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यूपी में कैसे पार्टियों का गणित बनाते-बिगाड़ते हैं मुस्लिम वोट

locationलखनऊPublished: Jan 06, 2017 02:10:00 pm

Submitted by:

Ashish Pandey

2012 विधानसभा चुनाव में सपा की भारी जीत हुई थी। इस जीत में मुस्लिम वोटों की महत्वूपर्ण भूमिका रही थी।

muslim voters and up election

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लखनऊ. यूपी में मुस्लिम वोट काफी अहम मायने रखता है ये जिधर गए समझो उसकी जीत पक्की है। २०१२ विधानसभा चुनाव में भी यही देखने को मिला था। सपा की जीत में मुस्लिम वोटों की महत्वूपर्ण भूमिका थी। यूपी विधानसभा चुनाव में सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका निर्णय बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि मुस्लिम किस पार्टी पर अपना भरोसा जताते हैं। कभी कांग्रेस का समर्पित वोटर माना जाने वाला ये तबका पिछले दो दशकों से कभी समाजवादी पार्टी तो कभी बहुजन समाज पार्टी पर दांव लगाता है और राज्य की सत्ता में उसी पार्टी की तूती भी बोलती है। अब जबकि चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है तब सबकी निगाहें इसी बात पर हैं कि मुस्लिम वोटों पर किस पार्टी का भरोसा खरा उतरेगा और किसे मायूसी हाथ लगेगी। यह तो निश्चित है कि जिधर गए मुस्लिम वोट उसकी जीत पक्की है। 

राज्य का हर पांचवां वोटर मुस्लिम है

2011 की जनगणना को आधार मानें तो यूपी में तकरीबन 19.26 फीसदी आबादी यानी 3.84 करोड़ लोग मुस्लिम हैं। ऐसा माना जाता है कि प्रदेश की करीब 150 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट 20 से 30 फीसदी के आसपास है। वे कैंडिडेट की हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में पहली बार यूपी में सर्वाधिक 64 मुसलमान विधायक बने। जब प्रदेश का हर पांचवां वोटर इस तबके से आता हो तो उसे लुभाना या उसे केंद्र में रखकर रणनीति बनाना हर उस पार्टी की मजबूरी होती है जो राज्य में सत्ता की लड़ाई में शामिल हो।

सपा, बसपा और कांग्रेस जहां इस वर्ग को लुभाने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं तो बीजेपी जानती है कि मुस्लिम उसके स्वाभाविक वोटर नहीं हैं इसलिए उसकी रणनीति इस तबके के वोटों में विभाजन की रहती है। 2007 में बहुजन समाज पार्टी और 2012 में समाजवादी पार्टी ने जब ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया तो उनकी जीत की सबसे बड़ी वजह उनके परंपरागत वोट क्रमश: दलित और ओबीसी के साथ एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलना ही रहा।

माया की लिस्ट में हावी रहे जातीय समीकरण

हाल ही में जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने टिकटों की सूची का जातीय गणित समझाया तो बताया कि कुल 403 सीटों में से एससी के 87, मुस्लिम 97, ओबीसी 106 और अगड़ी जाति के 113 उम्मीदवार हैं। बसपा नेता इसीलिए राज्य सरकार पर अपने हर वार में मुजफ्फरनगर, दादरी जैसे मुद्दे उठाते हैं। बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह की मायावती पर अभद्र टिप्पणी के प्रकरण में नसीमुद्दीन सिद्दीकी के पीछे पार्टी इसीलिए मजबूती से खड़ी रही क्योंकि उन्हें बसपा का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माना जाता है।

उधर, समाजवादी पार्टी में भी आजम खान की तूती इसीलिए बोलती है क्योंकि उनके जिम्मे सपा को मुस्लिम वोट दिलाना है। मार्च में गवर्नर राम नाईक के साथ विवाद में सपा के तमाम शीर्ष नेता आजम के साथ खड़े दिखे। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की खुद की भी छवि मुस्लिम हितैषी की है और कार सेवकों पर गोली चलवाने के लिए उन्हें विरोधी मौलाना मुलायम तक कहने लगे थे।

ओपिनियन पोल के मुताबिक बसपा को नुकसान

इंडिया टुडे ग्रुप के लिए एक्सिस-माई इंडिया की ओर से किए ताजा ओपिनियन पोल के जो नतीजे सामने आए हैं उसके मुताबिक इस बार भी मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के हिस्से में जाएगा. सर्वे के मुताबिक इस वर्ग से सपा को सबसे अधिक 71 फीसदी वोट मिल सकते हैं जबकि बीएसपी के खाते में सिर्फ 14 फीसदी वोट जाएंगे। कांग्रेस को छह, अन्य पार्टियों को छह तो बीजेपी को तीन फीसदी वोट मिलने का अनुमान है। अगर ऐसा हुआ तो बीएसपी को तो झटका लगेगा ही, सपा भी बहुत ज्यादा फायदे में नहीं रहेगी। मायवती भी इस स्थिति को समझती हैं इसलिए वे मुस्लिमों को लगातार इशारों-इशारों में समझाती रहती हैं कि राज्य में बीजेपी की सरकार को आने से केवल वही रोक सकती हैं। हालांकि सर्वे के नतीजे बताते हैं कि उनकी बातों का इस तबके पर ज्यादा असर नहीं हो रहा। 

यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों की भूमिका अहम होगी, अब देखना यह है कि ये वोट सपा की तरफ जाते हैं या बसपा की तरफ। ये वोट जिधर जाएंगे जीत उनकी पक्की ही समझा जाएगा। २०१२ का चुनाव इसका साफ संकेत रहा है। सपा का मुस्लिमों का भारी समर्थन मिला था जिसके बाद यूपी में सपा की बहुमत की सरकार बनी थी। 
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