scriptचौथी कक्षा तक पढ़ी दादी मां, आज हैं ब्रह्माकुमारी संस्था की हेड, 101 साल है उम्र, कैसे…. जानें इनकी दिनचर्या | Interview of Spiritual Leader RAJYOGINI DADI JANKI Chief of Brahma Kumaris on her 101 birthday celebration | Patrika News

चौथी कक्षा तक पढ़ी दादी मां, आज हैं ब्रह्माकुमारी संस्था की हेड, 101 साल है उम्र, कैसे…. जानें इनकी दिनचर्या

locationखंडवाPublished: Jan 08, 2017 01:51:00 pm

Submitted by:

Editorial Khandwa

गीतम विश्वविद्यालय, विशाखापट्नम ने डॉक्टरेट की उपाधि से किया सम्मानित, विश्व का एकमात्र संगठन जो महिलाओं द्वारा होता है संचालित, विश्व के 140 देशों में संस्था के 9000 से अधिक सेवाकेंद्र, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बनाया स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेसेडर, विश्व की सबसे स्थिर मन की महिला का रिकॉर्ड, दादी के उद्गार- समस्याओं का हल आंतरिक सकारात्मक बदलाव से संभव

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माउण्ट आबू से लौटकर पुष्पेंद्र साहू/पत्रिका.

जीवन के 101 वसंत पूरे करने के बाद भी युवाओं जैसा उत्साह। इस उम्र में लगातार 18 घंटे विश्व कल्याण के लिए सेवा में तत्पर। आज भी सुबह 3 बजे से उठना। नियमित राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास, सात्विक भोजन और नियमित दिनचर्या।
हम बात कर रहे हैं प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी जानकी की। दादी जानकी 1 जनवरी को अपने जीवन के 101 वसंत पूरे करने वाली हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी उनमें युवाओं जैसा उत्साह, लगन और विश्व सेवा में तत्पर हैं।
दादी का जन्म अविभाज्य भारत के हैदराबाद सिंध प्रांत में 1916 में हुआ। मात्र चौैथी कक्षा तक पढ़ी दादी ने 16 वर्ष की अल्पायु में ही जीवन को समाजसेवा में समर्पित करने का संकल्प कर लिया था। सादगी, सरलता, स्वच्छता और पवित्रता की मिसाल दादी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन का ब्रांड एंबेसेडर बनाया है। 1970 के दशक में लंदन से आध्यात्मिकता का शंखनाद करने वाली दादी ने आज विश्व के 140 देशों में आध्यात्मिकता का संदेश दिया।

विश्व की सबसे स्थिर मन वाली महिला का रिकॉर्ड
दादी जानकी का विश्व की सबसे स्थिर मन वाली महिला का रिकॉर्ड भी है। आपके सान्निध्य में वर्तमान में दस लाख भाई-बहनों सद्मार्ग की राह पर सफलतापूर्व चल रहे हैं।
स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का नारा लेकर चल रही ब्रह्माकुमारी संस्था की मुख्य प्रशासिका दादी जानकी से पत्रिका की विशेष बातचीत-

सवाल: दादी आप इतनी उम्र में इतना बड़ा कारोबार कैसे संभालती हैं?
जवाब: मैंने कभी स्वयं को हेड माना ही नहीं, क्योंकि जब आप स्वयं को किसी संस्था या कंपनी का हेड समझते हैं तो हेडक शुरू हो जाती है। जीवन का उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। बस, जो जिम्मेदारी उस परमपिता परमात्मा के निर्देशानुसार मिली है उसे निभा रही हूं। मैं तो निमित्त मात्र हूं। करनकरावनहार तो परमात्मा हैं। मेरा अनुभव है कितनी भी बड़ी जिम्मेदारी क्यों न हो, आप उसे ईश्वर को सौंप दें फिर ईश्वर आपकी संभाल करेगा।

सवाल: दादी आप 1 जनवरी को 101 वर्ष की हो जाएंगी। इसके बाद भी आपमें युवाओं जैसा उत्साह है, इसका क्या राज है?
जवाब: यदि जीवन में उमंग-उत्साह नहीं तो जीवन बेकार है। कार्य छोटा हो या बड़ा उसे उमंग-उत्साह से करने में ही सफलता मिलती है। इसके लिए अपने विचारों, संकल्प को पवित्र और शक्तिशाली बनाएं। परमात्मा का ध्यान करें और हर दिन को आखिरी दिन समझकर जीएं। जीवन में आपको जो मिला है उसे परमात्मा की अमानत समझकर खुश रहें और जीवन का आनंद लें। जीवन का एक ही उद्देश्य है लोगों में मानवीय मूल्यों को बांटना और उन्हें नए जीवन जीने की प्रेरणा के लिए प्रेरित करना। मैंने पूरे जिंदगी में कभी झूठ नहीं बोला है। प्रतिदिन राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास और नियमित दिनचर्या जीवन का हिस्सा है।

