लखनऊ. सपा परिवार में अहम सवालों पर समाधान न निकलने के बावजूद पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि चुनाव तैयारियां किसी भी तरह प्रभावित न हों और संभावित प्रत्याशियों का टिकट फाइनल करने के काम में तेजी आए। लिहाजा मुलायम सिंह जल्द मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पार्टी महासचिव रामगोपाल व शिवपाल यादव के साथ बैठक कर तमाम मुद्दों पर चर्चा करेंगे। इसमें सबसे अहम काम टिकट तय करने का भी है।
पार्टी सूत्र बताते हैं कि विवाद, रार व तल्खी के बीच पार्टी का कीमती समय व्यर्थ जा चुका है और अभी भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं। चुनाव नजदीक आ रहा है, ऐसे में कुछ सवालों को पीछे छोड़कर कम से कम टिकट पर फैसला कर लिया जाए ताकि पार्टी व सरकार में चल रही ऊहापोह को खत्म किया जा सकेगा। इसी क्रम में शुरूआती लड़खडाहट के बाद समाजवादी पार्टी अब पूरे जोर-शोर से अपना अभियान शुरू करने में जुट गयी है। इस अभियान की कमान खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने संभाली है और अब वे मंडलवार रैलियों के जरिये पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं और जनता में जोश भरेंगे। मुलायम की रैलियों के लिए तारीखें तय करने का काम शुरू हो चुका है। 7 दिसंबर को बरेली में रैली तय है तो उसके बाद 20 दिसंबर को देवरिया में मुलायम कि रैली होने की संभावना है।
माना जा रहा है कि अखिलेश यादव जनवरी के दूसरे हफ्ते में पूरे जोर शोर से चुनावी मैदान में उतरेंगे क्योंकि तब तक मौजूदा विधानसभा का अंतिम सत्र 22 दिसंबर से शुरू होकर जनवरी के पहले हफ्ते तक चलने की उम्मीद है। इस बीच पार्टी ने हर सीट पर अपने उम्मीद्वारो का आतंरिक सर्वे करवा लिया है और इसके बाद लगभग 40 सिटिंग विधायको के टिकट पर तलवार लटक गयी है। इन विधायको के बारे में कहा जा रहा है कि इनमे से कई ऐसे हैं जो पाला बदलने की तैयारी में थे और बहुत से ऐसे भी हैं जो मुलायम सिंह की तमाम चेतावनियों के बावजूद नहीं सुधरे और जमीनों के कब्जे और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे रहे।
सपा आलाकमान का मानना है कि ऐसे विधायकों के कारण ही जनता में सरकार विरोधी रुख बढ़ा है और यदि इनके टिकट काटकर जुझारू नेताओं को टिकट दिया जाता है तो ही इन सीटो पर पार्टी की नैया पार लग सकती है। टिकट के मामले में अखिलेश यादव ने भी अपना रुख कड़ा रखा है और वे दागियों को अपने साथ कतई नहीं रखना चाहते हैं। अखिलेश की निगाह में कई ऐसे मंत्री भी हैं जो अपने-अपने आकाओं की वजह से मंत्री पद बचाने में कामयाब तो रहे हैं मगर अब अखिलेश उन्हें बर्दाश्त करने के मूड में नही हैं।
आपको बता दें कि अखिलेश समर्थक युवा नेताओं की पार्टी में वापसी का सवाल अभी अधर में हैं तो दूसरी ओर शिवपाल व उनके समर्थकों की मंत्रिमंडल में वापसी का भी कोई हल नहीं निकला है। यही नहीं सपा महासचिव अमर सिंह हाल में अपना दर्द बयां करके संकेत दे चुके हैं कि पार्टी में तल्खी बरकरार है। शिवपाल, रामगोपाल के बीच हालांकि रिश्ते बेहतर हुए हैं और अखिलेश व शिवपाल के बीच भी नजदीकियां बढ़ी हैं, पर अमर सिंह की बात से साफ है कि विवाद कायम है। एक वक्त ऐसा भी आया था कि जब शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच बर्चस्व की लड़ाई सपा की छवि को खासा नुकसान हो रहा था। यही कारण है कि सूबे के विधान सभा चुनावों को लेकर शुरूआती लड़खडाहट के बाद समाजवादी पार्टी अब पूरे जोर शोर से अपना अभियान शुरू करने में जुट गयी है।