यह माना जा रहा है कि ओबीसी का झुकाव भाजपा की तरफ कम होता जा रहा है। इसकी वजह पिछड़ा वर्ग समुदाय के सदस्यों पर निरन्तर हमलों का होना है।
सुहास मुंशी
पत्रिका स्पेशल
लखनऊ. बड़े नोटों के चलन को बाहर करने पर कई तरह के आरोपों से घिरी भाजपा ने उत्तर प्रदेश के चुनावी रणक्षेत्र पर निगाह लगातार बनाए रखी है। पार्टी के बड़े नेता बेशक राजधानी से दूर हैं, फिर भी इसका असर पार्टी पर नहीं पड़ा है। भाजपा ने सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए अब तक की श्रृंखला में सबसे बड़ा आयोजन मंगलवार को किया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक भाजपा का ध्यान ओबीसी बाहुल्य क्षेत्रों और उनमें भी विशेषकर उन इलाकों पर है, जहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का व्यापक असर है।
हर तरफ नजऱ
पार्टी ने 15 नवम्बर को यूपी की 15 विधानसभाओं से ज्यादा क्षेत्रों में रैली समेत कई कार्यक्रम किए। पार्टी ने इस दिन का चुनाव इसलिए किया था क्योंकि इसी दिन आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जन्मतिथि पड़ती है। यह माना जा रहा है कि ओबीसी का झुकाव भाजपा की तरफ कम होता जा रहा है। इसकी वजह पिछड़ा वर्ग समुदाय के सदस्यों पर निरन्तर हमलों का होना है। विशेषकर उना की घटना के बाद से। गुजरात के उना कस्बे में दलित समुदाय के युवकों की बेरहमी से पिटाई किए जाने का मामला सामने आया था जिसकी राजनीतिक दलों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। तब से लेकर भाजपा ने इस समुदाय को रिझाने के लिए हर तरह की कोशिश की है। इन कोशिशों में पूरे उप्र में बौद्ध भिक्षुओं की धम्म चेतना यात्रा निकालना, अन्य राजनीतिक दलों के पिछड़ा वर्ग से ताल्लुक रखने वालों को अपनी पार्टी में लेना, बैकवर्ड कम्युनिटीज वाले क्षेत्रों में कार्यक्रमों का आयोजन करना आदि अन्य कार्यक्रम भी शामिल हैं।
पार्टी का प्रभाव
जब भी पिछड़े समुदाय वाले इलाकों में रैली आयोजित किए जाने की बात होती है तो पार्टी अन्य दलों की अपेक्षा काफी आगे रहती है। इसकी वजह यह है कि पार्टी के पास सामाजिक रूप से वंचित विभिन्न समूहों के 40 सांसद हैं। पार्टी जब भी कोई योजना बनाती है तो राज्य के सभी सांसदों को इस काम में लगा देती है और उन पर कार्यक्रमों की निगरानी करने का भार डाल देती है। पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता और पार्टी प्रवक्ता हरिश्चन्द्र श्रीवास्तव इन सम्मेलनों के उद्देश्यों और इसके पीछे के विचारों के बारे में कहते हैं कि राज्य में विधान सभा की 400 से ज्यादा सीटें हैं और हमने पिछड़ा वर्ग समुदायों के लिए 200 रैलियां आयोजित किए जाने की रूपरेखा बनाई है। एक आयोजन दो विधानसभा सीटों को कवर करेगा। हम चुनाव के पहले तक पूरे राज्य में रैलियां कर लेंगे।
श्रीवास्तव कहते हैं कि पिछड़े वर्ग समुदाय से सम्बंध रखने वाले सांसदों की जो हमारी ताकत है, उसे हमने अलग-अलग बांट दिया है।
किसको कहां की जिम्मेदारी
राजेश वर्मा गोंडा,प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य शाहाबाद, सुंदर लाल लोधी गोपामऊ, सांसद रवीन्द्र कुशवाहा पडरौना- कुशीनगर, पूर्व मंत्री रामकुमार वर्मा रानीगंज में रहकर जी-जान से जुटे हैंं। पिछड़े वर्ग के नेता स्वतंत्र देव सिंह, अशोक कटारिया, अनुपम जायसवाल, केपी मौर्या, एसपी मौर्या,संतोष गंगवार, अनुप्रिया पटेल, उमा भारती आदि को भी विभिन्न क्षेत्रों में लगाया गया है।
नया फॉर्मूला
पार्टी नेता ने कहा कि उप्र के लिए नए फार्मूले पर काम किया जा रहा है। जो नेता क्षेत्रों में गए हैं, वे गैर-यादव समुदायों में अपनी पैठ बना रहे हैं। अभी भी यह समझा जाता है कि यादव समाजवादी पार्टी के प्रति विशेष रूप से निष्ठावान हैं। लेकिन, इन आयोजनों पर नजर रखने वाले एक अन्य पार्टी नेता ने कहा कि इन रैलियों के बारे में क्या कहा जा रहा है? अब तक वास्तविक रूप से हिन्दू बैकवर्ड कम्युनिटी के कितने सदस्यों तक पहुंच बनाई गई है? अभी जवाब मिलना बाकी है। क्योंकि पार्टी स्पष्ट रूप से यह विश्वास करती करती है कि ओबीसी समुदाय के सक्रिय समर्थन के बिना उप्र के चुनाव में 265 के जादुई आकड़े तक पहुंचना काफी मुश्किल है। वरिष्ठ पार्टी नेता ने यह भी कहा कि पार्टी ओबीसी समुदाय तक इस वादे के साथ जा रही है कि वह पूर्व की कल्याण सिंह सरकार के दिनों को वापस लाएगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी हाल की एक रैली में ओबीसी नेता कल्याण सिंह सरकार के प्रशासन की तारीफ कर चुके हैं। वास्तव में, पार्टी का यह भी दावा है कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली दिल्ली की पहली ओबीसी सरकार जो बनी है, वह पार्टी की ही देन है।