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कानपुर ट्रेन हादसा :  नहीं मिल रहे अपने फिर भी आंखों में है आस

दंपत्ति की आंखें पथराई-दिल गमजदा है। होश में आते ही वह डॉक्टरों की तरफ हाथ जोड़कर अपने जिगर के टुकड़ों के बारे में पूछते हैं।

कानपुरNov 22, 2016 / 02:57 pm

आकांक्षा सिंह

train accident

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कानपुर। पुखरायां में हुए अब तक के सबसे भयावह रेल हादसे ने कई की जिन्दगियां निगल लीं तो कई को यतीम बना दिया।हैलट में भर्ती दंपत्ति जहां जिन्दगी और मौत के बीच लड़ रहे हैं तो उनके कलेजे आईसीयू में एडमिट हैं। दंपत्ति की आंखें पथराई-दिल गमजदा है। होश में आते ही वह डॉक्टरों की तरफ हाथ जोड़कर अपने जिगर के टुकड़ों के बारे में पूछते हैं। एमपी के इंदौर निवासी धर्मेन्द्र अपनी पत्नी मीरा और सात साल के बेटे अनिकेतन व नौ साल की बेटी आकंक्षा के साथ अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में शामिल होने के लिए पटना के लिए निकले थे। वह परिवार समेत खाना खा पीकर सो रहे थे कि अचानक बोगी लहराई और चंद मिनट में उनके आंखों के सामने कई मुसाफिरों की मौत हो गई। धर्मेन्द्र बोगी में बुरी तरह से फंसे पत्नी और बेटे व बेटी को निकालने के लिए पांच घंटे तक जद्दोजहद करते रहे, लेकिन वह हार गए और जब होश आया तो वह हैलट के वार्ड में पत्नी समेत अपने को पाया। पति पत्नी की हालत ठीक है, लेकिन बेटी और बेटा अभी भी मौत से लड़ रहे हैं। 

साहब मेरा खून ले लें, बेटे बेटी को बचा लें

एमपी से आए आईएस एमपी ठाकुर घायल दंपत्ति से मिलने पहुंचे तो वह रो पड़े और कहा कि जो खून हमारे शरीर में बचा है उसे निकाल लें, बेटे व बेटी की जान बचा लें। एमपी ठाकुर और छतरपुर जिले से आए डॉक्टर सोमवार से इंदौर दंपत्ति के बच्चों का इलाज युद्ध स्तर पर कर रहे हैं। आईएस ठाकुर ने मध्यप्रदेश के सीएम शिवा़राज सिंह चौहान से मोबाइल के जरिए धर्मेन्द्र से बात करवाई। धर्मेन्द्र ने कहा कि सीएम साहब आपके भांजा व भांजी की जिन्दगी खतरे में हैं कुछ करिए इन्हें कहीं और एडमिट करवाइए। सीएम शिवराज ने कहा कि मेरे भांजे-भांजी को कुछ नहीं हो सकता हम उन्हें दिल्ली एम्स भिजवाएंगे। सीएम ने भोपाल से आईएस ठाकुर से बात कर हकीकत जानी। ठाकुर ने सीएम को भरोसा दिलाया है कि हैलट में दोनों का इलाज ठीक तरह से चल रहा है। 

कुछ नहीं तो लाश ही मिल जाए

मंगलवार की सुबह भी मांती से लेकर हैलट तक अपनों को खोजते सैकड़ों लोग आ जा रहे थे। सभी की आंखें पथराई सी और दिल गमजदा था। दिल का हाल कुछ ऐसा कि बोगियों के मलबे के ढेर पर उम्मीद- नाउम्मीदी की निगाहें टिकी हुई थीं। क्या ये गम, निराशा और समझौते की पराकाष्ठा नहीं है कि लाशों में अपनी बेटी को ढूंढते-ढूंढते हार चुका पिता ये पूछने को मजबूर हो जाए- ‘क्या अब कोई लाश निकलने की उम्मीद नहीं?’ सिर्फ एक पिता नहीं, बल्कि अपनों की तलाश में कई लोग राहत-बचाव कार्य खत्म होते-होते इस भारी भाव के साथ पुखरायां से हैलट तक घूम रहे थे कि कुछ नहीं तो लाश ही मिल जाए।

नाउम्मीद में अपनो को खोज रहे 

इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे के बाद से राहत और बचाव कार्य में जुटी टीम दोपहर ढाई बजे के आसपास यह राहत महसूस कर रही थी कि घायल अस्पताल पहुंचा दिया और कोच में फंसे सभी शव भी निकाल लिए गए। मगर, दूसरी ओर रेलवे के हेल्प काउंटर पर खड़े रामजी उपाध्याय की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। एस-2 कोच को क्रश कर जैसे ही क्रेन ने ट्रैक के किनारे लुढ़काया, वह स्तब्ध से उसे देखते रह गए। फिर रेलवे कर्मी की ओर मुखातिब हुए और पूछने लगे- पूजा पांडेय का कुछ पता चला क्या? सामने से ना में जवाब मिला। बताया गया कि सबसे ज्यादा यात्री इसी कोच में फंसे थे। अब तो ये भी पूरा चेक कर लिया गया है। इतना सुनते ही आंखों में ठहरे आंसू फिर बहने लगे। भर्राई आवाज में इतना ही पूछ पाए- क्या अब कोई बॉडी निकलने की उम्मीद नहीं है। रानी की सराय आजमगढ़ निवासी रामजी उपाध्याय ने बताया कि दामाद रविंद्र पांडेय कानपुर में नौकरी करते थे। इस ट्रेन से वह मेरी बेटी पूजा, नवासे आदर्श और रिषभ के साथ कानपुर आ रहे थे। उनकी सीट कंफर्म नहीं थी, इसलिए पता नहीं कि किस कोच में बैठे थे। हादसे के बाद रविंद्र और रिषभ का शव मिल गया। आदर्श घायल है, लेकिन पूजा का पता नहीं चल रहा। सारे अस्पताल देख लिए, पोस्टमार्टम हाउस में कितने कफन हटाकर देख लिए, लेकिन बेटी नहीं मिली। 

सुरक्षित होता तो फोन करता

एक मुस्लिम बुजुर्ग पोस्टमार्टम हाउस पर हेल्प काउंटर पर जूझ रहे थे। पूछने पर भी उन्होंने अपना नाम तो नहीं बताया, लेकिन बार-बार यही कह रहे थे कि मेरा बेटा ट्रेन में था। न वह घायलों में मिला और ना ही मृतकों में। आखिर वह गया कहां? वहां बैठे प्रशासनिक कर्मचारी ने समझाया कि हो सकता है कि वह सुरक्षित हो और यहां से चले गए हो। मगर, बुजुर्ग का तर्क था कि वह सुरक्षित होता तो फोन न करता। इसी तरह कई लोग अपनों को तलाशते भटक रहे थे।

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