लखनऊ घराना
अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ। लखनऊ शैली के कथक नृत्य में सुंदरता, प्राकृतिक संतुलन होती है। कलात्मक रचनाएं, ठुमरी आदि अभिनय के साथ-साथ होरिस, शाब्दिक अभिनयुद्ध और आशु रचनाएं जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में, पंडित बिरजू महाराज (अच्छन महाराजजी के बेटे) इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।
जयपुर घराना
राजस्थान के कच्छवा राजा के दरबार में इसका जन्म हुआ। शक्तिशाली फुटवर्क, कई चक्कर और विभिन्न ताल में जटिल रचनाओं के रूप में नृत्य के अधिक तकनीकी पहलू यहां महत्वपूर्ण हैं। यहां पर पखवाज का बहुत उपयोग होता है।
बनारस घराना
जानकी प्रसाद ने इस घराने की प्रतिष्ठा की थी। यहां नटवरी का अनन्य उपयोग होता है एवं पखवाज और तबला का इस्तेमाल कम होता है। यहां ठाट और ततकार में अंतर होता है। न्यूनतम चक्कर दाएं और बाएं दोनों पक्षों से लिया जाता है।
रायगढ़ घराना
छत्तीसगढ़ के महाराज चक्रधार सिंह ने इस घराने की प्रतिष्टा की थी। विभिन्न पृष्ठभूमि के अलग शैलियों और कलाकारों के संगम और तबला रचनाओं से एक अनूठा माहौल बनाया गया था। पंडित कार्तिक राम, पंडित फिर्तु महाराज, पंडित कल्यानदास महंत, पंडित बरमानलक इस घराने के प्रसिद्ध नर्तक हैं।