केवल सर्दी जुकाम के इलाज तक ही सीमित है जिला अस्पताल, कागजो मे आईएसओ सर्टिफाईड
जिला अस्पताल में पिछले कई वर्षों से एमडी मेडीसिन का पद रिक्त हंै। पिछले
सिविल सर्जन पीएस सिसोदिया के प्रमोट होकर सीएमएचओ बनने के बाद अब सर्जन का
पद भी रिक्त हो गया।
Only winter cold treatment in District Hospital, ISO Certified in Paper
कोरबा. जिला अस्पताल में पिछले कई वर्षों से एमडी मेडीसिन का पद रिक्त हंै। पिछले सिविल सर्जन पीएस सिसोदिया के प्रमोट होकर सीएमएचओ बनने के बाद अब सर्जन का पद भी रिक्त हो गया।
ऐसे में लोगों को बेहतर इलाज नहीं मिल रहा है और स्वास्थ्य विभाग भी इस ओर आंखें मूंदे हुए हैं। फिर भी जिला अस्पताल कागजो में आईएसओ सर्टिफाईड है।
वर्तमान में जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति इतनी खराब है कि यहां इमरजेंसी केस तो दूर की बात है। किसी भी तरह के गंभीर बीमारी का इलाज या फिर जटिल ऑरपेशन तक नहीं किया जा सकता।
इसकी वजह है विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव। जिला अस्पताल प्रबंधन द्वारा हर माह इसकी जानकारी शासन को भेजी जाती है। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और व्यवस्था अब भी जस की तस बनी हुई है। जिला अस्पताल को कायाकल्प योजना के तहत पुरस्कार मिला हो या फिर आईएसओ सर्टिफिकेट।
बेहतर उपचार न होने के कारण मरीजों के लिए इस उपलब्धि से कोई महत्व नहीं है। शहरी व दूरस्थ अंचल से प्रतिदिन आने वाले मरीज़ों को उच्च स्तरीय इलाज की दरकार है
लेकिन हालात इतने खराब हैं कि अस्पताल में उपचार की बेहतर संभावना फिलहाल नहीं दिख रही है। अभी जिला अस्पताल में पुलिस द्वारा भेजे गए प्रकरणों में एमएलसी और पोस्टमार्टम के कार्य ही ज्यादा तादात में होते हैं। इसके लिए ही इसे पहचाना जाने लगा है। यहां पहुंचने वाले मरीज इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि कहीं इन्हें अन्यत्र रेफर न कर दिया जाए।
मरीजों से ले लेते हैं दस्तखत– वर्तमान हालत यह है कि जरा सी गंभीर हालत में जिला अस्पताल में पहला विकल्प मरीज को रेफर करना होता है। इससे गरीबों को काफी परेशानी होती है।
ग्रामीण अंचल से आने वाले गरीबों के लिए निजी अस्पताल का महंगा इलाज अब भी किसी सपने की तरह है। वह गंभीर अवस्था में भी गिड़गिड़ाते हुए कहते हैं कि भले ही मरीज की मौत हो जाए।
इलाज जिला अस्पताल में ही हो जाय क्योंकि कहीं और इलाज के पैसे ही नहीं हैं। ऐसे में जिला अस्पताल के डॉक्टर ऐसे मरीजों से एक ऐसे दस्तावेज पर दस्तखत करवा लेते हैं।
जिसमें साफ लिखा होता है कि मरीज की मौत होने की स्थिति में अस्पताल प्रबंधन जिम्मेदार नहीं होगा। तो कई मरीजों के परिजन रेफर करने पर घोर आपत्ति जताते हुए चिकित्सकों से ही उलझ जाते हैं।
बढ़ा मौसमी बीमारियों का प्रकोप– बरसात के शुरू होते ही मौमसी बीमारियों की चपेट में लोग आने लग हैं। आमतौर पर जिला अस्पताल में प्रतिदिन औसत मरीज़ों की संख्या लगभग 200 होती है। लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा बढ़कर 400 प्रतिदिन पहुंच गया है।
स्वीकृत पद जो अरसे हैं रिक्त
पद स्वीकृत रिक्त
-मेडिकल विशेषज्ञ 03 03
-सर्जिकल विशेषज्ञ 02 02
-शिशुरोग विशेषज्ञ 02 02
-निश्चेतना विशेषज्ञ 02 02
-रेडियोलाजिस्ट 01 01
-पैथोलॉजिस्ट 02 02
-अस्थि रोग विशेषज्ञ 01 01
-मनोरोग विशेषज्ञ 01 01