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सरकारी हैंडपंप से निकले पानी ने पहले दिया विकलांगता का दंश, अब… मौत की दस्तक

locationकोरबाPublished: Jan 11, 2017 12:37:00 am

-पोडी-उपरोड़ा ब्लाक के ग्राम फुलसर में फ्लोराइड ने जिंदगी बना दी दुश्वार -लोग घुट-घुट जीने को मजबूर

Government hand pumps wastewater to the first bite

Government hand pumps wastewater to the first bite of disability, death knock now …

कोरबा. फुलसर गांव के बच्चे, युवा व बुजुर्ग फ्लोराइड के कारण पिछले पांच साल से विकलांगता का दंश झेल रहे हैं लेकिन अब तो यहां के ग्रामीणों को जीवन अभिशाप लगने लगा है। फ्लोराइड से पीडि़त 55 वर्षीय बुजुर्ग की इसी वजह से रविवार को मौत हो गई थी। इस मौत के बाद न तो पीएचई के अफसर पहुंचे न ही स्वास्थ्य विभाग ने हाल जानने के लिए हेल्थ कैंप लगाया। फ्लोराइड से ग्रसित इस गांव में दहशत व्याप्त है। जिला मुख्यालय से 82 किलोमीटर दूर बसे गंाव फुलसर में सरकारी हैंडपंपों से निकला पानी इनके लिए अभिशाप से कम नहीं। इन हैंडपंपों से निकले पानी ने यहां के लोगों को विकलांग बना दिया है।
बचपन से अपने पैरो पर चलने वाले लोगों को लाठी का सहारा लेना पड़ गया है। फ्लोराइड का असर पिछले सात साल से सामने आना लगा। पीएचई ने इसे संजीदगी से नहीं लिया। लोग पानी पीते रहे। आखिरकर एक दर्जन से ज्यादा लोगों के हड्डियों पर सीधा असर पडऩे लगा। देखते ही देखते किसी के हाथ तो किसी पैर व दांत, गर्दन की हडड्ी टेढ़ी होनी लगी। इतने साल से यहां के लोग जो विकलांगता का दंश झेल रहे थे तो अब इससे मौतें भी होने लगी है। रविवार को 55 वर्षीय बुजुर्ग सुधार सिंह की मौत के एक दिन बाद गांव का हाल जानने पत्रिका टीम पहुंची। पूरे गांव में वीरानी छायी हुई थी। फ्लोराइड से पीडित परिवार के लोगों ने इस तरह सुनाया दुखड़ा।
सबसे पहले पत्रिका टीम हालेपारा में रहने वाले धनराज सिंह के घर पहुंची। धनराज सिंह व उसका 21 वर्षीय बेटा रविशंकर दोनों ही फ्लोराइड से पीडि़त है। जब धनराज सिंह ने अपने बेटे को बुलाया तो वह बाहर नहीं निकला, क्योंकि वह नहीं चाहता कि उसकी तस्वीर अखबार में छपे। उसे शर्मिंदगी होती है, उसने दरवाजे के पीछे से ही बात की। उसने बताया 10 कक्षा तक मैं ठीक था। दोस्तों के साथ खेलने जाता था पर (रोते हुए) एक दिन अचानक जब सोकर उठा तो अपने पैरों पर चल ही नहीं सका। काफी मालिश के बाद अब वह चलने लायक हो गया है।

इसके ही पड़ोस में रहने वाले फुलस्त बाई के जब घर पहुंचे। तो उसके साथ उसकी 23 वर्षीय बेटी भी साथ आई। फुलस्त बाई ने बताया जब उसकी बेटी नौंवी में थी तब अचानक शरीर कमजोर होने लगा। अचानक उसकी गर्दन झुक गई। अब वह ऊपर नहीं देख पाती। एक समय था जब उसका वजन 55 था लेकिन अब घट कर 35 कि ग्रा रह गया है। इस वजह से उसे पढ़ाई छोडऩी पड़ी। ये सभी मोहल्ले में पीएचई द्वारा खोदेे गए हैंडपंप का पानी पीते थे। अब मजबूरन फुलस्त बाई को लोन लेकर घर में कुआ खोदवाना पड़ा।

यहां के चार कदम आगे ही शिव रतन दास का घर का है। शिव रतन ने बताया की उसके दो बेटे नवल दास व थीरमल दास दोनों ही इस बीमारी से पीडि़त है। एक के गले में तो दूसरे के कमर में परेशानी है। दोनों अच्छे तरीके से चल नहीं पाते। स्कूल जाने में असमर्थ दोनों ने अब पढ़ाई छोड़ दी है। सुधार सिंह की मौत के बाद अब शिव रतन को अपने दोनों ही बच्चों की भविष्य की चिंता सता रही है। वह चाहता है कि सरकार अच्छी जगह पर इलाज कराएं।

अंतिम में जब हम फ्लोराइड से मरे सुधार सिंह के घर पहुंचे। तो घर में सन्नाटा पसरा हुआ था। सुधार सिंह का भतीजा चैन सिंह व उसकी पत्नी घर पर थे। उसने बताय की उसके चाचा को चार साल से यह बीमारी थी। उसके दोनों ही पैर टेढ़े मेढे हो गए थे। कुछ माह बाद उसकी गर्दन भी झुक गई। वह चल फिर नहीं पाता था। एक ही जगह पर पड़े रहता था। पिछले चार माह से कमजोरी बढ़ गई थी। इसके चलते उसकी मौत हो गई। चैन सिंह ने बताया की उसके पिता इतवार सिंह की भी दो साल पहले इसी वजह से मौत हो गई। यहां तक की चैन सिंह जो की महज 38 साल का है। वह भी अब विकलांग हो चुका है। उसके दोनों ही पैर खराब हो चुके है।
इस संदर्भ में पूछे जाने पर बृजेश सिंह क्षत्रीय, एसडीएम पोड़ीउपरोड़ा ने बताया कि फुलसर सहित अन्य गांव में फ्लोराइड की परेशानी जरूर है। लगातार मामले सामने आ रहे हैं। टीम ने हाल ही में सैपलिंग ली है। पूरी कोशिश की जा रही है की इस समस्या से ग्रामीणों को निजात दिला सकें।

समस्या बढ़ती चली गई, निदान पर पलीता लगाते रहे अफसर- जब पीएचई को फ्लोराइड की जानकारी हुई तब हैंडपंपों में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाया गया। ऐसा मशीन लगाया गया जो की तीन माह भी चल नहीं सका। लोग वहीं का पानी पीते रहे। और बीमारी बढ़ती चली गई।

हैंडपंप से आने वाले पानी में परेशानी है, जबकि कम गहराई वाले कुएं के पानी मेें फ्लोराइड की मात्रा नहीं है। यह जानते हुए भी अफसरों ने एक भी सरकारी कुआं नहीं खुदवाया।

हद तो तब हो गई जब आठ माह पूर्व स्वास्थ्य विभाग ने यहां कैंप लगाया तो पीडि़त लोगों का उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधा देने के बजाए खानापूर्ति की गई। लोगों को पैरासीटामाल तो ताकत के लिए मखना व लाल भाजी खाने की सलाह देकर टीम लौट आई।

गांव फुलसर से तीन किलोमीटर आगे हसदेव नदी बहती है। पीएचई चाहे तो ओवरहेड टैंक बनाकर घर घर कनेक्शन दे दे। इससे परेशानी खत्म हो जाती। पर अब तक इसके लिए कोई कार्ययोजना तक नहीं बनाई गई।
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