व्यापारियों ने गुरुवार को सरकार से मांग की कि यदि वह नकद रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना चाहती है तो उसे एटीएम की संख्या कम कर व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर ज्यादा से ज्यादा कार्ड मशीन लगाने को प्रोत्साहन देना चाहिए।
व्यापारियों ने गुरुवार को सरकार से मांग की कि यदि वह नकद रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना चाहती है तो उसे एटीएम की संख्या कम कर व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर ज्यादा से ज्यादा कार्ड मशीन लगाने को प्रोत्साहन देना चाहिए।
अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (कैट) ने डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड के जरिए भुगतान को बढ़ाव देने के लिए मास्टरकार्ड और एचडीएफसी बैंक के साथ मिलकर यहां आयोजित एक कार्यशाला में यह बात कही।
उल्लेखनीय है कि मास्टरकार्ड और एचडीएफसी बैंक अगले महीने कैट द्वारा लांच होने वाले ई-कॉमर्स पोर्टल ई-लाला के सहयोगी हैं। पोर्टल पर मास्टरकार्ड से भुगतान स्वीकार किए जाएंगे, जबकि एचडीएफसी बैंक इसके लिए गेटवे उपलब्ध कराएगा।
कार्यशाला में कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि देश में होने वाले कुल लेनदेन में सिर्फ चार प्रतिशत कार्ड के माध्यम से होता है। देश में एटीएम की संख्या ज्यादा होने और कार्ड मशीनों की संख्या कम होने के कारण लोग नकद लेनदेन ज्यादा करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि सरकार नकद रहित अर्थव्यवस्था को वाकई बढ़ावा देना चाहती है तो उसे एटीएम कम कर कार्ड मशीन को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वर्तमान में देश में सिर्फ 12 लाख कार्ड मशीनों का इस्तेमाल होता है।
मास्टरकार्ड के क्षेत्रीय अध्यक्ष और भारत प्रमुख पौरुष ङ्क्षसह ने कहा कि छोटे व्यवसायी भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसलिए मास्टरकार्ड इस समुदाय को नवीनतम तकनीक से जोडऩा चाहता है। एचडीएफसी बैंक की वरिष्ठ उपाध्यक्ष स्मिता भगत ने कहा कि बैंक कैट के साथ मिलकर देश में छोटे व्यापारियों को कार्ड से भुगतान करने पर हर तरीके के भुगतान संबंधी रास्ते प्रदान करेगा। कैट ने कार्यशाला के दौरान पेश आंकड़ों का हवाला देते हुए सरकार से छोटे व्यापारियों को आसानी से ऋण उपलब्ध कराने की मांग की।
खंडेलवाल ने कहा कि देश के छह करोड़ छोटे व्यापारियों का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 45 प्रतिशत योगदान है और छोटे व्यापारियों का सालाना कारोबार 30 लाख करोड़ का है। इस क्षेत्र पर 46 करोड़ लोगों का जीवन यापन निर्भर करता है। इसके बावजूद जहां बड़े औद्योगिक घरानों के पास 50 लाख करोड़ रुपए का बैंक ऋण है, वहीं छोटे व्यापारियों की बैंक ऋण में हिस्सेदारी महज चार प्रतिशत है।