सवाल: आज दुनिया में तेजी से मानसिक समस्याओं बढ़ती जा रही हैं, इन्हें कैसे रोका जा सकता है?
जवाब: मैं समझती हूं कि यदि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वरीय कानूनों का पालन करना शुरू कर दे तो उसके मन में कभी भी अराजकता और बुराइयों के लिए स्थान नहीं बच सकेगा। मैंने अपने जीवन में सीखा है कि हमें सदैव दूसरों को सुख देने का संकल्प रखना चाहिए। इससे हमें स्वयं सुख मिलता रहता है। मैं बचपन में सोचती थी कि मनुष्य एक-दूसरे को क्यों कष्ट देते हैं। क्योंकि कष्ट देना तो आसुरी स्वभाव है। मनुष्य दुनिया में सबसे अच्छा प्राणी है फिर भी उसके अंदर दानवता के संस्कार क्यों हैं। मुझे हमेशा यही लगता था कि मैं दूसरों की तन-मन और धन से सेवा करूं । लेकिन रूढि़वादी समाज में उस समय असंभव सा लगता था। उस समय तो महिलाओं के अधिकारों की समाज में चर्चा तक नहीं होती थी। परमात्मा के सानिध्य से सब आसान होता चला गया।

सवाल: जीवन में बदलाव कैसे आया?
जबाव: मैं जब करीब 16 वर्ष की थी, उस दौरान ब्रह्माकुमारी विश्व विद्यालय के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा से मिलने का सुअवसर मिला। उसके बाद मेरे मन की सभी मुरादें पूरी होती नजर आईं। बाबा से मिलने के बाद मैंने यह तयकर लिया कि आज से मैं अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में लगाऊंगी। आप भी पारिवारिक दायित्वों के साथ-साथ मानवता की सेवा में अपना योगदान प्रारम्भ करें तो सामाजिक कुरीतियों से मुक्त हुआ जा सकता है।


सवाल: संस्था से जुडऩे के बाद आपमें प्रारंभिक तौर पर क्या बदलाव आए?
जवाब: आदर्श जीवन जीने और दूसरों को सुख देने के लिए जरूरी था कि मैं अपने अंदर सद्गुणों को धारण करूं, ताकि किसी भी परिस्थिति में हमें सोचने, समझने में मदद मिल सके। इसके लिए समाज की कितनी बाधाएं झेलनी पड़ी, लेकिन दैवी गुणों की शक्ति और परमात्मा का सान्निध्य जीवन को आगे बढ़ाता रहा। समाजसेवा के साथ-साथ अपने कर्मों से दूसरों की सेवा करने का सही रास्ता माना। दुनिया में तमाम लोग हैं जिनके वचन तो हैं, लेकिन कर्म उतने श्रेष्ठ नहीं हैं जिनको देखने से व्यक्ति का व्यक्तित्व बदल जाए। समाज अथवा व्यक्ति का बदलाव तभी संभव हो पाता है जब उसे दूसरों से प्रेरणा के साथ शक्ति और साहस दोनों मिले। हमें समाज, प्रशासन, व्यवसाय, कुटुम्ब और अपने कार्यक्षेत्र में रहते हुए कर्मों की तरफ ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। कर्म ही मनुष्य को तन-मन और धन तीनों से सेवा करने का साधन बन पाएगा।

सवाल: उस दौर में महिला होने के नाते क्या चुनौतियां आईं?
जवाब: माताओं-बहनों की स्थिति और सम्मान का दर्जा दिलाते हुए एक ऐसे समाज के निर्माण का सूत्रधार बनना तत्कालीन समय में एक गंभीर चुनौती था। परंतु संस्था के साकार संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा तथा परमात्मा के सान्निध्य की शक्ति ने हमें आंतरिक रूप से बहुत मजबूत किया। चुनौैतियां तो कई सामने आईं लेकिन जब हमारे इरादें नेक हों तो ईश्वर भी मदद करता है।

सवाल: विदेशों में आध्यात्मिकता का संदेश देने में क्या दिक्कतें आईं?
जवाब: ब्रह्मा बाबा ने वर्ष 1970 में विदेशों में आध्यात्मिकता का संदेश देने मुझे लंदन भेजा। जबकि उस समय वहां पर कोई भी रहने का स्थायी ठिकाना नहीं था और न ही मुझे अंगेजी आती थी। इसके बावजूद प्रेम, सहिष्णुता और सद्भावना की भाषा स्थानीय भाषाओं पर भारी पड़ी और भारतीय संस्कृति के बीज प्रस्फुटित हुए।
लोगों ने मेडिटेशन और आध्यात्म ज्ञान से स्वयं में बदलाव महसूस किए। धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया। लंदन के बाद अफ्रीका, वाशिंगटन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, स्वजरलैंड सहित आज विश्व के 140 देशों के लोगों की सेवा करने का मौका मिला। आज विदेशों में भी हजारों लोग भारतीय अध्यात्म की राह पर चलकर सुखमय जीवन जी रहे हैं।

सवाल: क्या संस्था अपने मिशन में कामयाब होगी?
जवाब: कई देशों के प्रतिनिधियों ने मुझे अपने देश की नागरिकता देने की कोशिश की। परंतु मुझे अपना देश भारत प्यारा है। नागरिकता देने वाले प्रतिनिधियों को भी मैं भारत में आकर यहां की संस्कृति में घुलने और मिलने के लिए आमंत्रित करती रहती हूं। आज मुझे गर्व है कि लाखों लोगों की जिंदगी में एक नई रोशनी भरने का जो ईश्वर ने मुझे कार्य दिया था, उसे सफलतापूर्वक कर रही हूं। संस्था का स्थापना से ही नारा है ‘स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तनÓ। निश्चित ही एक दिन यह विश्व बदलेगा और दुनिया से काले बादल हटेंगे।

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