लखनऊ ,हमारी संस्कृति में बहुत से रीति -रिवाज़ होते हैं ठीक वैसे ही हमारे धर्म में भी हर दिन कोई ना कोई पर्व होता ही रहता है जो हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालता हैं अगर सही समय से जानकारी हो जाये तो हम अपनी दरिद्रता को ख़त्म कर सकते है क्योंकि जब तक हमारे पास माता लक्ष्मी का आशीर्वाद नहीं होता तो हमारे दुःख दूर नहीं होते हमें हर एक चीज के लिए सोचना पड़ता हैं। पंडित शक्ति मिश्रा कहते हैं कि यदि आदमी एक पल के लिए भी जिए तो भी उस पल को वह शुभ कर्म करने में खर्च करे. एक कल्प तक जी कर कोई लाभ नहीं. दोनों लोक में तकलीफ होती है।
कहा कि हमारे शाश्त्रो में लिखा गया हैं कि ईश्वर कहते हैं जो नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेमभक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम है क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ, और वह ज्ञानी मुझे अत्यन्त प्रिय है। आज का दिन अति शुभकारी हैं ख़ास तौर से रात बहुत ही कल्याण मयी है अगर आज की रात कुछ ऐसा कार्य कर लिया जाये तो हमारे घर में और जीवन में कभी दलिद्रता नहीं रहेगी क्योंकि आज़ दिन शुक्रवार को आश्विन मास की अष्टमी श्राद्ध जीवित पुत्रिका व्रत हैं। कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत करने का विधान होता है। पंडित शक्ति मिश्रा कहते हैं कि हमारे शास्त्रों में महालक्ष्मी के आठ स्वरूपों का वर्णन किया गया है। इस दिन मां के गजलक्ष्मी स्वरूप की आराधना करने का विशेष विधान है।
कथा
महालक्ष्मी व्रत पौराणिक काल से मनाया जा रहा है। शास्त्रानुसार महाभारत काल में जब महालक्ष्मी पर्व आया। उस समय हस्तिनापुर की महारानी गांधारी ने देवी कुन्ती को छोड़कर नगर की सभी स्त्रियों को पूजन का निमंत्रण दिया। गांधारी के 100 कौरव पुत्रो ने बहुत सी मिट्टी लाकर सुंदर हाथी बनाया व उसे महल के मध्य स्थापित किया। जब सभी स्त्रियां पूजन हेतु गांधारी के महल में जाने लगी। इस पर देवी कुन्ती बड़ी उदास हो गई। इस पर अर्जुन ने कुंती से कहा हे माता! आप लक्ष्मी पूजन की तैयारी करें, मैं आपके लिए जीवित हाथी लाता हूं। अर्जुन अपने पिता इंद्र से स्वर्गलोक जाकर ऐरावत हाथी ले आए। कुन्ती ने सप्रेम पूजन किया। जब गांधारी व कौरवों समेत सभी ने सुना कि कुन्ती के यहां स्वयं एरावत आए हैं तो सभी ने कुंती से क्षमा मांगकर गजलक्ष्मी के ऐरावत का पूजन किया।शास्त्रनुसार इस व्रत पर महालक्ष्मी को 16 पकवानों का भोग लगाया जाता है। सोलह बोल की कथा 16 बार कहे जाने का विधान है व कथा के बाद चावल या गेहूं छोड़े जाते हैं। सोलह बोल की कथा:”अमोती दमो तीरानी, पोला पर ऊचो सो परपाटन गांव जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी, कहे कहानी। सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी
कैसे करें माता लक्ष्मी की ख़ास पूजा
सुबह तड़के उठकर स्नान से पहले हरी दूब (दूर्वा) को अपने पूरे शरीर पर घिसें। स्नान से निवृ्त होकर व्रत का संकल्प करें। पूरा दिन व्रत रखकर संध्या के समय लकड़ी की चौकी पर श्वेत रेशमी कपड़ा बिछाएं। इसके बाद देवी लक्ष्मी के गजलक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। इसके बाद एक कलश पर अखंड ज्योति स्थापित करें, तथा यंत्र को पंचामृ्त से स्नान कराकर सोलह प्रकार से पूजन करें। मेवा, मिठाई, सफेद दूध की बर्फी का भोग लगाएं।
पूजन सामग्री में चंदन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल रखें। नए पीले सूत के 16-16 की संख्या में 16 बार सागड़े रखें। पीले कलावे में 16 गांठे लगाकर लक्ष्मी जी को अर्पित करें। इसके बाद महालक्ष्मी पर सोलह सिंघार चढ़ाएं। मीठे रोट का भोग लगाएं।
पूजन के समय ध्यान रखें की देवी का मुख उत्तर दिशा में हो व सभी व्रती पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके पूजन करें।
चंद्रमा के निकलने पर तारों को अर्घ दें व उत्तरमुखी होकर पति-पत्नी एक–दूसरे का हाथ थाम कर देवी महालक्ष्मी को दीपावली पर अपने घर आने के लिए तीन बार आग्रह करें। इसके बाद देवी पर चढ़ाई 16 वस्तुएं चुनरी, सिंदूर, लिपिस्टिक, रिबन, कंघी, शीशा, बिछिया, नाक की नथ, फल, मिठाई, मेवा, लौंग, इलायची, वस्त्र, रुमाल श्रीफल इत्यादि विप्र पत्नी अर्थात ब्राह्मणी को दान करें।पूजन पश्चात 16 गांठे लगाएं हुए पीले कालवा घर का हर सदस्य ब्राह्मणी द्वारा अपनी कलाई पर बंधवाएं। और इस तरह से माता लक्ष्मी को याद करें ताकि हर दुःख का निवारण हो सके , नीचे लिखे मन्त्र का जप लगातार करते रहे ।
मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गजलक्ष्म्यै नमः