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कमल खिलेगा, हाथी चलेगा या साइकिल का जलवा कायम रहेगा?

locationलखीमपुर खेरीPublished: Jan 18, 2017 06:53:00 pm

Submitted by:

Abhishek Gupta

मितौली विधान सभा सीट, मतदाताओं को पाले में करने में जुटे प्रत्याशी, सपा, कांगे्रस व भाजपा ने घोषित कर रखे हैं प्रत्याशी, कांग्रेस की घोषणा है अभी बाकी.

UP vidhan sabha

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लखीमपुर-खीरी. विधान सभा चुनाव में जीत का परचम फहराने के लिए सभी दल ताकत झोंक रहे हैं। कहीं-कहीं चुनाव तो और भी दिलचस्प है। कहीं चाचा-भतीजे में सामना होगा। कहीं पूर्व साथियों में भिड़ंत होगी। इसी तरह मितौली में भी मजेदार चुनाव होने की उम्मीद है। यहां फिलहाल सपा, बसपा व भाजपा ने प्रत्याशी घोषित कर रखे हैं। कांग्रेस का पत्ता खुलना फिलहाल बाकी है। मगर जो भी अभी तक सामने है वह भी दिलचस्प है।

यहां सपा से वर्तमान विधायक सुनील भार्गव ‘लाला’ के सामने अपनी साख बचाने की चुनौती है। तो पूर्व कस्ता विधायक राजेश गौतम को बसपा ने यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है। तीसरी चुनौती पूर्व में बसपा में मजबूत पैठ रखने वाले व वर्तमान में भाजपा नेता बने जुगुल किशोर के बेटे व पूर्व प्रदेश मंत्री सौरभ सिंह सोने मैदान में हैं। हालांकि कांग्रेस ने अभी अपने प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। अब गौर करते हैं इस क्षेत्र की स्थिति की तो यहां के रहने वाले लोग आज भी उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें और बिजली की व्यवस्था से आज भी महरूम हैं। यह स्थिति तब है जब पूरे पांच साल यहां सत्ता के विधायक रहे। बसपा सरकार में मायावती के करीबी और इस क्षेत्र के कद्दावर नेता जुगुल किशोर भी इसी विधानसभा के निवासी है। 

इसका कारण चाहे इस क्षेत्र की जनता का भोलापन हो या जनप्रतिनिधियों का बड़बोलापन चुनाव के दौरान उच्च शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, शानदार सड़कें और ज्यादा से ज्यादा बिजली दिलाने का वादा। यही कारण है कि इस क्षेत्र की प्रगति नहीं हो पा रही है। जबकि इस विधान सभा में मितौली, मैगलगंज, नीमगांव, फरधान जैसी कई बड़ी ग्राम पंचायतें जुड़ी हैं। इसके बावजूद भी इस विधान सभा में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर न तो इमरजेंसी सुविधाएं हैं और न ही कुशल चिकित्सकों की तैनाती है। 

प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में जरूरत के मुताबिक स्टाफ की तैनाती और पर्याप्त संसाधन न होने से इलाज के लिए आने वाले मरीज 50-80 किलोमीटर की दूरी तय कर जिला मुख्यालय इलाज के लिये जाते हैं। यहां के वाशिंदे जिला मुख्यालय या गैर जनपद में उच्च शिक्षा के लिए पलायन करने को विवश हैं। ऐसा नहीं कि यहां पर उच्च शिक्षा के लिए महाविद्यालय खोले जाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। लेकिन वह सब रद्दी की टोकरी में चले गए। यहां बिजली की समस्या भी हमेशा बनी रहती है। दशकों से बिछी बिजली लाइनों के तार जर्जर होने के कारण आए दिन टूटते रहते हैं। इसको दुरुस्त करने के लिए कर्मचारी लगे हैं, लेकिन लापरवाही के चलते बिजली व्यवस्था तीन से पांच दिन के बाद ही दुरुस्त हो पाती है। 

बिजली कनेक्शन समेत शिकायत का तत्काल निपटारा न होने से क्षेत्रवासियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पेयजल के लिए लगवाए गए हैंडपंप काफी पुराने हो चुके हैं। जिस कारण उनमें या तो पीला पानी आ रहा है या खराब होने के साथ ही उनके हत्थे आदि गायब हो चुके हैं। क्षेत्र में बनी पानी की टंकिया शोपीस बनकर रह गई हैं। जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा सरकार द्वारा लगाया गया है, जिसमें रिपोर्ट के आधर पर विश्व बैंक से आया पैसा खूब खर्च हुआ है। लेकिन पानी की सप्लाई शुरू करते ही पूरा ढांचा चरमरा गया है। 

दरअसल इन कामों में भी ठेकेदारों व नेताओं द्वारा मिलकर क्वालिटी की बात भुला दी गई। यही वजह है कि काम पूरा होने के बाद जब पानी आपूर्ति का प्रयास किया गया तो टंकिया दरक गईं और टंकियां नहीं चल पाईं। कई इंडिया मार्का हैंडपंप नेताजी के चहेतों के दरवाजे या पास पड़ोस के खेतों में लगे हैं। गरीब, दलित, पिछड़ों को उसका लाभ नहीं मिल पाया है। गरीब जनता जहरीला पानी पी रही है। लल्हौआ ग्राम पंचायत से जाने के लिए कठिना नदी पर पुल न होने से कुसुमी, ओलियापुर, खुर्रमनगर, कपासी व पल्हापुर आदि गांव को जाने के लिए 10-20 किलोमीटर अधिक दूरी का सफर करना पड़ता है।
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