योजना पर ज्यादा ध्यान न दे पाने के कारण गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा है। इसको ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को विशेष निर्देश जारी किए गए हैं
लखनऊ. योजना पर ज्यादा ध्यान न दे पाने के कारण गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पा रहा है। इसको ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारियों को विशेष निर्देश जारी किए गए हैं। जानकारी के मुताबिक पिछले साल जहां इस व्यवस्था में 1.21 करोड़ रुपये बजट की व्यवस्था की गई थी, वहीं इस बार चार करोड़ रुपये की धनराशि स्वीकृत की गई है। इसके चलते राज्य सरकार ने चालू सत्र में एक लाख से ज्यादा गरीब बच्चों को महंगे पब्लिक स्कूलों में दाखिला दिलवाने की योजना तैयार की है।
हालांकि सत्र के अंत में यह धनराशि शुल्क प्रतिपूर्ति के तौर पर केंद्र सरकार से वापस मिल जाएगी। सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई एक्ट)-2009 के तहत शुरू की गई इस योजना में विशेष रुचि लेने के निर्देश दिए गए हैं।
आरटीई एक्ट में व्यवस्था है कि निजी स्कूल अपने यहां की 25 फीसदी सीटें आवेदन मिलने पर गरीब बच्चों के लिए देंगे। योजना के बारे में ज्यादा प्रचार-प्रसार न होने के कारण पिछले दो-तीन साल में उपलब्ध सीटों के अनुपात में न के बराबर छात्रों को ही दाखिला मिल सका।
स्थिति यह है कि निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए छह लाख से ज्यादा सीटें हैं, मगर 2013-14 और 2014-15 में महज 54-54 छात्रों को दाखिला मिला। पिछले सत्र में भी यह संख्या 4500 तक ही पहुंच सकी।
एक-डेढ़ लाख बच्चों को योजना का मिलेगा लाभ
यहां बता दें कि इस योजना में दाखिला देने वाले स्कूलों को प्रति बच्चा अधिकतम 450 रुपये भुगतान की व्यवस्था है। पिछले वर्षों में देखने में आया है कि गरीब बच्चों को दाखिला देने वाले किन्हीं स्कूलों की फीस अधिकतम सीमा से कम भी होती है। इसलिए एक अनुमान के मुताबिक निर्धारित बजट में एक-डेढ़ लाख बच्चों को योजना का लाभ मिल सकेगा।
निदेशक बेसिक शिक्षा दिनेश बाबू शर्मा के मुताबिक सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को कहा गया है कि वे निजी स्कूलों में दाखिला लेने के लिए मिले आवेदन पत्रों पर समय रहते नियमानुसार कार्रवाई करें। ऐसा न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
आरटीई एक्ट के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलवाने के लिए नियमों में भी ढील दी गई है। पिछले साल तक लागू व्यवस्था के अनुसार, इस योजना में कोई भी बच्चा कक्षा-1 में निजी स्कूल में तभी दाखिला ले सकता था, जब उसके एक किलोमीटर दायरे में स्थित सरकारी स्कूल की कक्षा-1 में 40 से ज्यादा बच्चे हों।
अब यह प्रतिबंध खत्म कर दिया गया है। नए नियम के तहत अगर सरकारी स्कूल में छात्र-शिक्षक अनुपात 30 या उससे ज्यादा है तो बच्चे को कक्षा-1 में निजी स्कूल में दाखिला दिलवाया जा सकता है। साथ ही नर्सरी में दाखिले के लिए कोई प्रतिबंध नहीं होगा। यानी, जो भी अभिभावक नर्सरी में अपने बच्चों को निजी स्कूल में दाखिला दिलवाना चाहेंगे, उन्हें योजना का लाभ दिलवाया जाएगा।