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रोजी के लिए बंजारों सी जिंदगी बिता रहे सात परिवार, बीस दिन से खीरी में जमाए हैं डेरा

locationलखीमपुर खेरीPublished: Jan 15, 2017 06:25:00 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

कितना मुश्किल है रस्ते को घर बोलना, कपड़े से बने फूल बेंचकर कमा रहे रोजी, खुशामद से मिलती है ठिकाना बनाने की जगह.

Lakhimpur

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लखीमपुर-खीरी। “जब कभी बोलना वक्त पे बोलना, मुद्दतों सोचना मुक्तसर बोलना। मेरी खाना बदोशी से पूछे कोई, कितना मुश्किल है रस्ते को घर बोलना”..कुछ ऐसी ही कहानी है मोहम्मदी के सात परिवारों की। इनके पास न आय का जरिया और न ही पुश्तैनी जायदाद के नाम पर कुछ है। मुफलिसी में जीते यह परिवार दो वक्त का पेट भरने के लिए घुमक्कड़ों सी जिंदगी जी रहे हैं। किसी की मेहरबानी पर डेरा जमाते हैं। हफ्तों रुक कर कपड़े के फूल तैयार करते हैं। घर-घर जाकर इन फूलों की बिकवाली करते हैं जो मिलता है उसी से अपना व अपने परिवार का पेट पालते हैं। सबसे बड़ी बात है कि जाति, धर्म, वर्ग के नाम पर राजनीति करने वालों को भी इनके दुख-दर्द से कोई वास्ता नहीं।

जिले की पहचान बनाने वाला कस्बा खीरी। यहां चौकी के पास खाली पड़ी जमीन पर इन दिनों सात परिवार टेंटनुमा झोपड़ी में रह रहे हैं। सुबह से शाम तक इन परिवारों के कई लोग कपड़े से डिजाइनर फूल बनाते दिखाई देते हैं। वहीं अन्य सदस्य इन फूलों को टोकरी आदि में रखकर घर-घर जाकर बेंचने का काम करते हैं। देखने पढऩे में सब कुछ सामान्य नजर आता है। मगर जब कोई इनकी जिंदगी में शामिल होता है। तब उन्हें इनका असली दर्द समझ में आता है। मूलत: मोहम्मदी के रहने वाले यह परिवार बेहद गरीब हैं। इनके पास आय का कोई जरिया नहीं। न ही पुस्तैनी जमीन जहां खेती-किसानी कर पेट पाल सकें। 

ऐसे में यह परिवार केवल कपड़े के फूलों की बिक्री के सहारे ही हैं। इन परिवारों के साथ रोजी कमाने आए बागीश बताते हैं कि उनके कच्चे-पक्के घर मोहम्मदी में बने हुए हैं, लेकिन आय के लिए वह लोग बंजारों सी जिंदगी बसर करते हैं। अलग-अलग कस्बों व नगरों में पहुंचते हैं। ठिकाना बनाने के लिए खाली पड़ी जगहों के लिए खुशामद-बरामद करते हैं। ठिकाना मिलने के बाद वहां टेंट की झोपडिय़ां बनाते हैं। रोजी कमाने के लिए कपड़ों के डिजाइनर फूल तैयार करते हैं। घर-घर जाकर लोगों को फूल बेचते हैं और उससे होने वाली कमाई से अपना पेट पालते हैं। बागीश बताते हैं कि इसमें काफी समय खर्च होता है। बागीश सहित सातों परिवार इस काम पर निर्भर हैं। पिछले बीस दिनों से यह लोग यहां ठिकाना बनाए हैं। जब तक यहां ठीक-ठाक काम चल रहा है तब तक ही यह यहां हैं। जब काम ठंडा पड़ेगा तब यहां से कहीं और जाएंगे।

परिवार के मुखिया और उनका जिक्र
1. बागीश, उनकी पत्नी, चार लड़के व दो लड़कियां
2. प्रकाश, उनकी पत्नी, दो लड़कियां व एक लड़का
3. शरीफ, उनकी पत्नी व एक लड़का
4. तब्बी, उनकी पत्नी व दो लड़की
5. यूसुफ, उनकी पत्नी, दो लड़कियां व तीन लड़के
6. अली मोहम्मद अकेले
7. मोमना 40 व उनकी बेटी

पेट पालना मुश्किल तो बच्चों को कैसे पढ़ाएं
इन परिवारों में कई बच्चे हैं जिनकी उम्र पढऩे-खेलने की है। लेकिन परिवार की तंगहाली के चलते अपना बचपन छोड़ इन्हें भी काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है। बागीश कहते हैं कि सभी परिवार बेहद गरीब हैं। खाने का इंतजाम करने के लिए सभी को जुटना पड़ता है। फिर भी दो वक्त के खाने के लाले पड़ जाते हैं। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई को सोचा तक नहीं जा सकता है।

नेता वोट और सत्ता देखते हैं हमें नहीं
बागीश कहते हैं कि सभी परिवार बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं। लेकिन उनकी ओर कोई भी ध्यान नहीं देता। आज की राजनीति पर कुठाराघात करते हुए कहा कि जाति, धर्म और समुदाय के नाम पर सभी दल सिर्फ वोट हासिल करने में लगे हैं। सभी की चाहत केवल सत्ता हासिल करना है। गरीबों के लिए कोई काम नहीं करता।
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