ऐसे हैं देश में आरक्षण के हाल, सभी जातियों को चाहिए आरक्षण
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लखनऊ.यूपी में विधानसभा चुनाव सिर पर है तो फिर से आरक्षण का मुद्दा भड़क रहा है। आरएसएस ने बिहार चुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा की मांग उठाई थी। संघ समीक्षा के माध्यम से मजबूत, दबंग और प्रभावशाली जातियों को आरक्षण से बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है। पीएम मोदी कई जातियों को आरक्षण में शामिल करना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को कहा है की जिन जातियों का सशक्तिकरण हो गया है उनको आरक्षण से बाहर रखना चाहिए।
आरक्षण की पहल देश में आज़ादी से पहले ही हो गई थी। आज़ादी के पहले प्रेसिडेंसी रीजन और रियासतों के एक बड़े हिस्से में पिछड़े वर्गों(बीसी) के लिए आरक्षण की शुरुआत हुई थी। महाराष्ट्र में कोल्हापुर के महाराज छत्रपति साहूजी महाराज ने 1901 में पिछड़े वर्ग से गरीबी दूर करने और राज्य प्रशासन में उन्हें उनकी हिस्सेदारी देने के लिए आरक्षण शुरू किया था। यह भारत में दलित वर्गों के कल्याण के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने वाला पहला सरकारी आदेश था।
पत्रिका ने लखनऊ में समाजवादी पार्टी के छात्र सभा की प्रदेश सचिव सुनिधि सांई चौधरी से बात की तो उन्होंने कहा की आरक्षण के नाम पर नेता अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। आरक्षण की जरुरत आज भी लोगों को है लेकिन सरकार को इसके लिए अपनी आंखें खोल कर देखने की जरुरत है।
ऐसे शुरू हुआ आरक्षण का खेल
1908 में अंग्रेजों ने प्रसाशन में हिस्सेदारी के लिए आरक्षण शुरू किया 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी ने सरकारी आदेश जारी किया, जिसमें गैर-ब्राह्मण के लिए 44 फ़ीसदी ब्राह्मण, मुसलमान, भारतीय-एंग्लो, इसे के लिए 16-16 फ़ीसदी और अनुसूचित जातियों के लिए 8 फ़ीसदी आरक्षण दिया। 1935 में भारत सरकार अधिनियम 1935 में सरकारी आरक्षण को सुनिश्चित किया गया है 1942 में बाबा साहब अम्बेडकर ने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग उठाई
क्या था आरक्षण का उद्देश्य और मॉडल?
आरक्षण का उद्देश्य केंद्र और राज्य में सरकारी नौकरियों, कल्याणकारी योजनाओं, चुनाव और शिक्षा के क्षेत्र में हर वर्ग की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए की गई। जिसमें समाज के हर वर्ग को आगे आने का मौका मिले। सवाल उठा की आरक्षण किसे मिले? इसके लिए पिछड़े वर्गों को तीन कैटेगरी अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग में बांटा गया।
केंद्र द्वारा दिया आरक्षण
वर्ग कितना आरक्षण
अनुसूचित जाती (SC ) 15 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति(ST) 7.5 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग(OBC) 27 प्रतिशत यहां ध्यान देने वाली बात यह है की बाकी 50.5 प्रतिशत आरक्षण जनरल कैटेगरी के लिए रखा है जो की sc/ st/ obc के लिए भी खुला है। आरक्षण की वर्तमान स्थिति
महाराष्ट्र में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 16 प्रतिशत, मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है तमिलनाडु में सबसे अधिक 69 फ़ीसदी आरक्षण लागू किया गया है। इसके बाद महाराष्ट्र में 52 और मध्य प्रदेश में कुल 50 फ़ीसदी आरक्षण लागू है।
आरक्षण से जुड़े अहम फैक्ट
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में समाजाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसके लिए शर्त है की उस ख़ास वर्ग को साबित करना होगा वर्गों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है।
ये है आरक्षण देना का तरीका
भारत में आरक्षण के लिए राज्यों ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है। जिसका काम राज्य के अलग-अलग तबको की सामाजिक स्थिति का ब्यौरा रखना है। ओबीसी कमीशन इसी आधार पर अपनी सिफारिशें देता है। अगर मामला पूरे देश का है तो राष्ट्रिय पिछड़ा आयोग अपनी सिफारिशें करें। वर्ष 1993 के मंडल कमीशन केस में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच ने कहा था की जाती अपने आप में आरक्षण का आधार नहीं बन सकती। उसमें दिखाई देना चाहिए की पूरी जाती शैक्षणिक और सामाजिक रूप से बाकियों से पिछड़ी है।