करौली। बचपन की मासूमियत को काम-धंधे की
दौड़-धूप में खोने से बचाने के लिए श्रम विभाग की ओर से गठित टास्क फोर्स महज
कागजों मे ही चल रही है। हालत यह है कि जिले में अब तक बाल श्रमिकों का सर्वे तक
नहीं हो पाया है। ऎसे में बाल श्रम की रोकथाम व उनकी समस्याओं के लिए निराकरण की
बात सोचना ही बेमानी होगा।
श्रम विभाग की ओर से अगस्त 2010 में जिला
मुख्यालय पर टास्क फोर्स का गठन किया गया था। अक्टूबर 2013 में टास्क फोर्स का
पुनर्गठन किया गया। लेकिन पांच वर्ष में यह फोर्स महज कागजों तक सीमित रही है।
नवम्बर 2010 में यूनिसेफ ने स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से करौली सहित 17 जिलों को
बाल श्रमिकों का सर्वे व समस्याओं का अध्ययन कराने के लिए 10.50 लाख रूपए का बजट
दिया। लेकिन एक साल का समय गुजरने पर भी सर्वे नहीं कराया गया, तो श्रम विभाग ने
राशि वापस ले ली। इसके बाद अप्रेल 2012 में जिला कलक्टर ने उपखण्ड अधिकारियों को
बाल श्रमिको के सर्वे के आदेश दिए।
इसका भी कोई असर नहीं हुआ। ऎसे में श्रम
विभाग के पास अब तक जिले मे बाल श्रमिकों से जुड़ी कोई तथ्यात्मक जानकारी मौजूद
नहीं है। इस कारण हर बार मांगी जाने वाली सूचना मे बाल श्रमिको की संख्या शून्य
जाती है। जबकि जिले मे 1500-2000 बाल श्रमिक प्रत्यक्ष रूप से विभिन्न रोजगारो से
जुड़े हैं। जिले मे टास्क फोर्स की अनदेखी को लेकर उच्चाधिकारी जिला कलक्टर व श्रम
अधिकारियों को पत्र लिख नाराजगी भी जता चुके हैं।
अधिकारी की रही कमी
टास्क
फोर्स की गतिविधियों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका श्रम कल्याण अधिकारी की होती
है। लेकिन यहां कार्यालय शुरू होने से लेकर अब तक उधार के श्रम कल्याण अधिकारी से
काम चलाया जा रहा है। यहां स्थायी रूप से श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति नहीं हो
पाई। सरकार द्वारा अधिकारी नहीं लगाए जाने पर स्थानीय स्तर पर ही अन्य विभागों के
अधिकारियो को श्रम कल्याण अधिकारी का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया। श्रम
निरीक्षक की भी दिसम्बर 2012 के बाद से स्थायी नियुक्ति नहीं हुई है।
ये शामिल हैं टास्क फोर्स में
टास्क फोर्स में जिला कलक्टर अध्यक्ष व
श्रम कल्याण अधिकारी को नोडल अधिकारी व सदस्य सचिव नियुक्त किया गया है। इसके अलावा
सदस्य के रूप में एसपी, जिला परिषद सीईओ, सीएमएचओ, पीएमओ, पीआरओ, नगरपरिषद आयुक्त,
नगरपालिका अधिशासी अधिकारी, सहायक निदेशक महिला एवं बाल
विकास, सहायक निदेशक बाल
अधिकारिता विभाग, जिला नियोजन अधिकारी, डीईओ (प्रा./मा.), प्रबंधक रेलवे प्रशासन,
प्रबंधक रेलवे सुरक्षा बल, प्रबंधक रेलवे पुलिस, अध्यक्ष बाल कल्याण समिति तथा दो
स्वयंसेवी संस्था के सदस्य शामिल हैं।
बैठकों मे नहीं रूचि
टास्क फोर्स
की हर माह की पांच तारीख को बैठक होनी चाहिए। लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने इसमें
ज्यादा रूचि नहीं ली। मजेदार बात ये है कि टास्क फोर्स के गठन से लेकर अब तक छह
बैठकें हुई। अंतिम बैठक 19 मार्च 2015 को हुई। इनमें भी कोई खास निर्णय नहीं हो
पाए।
यह हैं कार्य
टास्क फोर्स के माध्यम से बाल श्रमिकों का सर्वे कर
आंकड़े जुटाने व उनकी समस्याओं के बारे मे अध्ययन किया जाना था। इसका उद्देश्य बाल
श्रमिको को चिह्नित कर उनके अभिभावकों से समझाइश कर उन्हे बाल श्रम से मुक्ति
दिलाना, ऎसे बच्चों को आश्रय गृहों मे रख उन्हे शिक्षा उपलब्ध कराना तथा उन्हें
बेहतर नागरिक बनाने के लिए प्रेरित करना प्रमुख उद्देश्य रहा है। टास्क फोर्स की
अनदेखी के चलते जिले मे बाल श्रमिकों की तादाद बढ़ती जा रही है। खनन, ऑटोमोबाइल,
चाय-ज्यूस की दुकान व बोझा उठाने तक के कार्य में बाल श्रमिक लगे हुए हैं।
औपचारिक हुई बैठक
अब तक जो बैठकें हुई औपचारिक रहीं। उन्हें बैठको
के बारे मे कभी अवगत नहीं कराया। श्रम विभाग द्वारा टास्क फोर्स को गंभीरता से नहीं
लिया। इस कारण जिले मे बाल श्रमिक बढ़ते जा रहे हैं।
वेणुगोपाल शर्मा, अध्यक्ष
बाल कल्याण समिति करौली।
बजट नहीं, कैसे कराएं सर्वे
पिछले कुछ महीनों से ही
विभाग का कार्यभार सौंपा गया है। बाल श्रमिकों के सर्वे के लिए बजट ही उपलब्ध नहीं
है। बजट के बारे में कार्रवाई करके सवे üकराया जाएगा। शिवचरण मीणा, कार्यवाहक
श्रम कल्याण अधिकारी, करौली।