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खंडवा

खामोशी की चादर ओढ़े चला गया ‘अमन की बात करने वाला…

साहित्यकार गोपीनाथ कालभोर का निधन …. बुधवार शाम को मुक्तक संग्रह ‘अमन की बात भी करते चलें का होना था लोकार्पण, सुबह ही छोड़ गए हमारा साथ

खंडवाJul 27, 2017 / 03:30 pm

राजीव जैन

Author gopinath kalbhor of khandwa Died

Author gopinath kalbhor of khandwa Died

खंडवा. मंगलवार रात तीन बजे होंगे, जब पुस्तक पर समीक्षा आलेख तैयार हो गया। निश्ंिचत होकर सो गया। सुबह डॉ. नीरज दीक्षित के फोन से नींद खुली। उन्हें भी इसी कार्यक्रम में आलेख पढऩा था। पूछा- आपको पता चला क्या कालभोर जी के बारे में? कोई अनहोनी की तो सोच थी ही नहीं, सुबह हृदयाघात से उनका निधन हो गया। कान में जैसे पिघला सीसा डाल दिया हो। जिस रचनाकार की रचनाधर्मिता पर चर्चा करनी थी, उन्हें श्रद्धांजलि के साथ विदा देने के लिए खड़ा होना पड़ेगा। अग्निरथ पर सवार होकर देहयात्रा समाप्त कर अनंत यात्रा पर निकल पड़े प्रिय गोपीनाथ कालभोर।
बैतूल जिले के ग्राम रोंढा में 15 मई 1945 को जन्मे शिशु के परिवार ने कहां सोचा होगा कि यही बालक एक दिन निमाड़ की माटी पर परचम फहराएगा। निमाड़ी मालवी की तरह बैतूल, छिंदवाड़ा और आसपास के जिलों में पवारी बोली जाती है। पवार बोलने वाले परिवार के इस सपूत ने पवारी का पुख्ता व्याकरण तैयार कर बोली को अपने जनपद में स्थापित कर दिया।
23 सम्मान ने बढ़ाया उनका कद 
उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त रचनाकार गोपीनाथ कालभोर स्थानीय महाविद्यालय में पुस्तकालय अधीक्षक थे। यहां वे अपने छात्रों में सहयोगी व्यवहार के कारण लोकप्रिय थे। यही वह स्थान था, जहां उनके भीतर का साहित्यकार पुस्तकों से दोस्ताना कर बैठा। पढ़ा, खूब पढ़ा, पढ़ते गए और पढ़ते गए। साहित्य किसी नशे की तरह आपको सम्मोहित कर अपने बस में कर लेता है। नब्बे के दशक के आखिरी दिनों से प्रकाशन का सिलसिला आरंभ हुआ जो अंतिम दिन तक जारी रहा। आखिरी दिन उनकी पुस्तक अमन की बात भी करते चलें… का लोकार्पण कार्यक्रम था। सतत सक्रिय कालभोर के खाते में 23 प्रादेशिक व राष्ट्रीय सम्मान भी थे, जो उनके ऊंचे कद की गवाही देते थे। वे सुंदरकांड पाठ व अखंड रामायणी के रूप में खंडवा जिले के अलावा आसपास के जनपदों में शिरकत करते। एक के बाद एक कार्यक्रम बिना थके कर देना उनके लिए प्रभु का प्रसाद था।

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हार्माेनियम पर मचलती थी अंगुलियां 
हार्मोनियम पर मचलती अंगुलियों को देख मैंने एक बार पूछ ही लिया था…सर ये पेटी बजाना आपने किस उम्र से सीखना शुरू कर दिया था। हंसते हुए बोले- गोविंदा, मैंने कभी किसी वाद्ययंत्र को बजाने की औपचारिक शिक्षा नहीं ली, बस देखता गया और सीखता गया। पाठ के दौरान वे जैसे प्रभु में एकाकार हो जाते थे। सेवानिवृत्ति के बाद व्यवसाय भी कागज, कलम का चुना। पुष्पगोरनी एेसी दुकान थी, जहां से सामान के साथ उनकी मुस्कान मुफ्त में मिलती थी। यही पुष्पगोरनी प्रकाशन में बदला। लेखन सामग्री के अलावा उनका प्रयास होता, उच्चकोटि का साहित्य शहर के शब्द प्रेमियों को उपलब्ध करवाना। 


साहित्य जगत में सूना 
व्यवहार के व्यवसाय में उन्होंने असीम स्नेह और बेशुमार इज्जत कमाई। उनके जाने से शहर के धर्मप्रेमी मायूस हैं। कौन पूरी रात राम नाम के सागर में गोते लगवाएगा, कौन सुंदरकांड का पाठ कर संकटों से मुक्ति का विश्वास दिलाएगा। साहित्य जगत में भी गहरा सन्नाटा छा गया है। अब एेसा सौम्य व्यक्तित्व कहां से लाएंगे? देर शाम आंखों में आंसू, अधरों पर प्रार्थनाएं और मन में खालीपन लिए इंदौर रोड के किशोर कुमार श्मशान से शहर वापस लौट रहा था।Ó
(जैसा साहित्यकार गोविंद शर्मा ने अमित जायसवाल को बताया)

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