खराब स्कूली परिणाम, जलन, चिंता आदि के कारण यह समस्या उनमें बढ़ रही है। कई बार माता-पिता बच्चों के अवसाद का अनुमान नहीं लगा पाते। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि उनकी कुछ बातों और आदतों पर निगरानी बनाए रखें।
आजकल बच्चे छोटी-छोटी बातों को लेकर जल्दी तनावग्रस्त होने लगे हैं। नतीजतन उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति में खासी वृद्धि देखी गई है। लेकिन यह प्रवृत्ति अचानक पैदा नहीं होती। खराब स्कूली परिणाम, जलन, चिंता आदि के कारण यह समस्या उनमें बढ़ रही है। कई बार माता-पिता बच्चों के अवसाद का अनुमान नहीं लगा पाते। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि उनकी कुछ बातों और आदतों पर निगरानी बनाए रखें।
अगर बच्चा बार-बार कुछ कर गुजरने या मरने की धमकी देने लगे तो सावधान हो जाएं। इसका आशय है कि उसके मन-मस्तिष्क में कुछ गलत करने की सोच आने लगी है। ऐसे में उसके पीछे का कारण जानें और उचित परामर्श दें। कम उम्र से ही जीवन-मृत्यु पर लिखने लगे तो माता-पिता को ध्यान देना चाहिए। यह असामान्य गतिविधि है। आत्महत्या की खबरें चाव से पढ़ता है या ऐसी खबरों की कटिंग सहेजकर रखता है तो उनकी मनोस्थिति पर तत्काल ध्यान दें। बच्चा तेज साइकिल या वाहन दौड़ाए, ग्रीन सिग्नल में सड़क पार करे तो सतर्क हो जाएं। इसका मतलब जीवन के प्रति उनकी उदासीनता भी हो सकता है जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।
अनिद्रा या देर रात को उठकर चलने लगना इस बात का संकेत है कि वह किसी चीज की कमी महसूस कर रहा है। ऐसे में उसे समझें और हिम्मत दें। आत्महत्या की सोच पनपने के बाद बच्चों में खेलकूद के प्रति रुझान कम हो जाता है। ऐसे में उनके निष्क्रिय होने के कारणों को खोजें। तनाव के क्षणों में बच्चे की मनोदशा अभिभावक ही बेहतर समझ सकते हैं। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चे को समझकर उसे सकारात्मक संरक्षण देें। यदि बच्चा किसी मृत रिश्तेदार के बारे में अकारण या बार-बार पूछताछ करे तो इसकी वजह जानने की कोशिश करें। यदि उस रिश्तेदार ने आत्महत्या की थी तो ज्यादा सावधानी की जरूरत है।
अपना पसंदीदा सामान या खिलौने दोस्तों या अनजान लोगों में बांटने लगे तो इसका कारण केवल उदारता नहीं है, यह भी हो सकता है वह चाहता हो कि उसके बाद उसकी प्रिय चीजें संभालकर रखी जाएं। बच्चा यदि जीने-मरने की बात करने लगे तो कारण को समझकर उसे प्यार से समझाएं। ज्यादातर माता-पिता को बच्चे की सोच का सबसे बाद में पता चलता है। वे किसी भी बात को पहले अपने मित्रों से साझा करते हैं। ऐसे में बच्चों की उनके मित्रों से बातचीत पर गुपचुप नजर बनाए रखें।