कौशांबी. नोटबंदी की मार ने कौशांबी के सेबिया अमरूद के कारोबारियों की कमर तोड़ दिया है। जो सेबीय अमरूद पिछले साल बीस से तीस रुपए किलो बिकता था वही अमरूद इस साल पांच से दस रुपये किलों मे बामुश्किल बिक रहा है। कौशांबी मे लगभग एक हजार हेक्टेयर मे अमरूद की बागवानी होती है इसमे से लगभग पांच सौ एकड़ सेबिया अमरूद पैदा होता है। उद्यान विभाग के आकाड़ों की माने तो इस साल अमरूद की बागवानी करने वाले किसानों को करोणों रुपये की चपत लगाना तय है। बागवानों का कहना है कि नोटबंदी के बाद जो हालत पैदा हुये हैं। उससे अमरूद को दूसरे राज्यों मे भेजना मुश्किल हो गया है। किसी तरह भेजा भी जाता है तो बिक्री के रुपयों को लाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। हालत यह है कि पेड़ों मे ही अमरूद पक कर जमीन पर गिर रहे हैं।
गंगा यमुना के बीच बसे कौशांबी जिले मे लगभग एक हजार एकड़ मे अमरूद के बागवानी होती है। इसमें से लगभग पांच सौ एकड़ मे सेबिया अमरूद की बागवानी होती है। सेब जैसा दिखने वाला सुर्खा अमरूद उसी की तरह मिठास से भी भरा रहता है। कौशांबी के सेबिया अमरूद को देश के विभिन्न राज्यों के अलावा पड़ोस के कई देशों तक बेचने के लिए भेजा जाता है। जिससे यहा के किसानों को अपनी उपज का बेहतर लाभ मिलता है। हालांकि इस बार हालात बदले हुये हैं।
नोटबंदी की मार से सेबिया अमरूद का व्यापार भी अछूता नहीं रहा। बागवानों की माने तो आस पास की मंडी या फिर दूसरे राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाना, पंजाब आदि जगहों पर भेजने मे वाहनों की किल्लत झेलनी पड़ती है। सभी ट्रांसपोर्टर छोटे नोट की मांग करते हैं। किसी तरह से अमरूद को दूसरे राज्यों की मंडी तक पहुंचाते है तो वहां बिक्री के बाद रुपयों को सम्हालना मुश्किल हो जाता है। आढ़ती पूरा रुपया कैश देता है। वहां के बैंको मे जमा नहीं किया जाता। बड़ी रकम लेकर आने मे कई तरह का रिस्क होता है। नोटबंदी से बिगले हालात के कारण अमरूद पेड़ों पर ही लग रह जा रहे है, जिससे पकाने के बाद वह अपने आप जमीन पर गिर कर सड रहे हैं।
जिला उद्यान विभाग भी अमरूद बागवानों की समस्या से वाकिफ है। प्रभारी उद्यान अधिकारी मंशाराम का कहना है कि कौशांबी की मिट्टी व जलवायु ऐसी है कि यहा सेब की तरह दिखने व उसी की तरह मीठा अमरूद होता है। कौशांबी व इलाहाबाद के कुछ हिस्से को छोडकर इस प्रजाति का अमरूद कही और नहीं होता। एक हजार एकम मे फैले अमरूद के कारोबार को इस बार नोटबंदी की मार झेलनी पड़ रहा रहा है। कौशांबी मे सेबिया अमरूद की जबरजस्त पैदावार होती है। एक एकड़ मे तकरीबन दस से बारह टन अमरूद निकलता है। पिछले साल सेबिया अमरूद की कीमर चास से पचास रुपये किलो तक थी जो इस बार बीस रुपए के आस पास सिमट गई है। नोटबंदी से जो हालत है उससे साफ अंदाजा लग रहा है कि इस बार अमरूद बागवानों को करोणों रुपये की चपत लगना तय है।
मौजूदा हालत मे किसान खून के आसू रो रहे हैं। एक ओर उनके उपज का वाजिब रकम नहीं मिल रहा है तो दूसरी ओर खाद, बीज की भी किल्लत झेलनी पड़ रही है। किसानों व बागवानों के पास जो बड़े नोट थे उसे उन्होने किसी तरह लाइन मे लगकर बाइकनों मे जमा कर दिया। अब हालत यह है कि किसान व बागवान अपने रुपयों के लिए बैंकों व एटीएम के बाहर लाइन मे लगते है। किसी को रुपये मिलते है तो किसी को दिन भर लाइन मे लगे रहने के बाद खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है।