2017 की सियासी जंग को जीतने के लिए सबने अपने-अपने मुस्लिम चेहरों के सहारे चाल भी चल दी है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या वाकई में ये नेता अपने बूते मुसलमानों को मनाने में कामयाब हो पाएंगे?
मधुकर मिश्र.
लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों में से 125 विधानसभा सीटों पर मुसलमान निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। ऐसे में लगभग 19 प्रतिशत वाले मुस्लिम समाज पर सभी बड़े दलों की निगाहें टिकी हुई है। 2017 की सियासी जंग को जीतने के लिए सबने अपने-अपने मुस्लिम चेहरों के सहारे चाल भी चल दी है, लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या वाकई में ये नेता अपने बूते मुसलमानों को मनाने में कामयाब हो पाएंगे?
कांग्रेस-
मुस्लिम वोटबैंक की घर वापसी को लेकर बेचैनी कांग्रेस में साफ देखी जा सकती है। अधिकांश पार्टी नेताओं का मानना है कि इस काम में छोटे और मुस्लिम हित की बात करने वाले दल काफी मददगार साबित हो सकते हैं। हालांकि आलाकमान ने अभी तक इसे लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सूबे के मुसलमानों को लुभाने के लिए पार्टी के पास गुलाम नबी आजाद बड़ा चेहरा है। इसके अलावा संगठन में भी मुसलमानों का पूरा ख्याल रखा है। मुख्य प्रवक्ताओं की लिस्ट में सलमान खुर्शीद एवं अन्य प्रवक्ताओं में फजले मसूद, हिलाल नकवी, अलाउद्दीन को शामिल किया गया है।
समाजवादी पार्टी-
समाजवादी पार्टी में आजम खान एक बड़ा मुस्लिम चेहरा हैं। गाहे-बगाहे वह खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा रहनुमा बताते भी रहते हैं, लेकिन उनके इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी उन्हें सवालों के कटघरे में खड़ा करते रहते हैं। ऐसे में आजम खान, बुक्कल नवाब, आशु मलिक और हाजी रियाज जैसे नेताओं के सामने मुस्लिमों को रिझाने से ज्यादा उनके छिटक जाने का संकट ज्यादा है।
भारतीय जनता पार्टी
उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास मुख्तार अब्बास नकवी के रूप में एक ऐसा चेहरा है जो मुस्लिम वोटरों को लुभाने के मामले में कुछ न कुछ भरपाई करता हुआ नजर आ सकता है। इसके अलावा एम. जे. अकबर, शहनवाज हुसैन, नजमा हेपतुल्ला जैसे नेता भी मुस्लिम समुदाय के बीच प्रचार-प्रसार के लिए हैं। जबकि संघ पहले से ही यूपी के तमाम जिलों में मुस्लिम राष्टीय मंच के जरिए मुसलमानों को भाजपा के करीब लाने की जुगत लगा रहा है। हालांकि भाजपा की कोशिश मुस्लिम मत पाने से ज्यादा उसे बंटवाने को लेकर नजर आती है, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा चुनावी फायदा उसे ही होगा। जिसकी चिंता मायावती बार-बार अपने भाषणों में करती नजर आ रही हैं।
बहुजन समाजवादी पार्टी
बसपा सुप्रीमो मायावती भाजपा को सीधे चेतावनी दे रही हैं कि वह मुस्लिम समुदाय से जुड़े धार्मिक मामले में दखल न दें। तीन तलाक के मुद्दे पर भी वह मुस्लिम धार्मिक गुरूओं के सुर में सुर मिलाती हुई नजर आ रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार उनका फोकस मुस्लिम समुदाय पर जरा ज्यादा ही है। दरअसल, वह जानती हैं कि यदि दलित और मुस्लिम मतों का गठजोड़ हो जाए तो चुनावों में उनके वारे-न्यारे हो जाएंगे। बसपा के खाते में मुस्लिम मतों को भरने की जिम्मेदारी पार्टी के बड़े चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कंधों पर है, लकिन उनके साथ यह जिम्मेदारी उनके बेटे अफजल सिद्दीकी के कंधो पर भी डाली गई है, जिन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कमान संभाल रखी है। भले ही मायावती के तूफानी दौरे अभी शुरू न हो पाएं हों, लेकिन उनके खास सिपहसलार नसीमुद्दीन प्रदेशव्यापी रैलियां और सम्मेलन कर उनके सपने को साकार करने की जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं।