने की बात कर रहे हैं, लेकिन यूपी में ऐसे कई रुट हैं जहां पर ट्रेनों की रफ्तार महज 30 किमी प्रतिघंटा की हैं। इनमें से कानपुर से लेकर घाटमपुर रुट पर ट्रेनें बैलगाड़ी बन जाती हैं। पुखरायां के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद इस रूट पर हाईस्पीड चलाना दूर की कौड़ी है। अभी ट्रैक की हालत ऐसी नहीं है कि यहां पर हाईस्पीड ट्रेनें चलाई जा सकें। हालांकि रेलवे यहां पर ट्रेन चलाने की पूरी तैयारी में था लेकिन हादसे के बाद से उसकी कलई खुल गई है। मौजूदा समय में कानपुर से झांसी के 200 किलोमीटर लंबे ट्रैक में 42 जगह काशन लगे हैं। इसलिए झांसी का सफर ट्रेनें करीब आठ से नौ घंटे में तय कर रही हैं।
उत्तर मध्य रेलवे के जीएम एके सक्सेना हादसे से पहले ट्रैक का निरीक्षण हाईस्पीड चलाने के लिए कर चुके हैं। यहां ट्रैक के दोहरीकरण का काम भी अंतिम चरण में है। अब झांसी मंडल ने एनसीआर को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें रेल मार्ग के 80 किलोमीटर की पटरियों पर पैसेंजर ट्रेनों से धीमी गति से ट्रेन चलाने की सिफारिश की है। यहां सिर्फ 30 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से ट्रेनें चल रही हैं। अब रेलवे ने इस मार्ग पर हाईस्पीड ट्रेन चलाने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
दो माह लग जाएंगे ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने में
हादसे की जांच कर रहे सीआरएस की रिपोर्ट भी ट्रैक पर ट्रेनों की गति की सीमा निर्धारित कर सकती हैं। सूत्र बताते हैं कि अभी इस रूट पर हाईस्पीड ट्रेन चलाने की लिए कम से कम दो माह का समय लग जाएगा। कानपुर-झांसी मार्ग पर दोहरीकरण का काम हो रहा है, साथ ही सिंगल ट्रैक पर भी मरम्मत कराई जा रही है। पुष्पक ट्रेन से झांसी से कानपुर आए कारोबारी रियाज ने बताया कि पहले तीन घंटे में आने में लगते थे, लेकिन हादसे के बाद ट्रेन की स्पीड बहुत धीमी हो गई है।कानपुर से झांसी तक अधिकतर ट्रेनें आठ से दस घंटे का समय ले रही हैं। इसी के कारण मुसाफिर रोडवेज बसों का सहारा ले रहे हैं। 7
74 ट्रेनों का होता है संचालन
एमपी और महाराष्ट्र जाने का है प्रमुख रूट मायानगर मुंबई समेत महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की ओर जाने वाले इस रेलमार्ग पर 74 ट्रेनों का संचालन होता है। पुष्पक, लोकमान्य तिलक, उद्योग नगरी, उद्योगकर्मी, गोरखपुर-यशवंतपुर एक्सप्रेस जैसी महत्वपूर्ण ट्रेनें इसी रूट पर चलती हैं। रेलवे का उद्देश्य मुंबई जाने वाले प्रदेश के यात्रियों को कम समय में मुंबई और महाराष्ट्र पहुंचाना था। इसलिए हाईस्पीड ट्रेनों के चलाने की घोषणा की गई थी।